नई दिल्ली: ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) रिपोर्ट स्वीकार कर लें तो मानना पड़ेगा एक देश के नाते हम स्वयं को भले भविष्य की महाशक्ति घोषित करें, पोषण के मामले में हमारी स्थिति उन देशों से भी खराब है जिनकी संसार में कोई हैसियत नहीं. इस रिपोर्ट में भारत को कुल 121 देशों में 107वें क्रम पर रखा गया है.
लेकिन क्या यह रिपोर्ट वास्तविकता को दर्शाने वाली है?
यहां यह जानना आवश्यक है कि जीएचआई रिपोर्ट दो एनजीओ आयरलैंड की कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की वेल्थुंगरहिल्फे मिलकर तैयार करते हैं. यह तो नहीं कह सकते कि ये दोनों अप्रामाणिक हैं और इनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं है, किंतु इसके पहले इनके कई कार्यों पर प्रश्न खड़े हुए हैं.
क्या आयरलैंड और जर्मनी ने जानबूझकर ऐसा किया है?
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या आयरलैंड और जर्मनी ने जानबूझकर भारत को नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया है या नहीं इस पर निश्चित रूप से दो राय हो सकती है. 60 पृष्ठों के पीडीएफ दस्तावेज में इस सूचकांक को बनाने के लिए इन्होंने 3 डायमेंशन के 4 पैमानों को आधार बनाया है.
वास्तव में अंतरराष्ट्रीय मानक एकरूप नहीं हो सकता. अलग-अलग क्षेत्रों, नस्लों, जातियों आदि के हिसाब से इनका निर्धारण किया जाना चाहिए. स्वयं भारत के राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण में इसका ध्यान नहीं रखा गया.
भारत को क्या करना चाहिए?
जीएचआई पर स्वाभाविक प्रश्न उठाने और इसका विरोध करने के साथ भारत को डब्ल्यूएचओ के मानकों को भी नकारना चाहिए. डब्ल्यूएचओ के मानक नए सिरे से निर्धारित हों तो भूख सूचकांक बनाने वालों के लिए भी उसे स्वीकार करने की विवशता हो जाएगी.
हम नहीं कहते कि भारत के समक्ष स्वास्थ्यकर आहार यानी पोषण की समस्या नहीं है और हमने संतोषजनक अवस्था प्राप्त कर ली है. पोषण के मामले में भारत को काफी कुछ करना है. किंतु किसी भी पैमाने पर यह कहना कि भारत भूखों का देश है, गले नहीं उतर सकता.