हरीश गुप्ता का ब्लॉग: क्या खिचड़ी पक रही है उत्तरप्रदेश में?
By हरीश गुप्ता | Published: February 17, 2022 10:54 AM2022-02-17T10:54:27+5:302022-02-17T10:57:54+5:30
चुनाव अब हिंदू-मुस्लिम विभाजन का रूप ले रहा है और भाजपा आगे के चरणों में इसकी फसल काटने की तैयारी कर रही है।
यूपी को लेकर दूसरे चरण के मतदान के बाद जनमत सव्रेक्षणों के सुर बदलने शुरू हो गए हैं. यहां तक कि भाजपा के शीर्ष नेता भी समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव को पांच साल पहले राज्य को बर्बाद करने के लिए कोस रहे हैं, बजाय यह बताने के कि भाजपा की ‘डबल इंजन’ सरकारों ने राज्य के लिए क्या किया है.
प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपनी प्रचार रैलियों के दौरान ‘फियर फैक्टर’ का इस्तेमाल करते हुए यहां तक कह रहे हैं कि अगर सपा-रालोद गठबंधन चुनाव जीतता है तो उत्तरप्रदेश बर्बाद हो जाएगा. शाह ने एक नई चीज जोड़ी और कहा कि अगर सपा-रालोद सत्ता में आती है, तो रालोद के जयंत चौधरी को सपा बाहर कर देगी और आजम खान को शामिल कर लेगी.
जाहिर है, लक्ष्य मुसलमानों और जाटों के बीच बढ़ती दोस्ती को तोड़ना है. भाजपा नेता 2013 के कैराना दंगों का हवाला दे रहे हैं जब मुस्लिम और जाट भिड़ गए थे, जिसके परिणामस्वरूप 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में सपा की हार हुई थी. पीएम ने अपने हमले को तेज करते हुए कहा कि एनडीए द्वारा शुरू की गई सभी कल्याणकारी योजनाएं बंद हो जाएंगी.
भाजपा ने संकट को भांप लिया है और अपने मौजूदा विधायकों में से 20 प्रतिशत से अधिक को टिकट से वंचित करके परिस्थिति को ठीक करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है. पहले चरण के बाद ही भाजपा ने चुनावी मुद्दों को बदल दिया और हिजाब विवाद छिड़ गया.
चुनाव अब हिंदू-मुस्लिम विभाजन का रूप ले रहा है और भाजपा आगे के चरणों में इसकी फसल काटने की तैयारी कर रही है. यह निश्चित रूप से सीएम योगी और उनके समर्थकों के दिलों को खुश कर सकता है, जो पहले दिन से ही सार्वजनिक रूप से 80 बनाम 20 के सिद्धांत का समर्थन कर रहे हैं. योगी हिंदुत्व पर फोकस कर रहे हैं जबकि मोदी विकास की बात कर रहे हैं.
मोदी की रणनीति
शुरुआत में जेपी नड्डा और अमित शाह को चुनावी मैदान में उतारने के बाद पीएम मोदी ने कमान अपने हाथ में ले ली है. जब मोदी परिदृश्य में आते हैं तो वे सावधानीपूर्वक योजना बनाते हैं. इसकी एक झलक पहली बार 7 फरवरी को लोकसभा में देखने को मिली, जहां उन्होंने करीब 90 मिनट तक बात की और राहुल गांधी की जमकर आलोचना करते हुए पांच राज्यों में मतदाताओं को लुभाया.
उन्होंने यदि गोवा में नेहरू पर उनकी विफलताओं के लिए शाब्दिक हमला किया, तो 1984 के दंगों के लिए गांधी परिवार की भी तीखी आलोचना की. हालांकि उन्होंने राहुल गांधी के इस आरोप को नजरअंदाज कर दिया कि मोदी ‘शहंशाह’ की तरह काम कर रहे हैं. मोदी पांच राज्यों में संसद के बाहर लाखों मतदाताओं को संबोधित करते समय अविचलित थे.
अगले दिन, उन्होंने राज्यसभा में अपने वक्तृत्व कौशल को दोहराया और फिर से उनका ध्यान पांच चुनावी राज्यों पर था. 9 फरवरी को उन्होंने एक टीवी न्यूज एजेंसी, एएनआई को एक साक्षात्कार देकर राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा, जिसे देश भर के लगभग सभी समाचार चैनलों द्वारा लाइव दिखाया गया. मोदी का ध्यान यूपी पर था क्योंकि पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होना था.
इसके बाद वे लगातार तीन दिनों तक शांत रहे. मोदी ने अपने भक्तों को मंत्रमुग्ध किया और हो सकता है कुछ दुविधा में पड़े लोगों को भी प्रभावित किया हो. मोदी की योजना बेजोड़ थी. मैंने 10 प्रधानमंत्रियों को देखा है लेकिन इंदिरा गांधी के अलावा किसी ने भी मोदी जैसी चतुर योजना नहीं बनाई.
प्रियंका के पास कमान
यह हैरानी की बात है कि यूपी में दो चरणों के मतदान के बाद भी कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी राज्य के परिदृश्य में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं. वे गोवा, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर में बड़े पैमाने पर यात्र कर रहे हैं. लेकिन वे यूपी में चुनाव प्रचार से खुद को दूर रखे हुए हैं. बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को बागडोर सौंपने के बाद वे यूपी कांग्रेस के किसी नेता की बात भी नहीं सुनते हैं.
प्रियंका मीडिया के सवालों का सामना करते हुए और यहां तक कि मीडिया को भी साथ लेकर टीवी पर इंटरव्यू देती रही हैं. यह उनके भाई राहुल के विपरीत है, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान टीवी साक्षात्कारों से किनारा कर लिया था. लेकिन प्रियंका गांधी इसके ठीक उलट हैं और हमेशा मुस्कुराती रहती हैं. उन्होंने जनता को प्रभावित किया हो या नहीं, लेकिन राहुल की तुलना में प्रेस के साथ अधिक मैत्रीपूर्ण रही हैं. आश्चर्य की बात यह है कि वे पंजाब का भी दौरा कर रही हैं.
पंजाब में भाजपा को आप का डर
आप के पंजाब में एक ताकत के रूप में उभरने से भाजपा नेतृत्व सबसे ज्यादा चिंतित है. पंजाब में आप की जीत अरविंद केजरीवाल को अखिल भारतीय नेता के रूप में पेश करेगी जो उत्तर भारत में कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरने में सक्षम हैं. जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार को कभी केंद्रबिंदु माना जाता था.
लेकिन भाजपा से हाथ मिलाने से उनका ग्राफ गिर गया. ममता बनर्जी की कुछ राज्यों में पैठ बनाने की कोशिश असफल रही है. पश्चिम बंगाल में उन्हें अपना घर संभालना मुश्किल हो रहा है. पंजाब में अगर त्रिशंकु विधानसभा होती है तो क्या चुनाव के बाद भाजपा अकालियों के साथ जाएगी? देखना होगा!