ब्लॉग: वन्यप्राणियों और मनुष्यों के बीच टकराव रोकना जरूरी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: September 14, 2024 09:12 IST2024-09-14T09:12:29+5:302024-09-14T09:12:35+5:30
मानव-वन्यप्राणी टकराव को विकराल रूप लेने से रोकना जरूरी है। इसके लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों को विशेषज्ञोें की सलाह मानकर ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।

ब्लॉग: वन्यप्राणियों और मनुष्यों के बीच टकराव रोकना जरूरी
देश के कई हिस्सों में वन्यप्राणियों के उत्पात और आतंक की खबरें आ रही हैं। मानव तथा वन्यजीवों के बीच टकराव का यह सिलसिला बेहद चिंताजनक है और समय पर उचित कदम नहीं उठाए गए तो समस्या बेहद गंभीर रूप धारण कर सकती है।महाराष्ट्र में बाघ, भालू, तेेंदुए और जंगली हाथी, उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले में भेड़िये, मध्यप्रदेश में खंडवा तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में सियार, पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में जंगली हाथी मनुष्यों पर लगातार हमले कर रहे हैं। पिछले छह माह में वन्यजीवों के हमलों की घटनाओं में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि देखी गई है। पर्यावरण विशेषज्ञ तथा वन्यप्राणियों की जीवनशैली से परिचित पूर्व तथा वर्तमान वन अधिकारी एवं वन्यजीवों के जीवन का वर्षों से अध्ययन कर रहे जानकार इसके लिए मनुष्य को दोष देते हैं।
वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास के लगातार घटने तथा वन्यजीवों के विचरण क्षेत्र में मनुष्यों की लगातार दखलंदाजी को ताजा हमलों का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। इसका तात्कालिक या दीर्घकालीन समाधान लेकर कोई सामने नहीं आया है। कुछ लोगों का मत है कि उत्तरप्रदेश के बहराइच में बच्चों तथा वयस्कों पर हमला करने वाले भेड़ियों को मार दिया जाना चाहिए।
इसी तरह के सुझाव उन राज्यों को लेकर दिए जाने लगे हैं जहां जंगली जानवर मनुष्यों पर लगातार हमले कर रहे हैं। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जंगल और उनमें निवास करने वाले प्रत्येक जीव-जंतु पर्यावरण संतुलन के लिए बेहद जरूरी हैं और मनुष्य के अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए उनके अस्तित्व को बचाए रखना अत्यंत आवश्यक है। हिंसक हो जाने पर हाथी, शेर, सियार, तेंदुओं, भेड़ियों, भालुओं या जिन अन्य वन्यजीवों को मारने की वकालत की जाती है, वे सब लुप्तप्राय हैं। आज से एक सदी पहले ये सब जानवर बड़ी संख्या में भारत ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों में मौजूद थे।
राजा-महाराजाओं, अभिजात्य वर्गों के शिकार के शौक के अलावा इन वन्यप्राणियों के अंगों की तस्करी में लिप्त गिरोहों ने वन्यप्राणियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया। कटते हुए जंगलों तथा पहाड़ों ने भी इन प्राणियों के प्राकृतिक आवास को छीन लिया। वे जिन प्राणियों का शिकार कर अपना पेट भरते थे, उनकी संख्या भी वनों की कटाई एवं अंधाधुंध शिकार के कारण कम होती चली गई।इससे शेर, तेंदुए, भेड़िये, सियार, लोमड़ी, जंगली हाथी, भालू मानव बस्ती में भोजन व शिकार की तलाश में आने लगे।
जंगली हाथी जहां फसलों को तबाह करने लगे और प्रतिरोध करने पर मनुष्यों पर हमला करने लगे, वहीं अन्य जंगली जानवर मानवभक्षी होते चले गए. देश के विभिन्न राज्यों से आए दिन मनुष्यों पर वन्यजीवों के घातक हमलों की खबरें आती हैं। जो क्षेत्र जंगल से दूर हैं वहां जाकर वन्यजीव पालतू जानवरों, छोटे बच्चों, खेत-खलिहानों में काम करने वाले लोगों पर हमले कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में महीनों तक भारी उत्पात मचाने और इस वर्ष 15 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले जंगली हाथी अब विदर्भ तथा उससे लगे तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश में घुसकर तबाही मचा रहे हैं। पिछले दस दिनों में विदर्भ के चंद्रपुर शहर में तेंदुआ विचरण कर रहा था तो मराठवाड़ा के छत्रपति संभाजीनगर में भी व्यस्त इलाके में तेंदुए को विचरण करते हुए देखा गया। जंगली जानवर आमतौर पर मनुष्य से दूर ही रहते हैं। वे अपने प्राकृतिक आवास से बाहर आना भी पसंद नहीं करते लेकिन हमने प्रकृति से छेड़छाड़ करते हुए उनके क्षेत्र में घुसपैठ शुरू कर दी, वन्यजीवों के प्राकृतिक आहार को अपना आहार बनाने लगे तो वन्यप्राणी कहां जाएंगे?
मनुष्यों की बस्ती में घुसने तथा हमला करने की वन्यजीवों की बढ़ती प्रवृत्ति का व्यापक अध्ययन किया जा चुका है और अध्ययन का सिलसिला खत्म नहीं हुआ है और न ही होगा। इन सब अध्ययनों से एक समान निष्कर्ष यही निकला है कि वन्यप्राणियों के क्षेत्र में मनुष्य के बढ़ते अतिक्रमण, जंगलों की लगातार कटाई के कारण मानव-वन्यप्राणी टकराव बढ़ता जा रहा है।
पिछले चार दशकों में इस टकराव को रोकने के लिए हजारों विशेषज्ञों ने उपयोगी सुझाव दिए, विभिन्न सरकारी समूहों ने सिफारिशें कीं लेकिन हुआ कुछ नहीं क्योंकि जंगलों की कटाई नहीं रुकी और न ही वन्यप्राणियों के प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखने के लिए बड़ी परियोजनाओं को अनुमति देने का सिलसिला थमा। मानव-वन्यप्राणी टकराव को विकराल रूप लेने से रोकना जरूरी है। इसके लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों को विशेषज्ञोें की सलाह मानकर ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।