ब्लॉग: अरविंद केजरीवाल पर अंकुश की कोशिश में भाजपा, दिल्ली विधानसभा को खत्म करने की तैयारी!

By हरीश गुप्ता | Published: April 7, 2022 09:46 AM2022-04-07T09:46:35+5:302022-04-07T09:46:35+5:30

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की बढ़ती महत्वाकांक्षा ने भाजपा को चिंतित कर दिया है. ये पार्टी कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरती नजर आ रही है.

is BJP trying to curb Arvind Kejriwal, preparing to dismantle Delhi Assembly | ब्लॉग: अरविंद केजरीवाल पर अंकुश की कोशिश में भाजपा, दिल्ली विधानसभा को खत्म करने की तैयारी!

अरविंद केजरीवाल पर अंकुश की कोशिश में भाजपा (फाइल फोटो)

भाजपा दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को निरुत्साहित करने की योजना बना रही है. एक मेयर-इन-काउंसिल का गठन किया जाएगा जो मुख्यमंत्री की तुलना में अधिक शक्तियां प्राप्त करेगी क्योंकि तीन एमसीडी का विलय हो गया है. विलयित संस्था सीधे केंद्र के अधीन होगी न कि दिल्ली सरकार के अधीन. 

दूसरा कदम दिल्ली विधानसभा को ही खत्म करना और महानगर परिषद की पुरानी व्यवस्था को वापस लाना होगा. वी. के. मल्होत्रा 70 के दशक में दिल्ली के चीफ मेट्रोपॉलिटन काउंसलर थे. केंद्रीय गृह मंत्रालय महानगर परिषद को पुनर्जीवित करने पर विचार कर रहा है. मंत्रालय ने विश्व की राजधानियों से डाटा एकत्र किया है जिसमें दिखाया गया है कि दिल्ली को छोड़ कहीं भी विधानसभा नहीं है. केजरीवाल की बढ़ती महत्वाकांक्षा ने भाजपा को चिंतित कर दिया है क्योंकि आप कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभर रही है.

संसद में मोदी के प्रति राकांपा, शिवसेना की नरमी

सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यह सच है. संसद की कार्यवाही का बारीकी से अध्ययन करने पर पता चला है कि संसद के दोनों सदनों में शिवसेना और राकांपा के 30 सांसदों में से किसी ने भी बजट सत्र के दौरान मोदी सरकार पर शायद ही कोई शाब्दिक हमला किया हो. 
हालांकि केंद्रीय एजेंसियां एमवीए (महा विकास आघाड़ी) नेताओं को आए दिन निशाना बनाती रही हैं, लेकिन उनके सांसद संसद में इस मुद्दे को उठाने में संकोच करते हैं. 

वे सदन के बाहर राजनीतिक प्रतिशोध के लिए ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग का दुरुपयोग करने के लिए मोदी सरकार पर तीखा हमला करते रहे हैं. लेकिन उनके किसी भी वरिष्ठ नेता ने संसद के अंदर इस तरह के मुद्दों को प्रमुखता से नहीं उठाया. 

संसद के दोनों सदनों में राकांपा और शिवसेना के इन 30 सांसदों में से आधा दर्जन अपने-अपने सदनों में बेहद सक्रिय हैं. उदाहरण के लिए, शरद पवार की बेटी और राकांपा की सांसद सुप्रिया सुले संभवत: महाराष्ट्र के सबसे सक्रिय सांसदों में से हैं, जो पूरे दिन लोकसभा में बैठती हैं, बहस में भाग लेती हैं और महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाती हैं. लेकिन शायद ही कभी वे राज्य के विवादास्पद मुद्दों पर मोदी सरकार की मुखर आलोचना करती नजर आती हैं. 

शिवसेना के अधिकांश सांसद सरकार पर हमला करने के बजाय अपने निर्वाचन क्षेत्रों के मुद्दों को उठाने तक ही सीमित रहते हैं. कम से कम इस बजट सत्र के दौरान तो उनकी आवाजें महाराष्ट्र में चल रही कड़वी लड़ाई और राज्य में उनके नेताओं को जांच एजेंसियों के हाथों जो उत्पीड़न का सामना का सामना करना पड़ रहा है, उसके खिलाफ सुनाई नहीं दीं. 

हालांकि संसद के बाहर शरद पवार, संजय राऊत समेत अन्य नेता सरकार पर हमले करते रहे हैं. वे समान विचारधारा वाली पार्टियों को एक मंच पर लाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. लेकिन जब संसद के भीतर एजेंसियों के दुरुपयोग का मुद्दा उठाने की बात आती है, तो वे अनदेखी करते हैं. बजट और विनियोग विधेयकों पर बोलने वाले अधिकांश सदस्यों ने सरकार को ‘रचनात्मक सुझाव’ दिए. उनमें से एक ने यूक्रेन युद्ध के कारण कठिन समय का सामना करने के लिए सरकार की प्रशंसा की. सदन के अंदर राकांपा-शिवसेना का यह नरम रवैया और बाहर कड़े बयान क्यों हैं, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं है.

महाराष्ट्र में राज्यसभा सीट के लिए खींचतान

महाराष्ट्र में राज्यसभा सीट के लिए दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है. छह सीटें खाली हो रही हैं. इसमें से भाजपा को दो, जबकि राकांपा, शिवसेना और कांग्रेस को एक-एक सीट मिलेगी. छठी सीट शिवसेना और राकांपा के संयुक्त उम्मीदवार के पास जाएगी क्योंकि इन दोनों पार्टियों के पास विधानसभा में अतिरिक्त वोट हैं. यदि भाजपा से प्राप्त रिपोर्टो का कोई संकेत है तो वह यह कि पार्टी साहूजी महाराज के वंशज के रूप में महाराष्ट्र में अपने राजनीतिक दबदबे के कारण छत्रपति संभाजी को फिर से नामित करने की इच्छुक है. 

चूंकि वे 2016 में राष्ट्रपति की तरफ से राज्यसभा के लिए नामित किए जाने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे, पार्टी उन्हें नियमित सीट के लिए फिर से नामांकित कर सकती है क्योंकि राकांपा-शिवसेना भी उन्हें शामिल करने के लिए उत्सुक हैं. भाजपा राज्यसभा में अपने नेता और खाद्य, वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को दूसरी सीट देगी. 

भाजपा के लिए विनय सहस्त्रबुद्धे और डॉ. विकास महात्मे को समायोजित करना मुश्किल होगा, जो इसी दौर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं. दोनों पहली बार के सांसद हैं और उम्मीद है कि उन्हें महाराष्ट्र के बाहर अन्य राज्यों से जगह दी जाएगी. राकांपा के प्रफुल्ल पटेल और शिवसेना के संजय राऊत को फिर से नामांकन मिलने की संभावना है. 

ऐसी अटकलें हैं कि अगर एम. के. स्टालिन एक सीट देने के लिए सहमत होते हैं तो कांग्रेस के मौजूदा सांसद पी. चिदंबरम तमिलनाडु जा सकते हैं. इस परिस्थिति में मुकुल वासनिक जैसे बड़े कांग्रेसी नेता को सीट मिल सकती है. आलाकमान जी-23 नेताओं के साथ शांति बनाए रखना चाहता है और उनके कुछ प्रमुख नेताओं को समायोजित किया जा सकता है. लेकिन इससे पहले कांग्रेस ने मिलिंद देवड़ा को भी एक सीट देने का वादा किया था. पवार महाराष्ट्र की छठी सीट से गुलाम नबी आजाद को संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर लाना चाहते हैं क्योंकि एमवीए के पास चौथी सीट भी जीतने लायक समर्थन है.

यह भी अफवाह है कि भाजपा राज्यसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में चौंकाने के लिए चुपचाप काम कर रही है क्योंकि एमवीए गठबंधन के सहयोगियों के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.

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