क्या पानी को लेकर होगा अगला युद्ध?, सिंधु नदी का इलाका करीब 11 लाख 20 हजार किमी क्षेत्र में फैला, जानें कैसे हुआ बंटवारा

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Updated: April 25, 2025 05:21 IST2025-04-25T05:21:44+5:302025-04-25T05:21:44+5:30

Indus Water Agreement: 1947 में भारत और पाकिस्तान के इंजीनियरों की मुलाकात ने विभाजन से पहले के हालात 31 मार्च 1948 तक बरकरार रखने पर सहमति बनाई.

Indus Water Agreement next war be over water blog Punya Prasun Vajpayee area spread over area ​​about 11 lakh 20 thousand km | क्या पानी को लेकर होगा अगला युद्ध?, सिंधु नदी का इलाका करीब 11 लाख 20 हजार किमी क्षेत्र में फैला, जानें कैसे हुआ बंटवारा

Indus Water Agreement

Highlights 31 मार्च 1948 तक पानी की धारा किसी ने रोकी नहीं.पाकिस्तान ने कश्मीर में दखल देना शुरू किया.कैसे और कब तक संभव है, नजरें अब इसी पर होंगी.

Indus Water Agreement: सिंधु नदी का इलाका करीब 11 लाख 20 हजार किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसका 86 फीसदी हिस्सा भारत पाकिस्तान में बंटा है. पाकिस्तान में 47 फीसदी और भारत में 39 फीसदी हिस्से के अलावा सिंधु नदी का 8 फीसदी हिस्सा चीन में, 6 फीसदी हिस्सा अफगानिस्तान में भी आता है. इस क्षेत्र के आसपास के इलाकों में करीब 30 करोड़ लोग रहते हैं, लेकिन 1947 में भारत विभाजन पर मुहर लगते ही पंजाब और सिंध प्रांत में पानी को लेकर संघर्ष की शुरुआत हो गई. 1947 में भारत और पाकिस्तान के इंजीनियरों की मुलाकात ने विभाजन से पहले के हालात 31 मार्च 1948 तक बरकरार रखने पर सहमति बनाई. यानी तय हुआ कि देश बंटे हैं लेकिन पानी नहीं बंटेगा. और 31 मार्च 1948 तक पानी की धारा किसी ने रोकी नहीं.

 

 

 

लेकिन 1 अप्रैल 1948 को जैसे ही समझौते की तारीख खत्म हुई और पाकिस्तान ने कश्मीर में दखल देना शुरू किया तब पहली बार भारत ने पाक पर दबाव बनाने के लिए दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ जमीन सूखे की चपेट में आ गई. यानी आज जो सवाल कश्मीर में पाकिस्तानी दखल को लेकर भारत के सामने है वैसा ही सवाल 1948 में भी सामने आया था.

हालांकि 1948 से लेकर 1960 तक सिंधु नदी को लेकर कोई ठोस समझौता तो नहीं हुआ लेकिन उस दौर में पानी रोका भी नहीं गया. लेकिन 1951 में नेहरु के कहने पर टेनेसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलिएनथल ने इस पूरे इलाके का अध्ययन कर जब रिपोर्ट तैयार की तो वर्ल्ड बैंक ने भी इसका अध्ययन किया और 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर हुए.

समझौता हुआ तो सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया. सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी मानते हुए भारत को इस्तेमाल का हक मिला तो झेलम, चिनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी मानते हुए पाकिस्तान को इस्तेमाल का हक मिला. लेकिन कोई उलझन होने पर सिंधु आयोग बना, जिसमें भारत-पाक के कमिश्नर नियुक्त हुए.

दोनों देशों की सरकारों को विवाद सुलझाने का हक मिला. कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया. लेकिन पाकिस्तान ने जिस तरह कश्मीर में आतंक को हवा दी और पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने कश्मीर को पाकिस्तान के गले की नस करार दिया, समझौते के 65 बरस के इतिहास में पहली बार भारत के लिए ये सवाल तो पैदा कर ही दिया है कि पहलगाम में खून बहे और खून बहाने वालों को पानी दें तो क्यों दें. और अब प्रधानमंत्री की बुलाई बैठक में 1948 वाले हालात की तर्ज पर पानी बंद करने की स्थिति पर चर्चा तो हुई, लेकिन ये कैसे और कब तक संभव है, नजरें अब इसी पर होंगी.

तो सवाल है कि क्या वाकई पानी को लेकर हालात और बिगड़ सकते हैं. और अगर ऐसा होता है तो चीन क्या करेगा, जो लगातार पाकिस्तान के पीछे खड़ा है. याद कीजिए तो न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता पाकिस्तान नहीं चाहता था, तो चीन ने अड़ंगा लगाकर सदस्यता नहीं मिलने दी. दक्षिण चीन सागर पर भारत के रुख से चीन नाराज है.

बलूचिस्तान का जिक्र मोदी के करने पर चीन खफा है, क्योंकि चीन का आर्थिक कॉरिडोर शिनजियांग प्रांत को रेल, सड़क और पाइपलाइन के जरिए बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा, जिस पर चीन 46 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च कर रहा है. इसलिए आतंक के सवाल पर भी चीन ने ही पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश के मुखिया मसूद अजहर को यूएन में आतंकवादी नहीं माना और वीटो जारी कर दिया.

अब जब भारत सिंधु पानी समझौता तोड़ने का जिक्र कर रहा है तो चीन का मीडिया भारत को चेता रहा है. यानी हालात सिर्फ सिंधु नदी के क्षेत्र तक नहीं सिमटेंगे बल्कि तिब्बत और ब्रह्मपुत्र भी इसकी जद में आएगा. यानी इधर सिंधु नदी उधर ब्रह्मपुत्र नदी. इधर पाकिस्तान, उधर चीन. तो सवाल ये भी है कि क्या पानी को लेकर संघर्ष के हालात पैदा हुए तो चीन भी पाकिस्तान के साथ खड़ा होकर ब्रह्मपुत्र का पानी रोक सकता है. ये सवाल इसलिए क्योंकि चीन अरसे से तिब्बत में बांध बनाकर ब्रह्मपुत्र के पानी को पीली नदी में डालने की योजना बनाने में लगा है.

चीन की बांध बनाने की योजना अरुणाचल और तिब्बत की सीमा पर है, जहां ब्रह्मपुत्र यू टर्न लेती है. ब्रह्मपुत्र कहीं-न-कहीं बांग्लादेश के लिए भी जीवनदायिनी है. यानी भारत पाकिस्तान से टकराव की जद में समूचा एशिया आएगा इससे इंकार किया नहीं जा सकता. तो क्या वाकई पानी को लेकर दुनिया के केंद्र में भारत-पाकिस्तान हो सकते हैं.

क्योंकि ये पहली बार हो रहा हो, ऐसा भी नहीं है. नील नदी को लेकर मिस्र, इथोपिया, सूडान आपस में भिड़े तो जार्डन नदी को लेकर इजराइल, जार्डन, लेबनान, फिलिस्तीन और अराल सी (नदी) पर तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान , किर्जिकिस्तान के बीच झगड़ा जगजाहिर है.

यानी पानी एक ऐसे हथियार के तौर पर किसी भी देश के लिए सहायक हो सकता है जब उसे अपने दुश्मन देश पर दबाव बनाना हो या फिर दुश्मन देश की सत्ता के खिलाफ उसके अपने देश में राष्ट्रीय भावना को उसी के खिलाफ करना हो. असर इसी का है कि पानी का संघर्ष चाहे गाजा पट्टी में दिखाई दे या फिर मिस्र, सूडान और इथोपिया के बीच, आखिर में दुनिया के दबाव में रास्ता पानी समझौते का ही निकाला गया.  पानी को लेकर बीते 58 बरस में 150 संधियां हुईं. 37 संधियों में हिंसा हुई. तो नया सवाल ये भी है कि आतंकवाद का नया नजरिया पानी को ही हथियार या ढाल बनाकर भी शुरू हो सकता है.

क्योंकि सीरिया और यमन में अगर आईएसआईएस का आतंक आज दस्तक दे चुका है तो उसके अतीत का सच ये भी है कि सीरिया और यमन में गृह युद्ध के हालात पानी की वजह से ही बने, जब वहां के गवर्नर ने अपने लिए पानी अलग से जमा कर कब्जा कर लिया और लोगों ने विरोध किया.

असंतोष के हालात में तेल के साथ-साथ पानी पर भी आईएसआईएस ने कब्जा कर लिया. फिर यूनाइटेड नेशन के जनरल सेक्रेटरी रहे कोफी अन्नान से लेकर मौजूदा एंटोनियो गुटेरेस ने माना कि 21 वीं सदी में तेल को लेकर नहीं, पानी को लेकर युद्ध होगा. बंदूकें पानी के लिए खरीदी जाएंगी.

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