ब्लॉग: नए साल में कांग्रेस के लिए आत्मविश्लेषण क्यों है जरूरी

By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: January 6, 2022 11:09 AM2022-01-06T11:09:39+5:302022-01-06T11:10:10+5:30

Introspection necessary for Congress party in new year | ब्लॉग: नए साल में कांग्रेस के लिए आत्मविश्लेषण क्यों है जरूरी

ब्लॉग: नए साल में कांग्रेस के लिए आत्मविश्लेषण क्यों है जरूरी

देश की सबसे पुरानी और फिलहाल विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने, जो स्वाभाविक ही खुद को स्वतंत्रता संघर्ष व उसके मूल्यों की वारिस बताती आई है और अपने दुर्दिन में भी कई प्रदेशों में सरकारों का नेतृत्व कर रही या उनमें साझीदार है, गत दिनों अपना 137वां स्थापना दिवस मनाया तो उसकी अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने देश के सत्ताधीशों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि वे न सिर्फ स्वतंत्रता संघर्ष के मूल्यों व विरासतों के साथ हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति को मिटाने की कोशिश कर रहे बल्कि लोकतंत्र व संविधान को दरकिनार कर तानाशाही भी ला रहे हैं. इससे आम नागरिक असुरक्षित व भयभीत हैं, जिसके मद्देनजर कांग्रेस चुपचाप बैठी नहीं रह सकती.

सोनिया गांधी ने देश के हालात की भयावहता का जो चित्र खींचा, कई बार वह उससे भी चिंताजनक लगता है. भले ही कुछ लोग अभी भी जानबूझकर उसे उस रूप में देखने से इनकार करते आ रहे हैं. लेकिन जहां तक उनके कारण कांग्रेस के चुप न बैठने के ऐलान की बात है, कहा जा सकता है कि उसे लगता है कि देश की सरकार बदगुमानियों की शिकार होकर देशवासियों के हक छीनने पर आमादा है और अतीत की पुनर्प्रतिष्ठा के नाम पर पुराने जख्म कुरेदकर लोगों को बांटने व उनके भविष्य से खेलने से भी बाज नहीं आ रही, तो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के तौर पर उसका कर्तव्य ही है कि वह उसके खिलाफ देश को एकजुट कर उसके संघर्ष की अगुआई करे.

इस कर्तव्यनिर्वाह में उसका सबसे बड़ा सुभीता यह है कि उसके पराभव के दौर में भी अनेक देशवासी उससे नाउम्मीद नहीं हुए हैं. कारण यह कि वे उसे राजनीतिक पार्टी भर नहीं मानते, बल्कि ऐसे विचार व आंदोलन के रूप में देखते हैं, जो देश को उसकी असली पहचान देता है. स्वाधीनता आंदोलन और उसके सफल होने के बाद देश को लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, प्रभुत्वसंपन्न गणराज्य बनाने में उसकी भूमिका आज भी नाना कोणों से याद की जाती है. लेकिन महज इस गौरवशाली अतीत के बूते वह भविष्य की लड़ाइयां नहीं जीत सकती, इसलिए अगर वह चुप न रहने के अपने ऐलान को लेकर गंभीर है, तो उसे खुद को इस सवाल के सामने करना होगा कि क्या वह अपनी और देश के भविष्य की आंतरिक व बाह्य चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है?

कौन कह सकता है कि आज देश में अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और निचले तबके के लोगों के लिए हालात बेहद कठिन हो गए हैं, तो उनके मूल में उन दिनों के कांग्रेस के वे विचलन ही नहीं हैं? क्या उन विचलनों के ही कारण आज उसके संगठन में जनप्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं का घोर अभाव है और आज के सत्ताधीश कांग्रेस के सारे हमलों को उसके उन्हीं नेताओं के गुनाहों को अपने कवच के तौर पर इस्तेमाल करके भोथरा नहीं कर देते. जैसे ही सत्ताधीश उसकी आलोचनाओं के जवाब में उसके सत्ताकाल की याद दिलाते हैं, उसको जैसे समझ में ही नहीं आता कि वह उस पर कैसे रिएक्ट करे. सो वह प्रतिरक्षा और आक्रमण के बीच में फंस कर रह जाती है. 

हां, इधर उसने यह कहना जरूर शुरू किया है कि अब सत्ताधीश उसके सत्ताकाल की बात छोड़ अपने आठ साल के बाबत बताएं. लेकिन क्या इतने से ही उसका काम चल जाएगा?

साफ है कि कांग्रेस के यह समझने के लिए इससे बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता कि अपने सुनहरे दिनों में सत्ता के मोह में मूल्यों से विचलन की कीमत जितनी उसने चुकाई है, उससे कहीं अधिक इस देश ने. कारण यह कि उसके द्वारा खाली की गई जगह  भरने के लिए जो राजनीतिक पार्टियां आगे आईं, उनमें से ज्यादातर की राजनीति संकुचित व स्वार्थपरक और जाति व धर्म पर आधारित ही रही.

इसी के चलते देश को अपनी विडंबनाओं से मुक्ति पाने के लिए एक ऐसी जनस्वीकार्य पार्टी की कमी अभी भी सालती रहती है, जिसका देश के संविधान में सच्चा यकीन हो और जो सत्ता में आते ही अपनी नैतिकताएं बदल न ले बल्किसत्ताधीशों के वास्तविक विकल्प में ढलकर अपने विश्वासों को अमल में लाने का जज्बा प्रदर्शित करे. क्या वह इस कमी को पूरी करने के लिए एक बार फिर कांग्रेस की ओर देख सकता है? जवाब बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि कांग्रेस ने पिछले सात-आठ सालों में कोई सबक सीखा है या नहीं? सीखा है तो उनके आलोक में चुनाव से चुनाव तक की सोचने की पुरानी आदत छोड़कर अपना पुनराविष्कार करने को तैयार है या नहीं?

Web Title: Introspection necessary for Congress party in new year

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