शोभना जैन का ब्लॉग: रूस-यूक्रे न युद्ध के बीच चीन से सैन्य सीमा वार्ता के मायने
By शोभना जैन | Published: March 12, 2022 08:46 AM2022-03-12T08:46:06+5:302022-03-12T08:49:49+5:30
आपको बता दें कि 12वें दौर की बातचीत के बाद गोगरा से सेना वापस हटनी शुरू हुई थी लेकिन बाद में तेरह, चौदह दौर में चीन की वादाखिलाफी से बातचीत बेनतीजा रही।
रूस यूक्रेन युद्ध की दिनोंदिन गहराती भयावह छाया में भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्नण रेखा पर सीमा विवाद से जुड़े तात्कालिक मुद्दों को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के बीच एक बार फिर कमांडर स्तर की यानी 15 वें दौर की वार्ता हुई.
वास्तविक नियंत्नण रेखा पर दो वर्ष पूर्व चीन की सैन्य आक्रामकता की वजह से शुरू हुए तनाव और इस क्षेत्न में चीन के बार-बार के अतिक्रमण को लेकर दोनों पक्षों के बीच पिछले बारह दौर की बातचीत के बाद अनेक मुद्दों पर हुई सहमति के बावजूद चीन जिस तरह से वादाखिलाफी करता रहा है, वह भारत के लिए चिंता का विषय है.
रूस-यूक्रे न युद्ध में रूस का साथी होने के साथ-साथ चीन इस संघर्ष में अपनी आर्थिक और सामरिक वजहों से एक जिम्मेदार देश जैसी भूमिका निभाने की कोशिश का दिखावा कर रहा है.
भले अंदर ही अंदर वह इसे अपनी सुविधा से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बदलने के अवसर के रूप में देख रहा हो लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में यूक्रे न युद्ध में संयम बरतने की सलाह दी है. तो सवाल है कि क्या यही समझदारी चीन भारत के साथ लगी सीमा पर शांति बनाए रखने पर दिखाएगा और आक्रामकता पर अंकुश लगाएगा?
गौरतलब है कि गत जनवरी में दोनों पक्षों के बीच हुई चौदह दौर की बातचीत बेनतीजा रही थी. दरअसल पूर्वी लद्दाख में तीन महत्वपूर्ण पॉइंट्स- पैंगोंग झील के दोनों किनारों सहित, गोगरा हाइट्स और हॉट स्प्रिंग्स एरिया में, पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्नण रेखा के साथ चीनी निर्माण के बाद इन इलाकों में दोनों के बीच विवाद खड़ा हो गया था.
इस वार्ता में हॉट स्प्रिंग गोगरा-कोंगका ला में पॉइंट 15 पर सेना हटाने पर हुई सहमति का पालन करने को लेकर चीन की पीपल्स लिबेरशन पार्टी भारत के इस आशय के प्रस्तावों को नजरअंदाज करती रही है.
सैन्य मामलों के एक जानकार के अनुसार डेप्सॉन्ग और डेमचौक में तनाव की बात करें तो वहां गतिरोध बना हुआ है. डेमचौक में वास्तविक नियंत्नण रेखा पर भारतीय क्षेत्न में चीन द्वारा नागरिकों के कुछ गांव बसाने की भी खबर आई और चीन ने उन्हें खाली करने से इंकार कर दिया.
बहरहाल, 12 वें दौर की बातचीत के बाद गोगरा से सेना वापस हटनी शुरू हुई थी लेकिन बाद में तेरह, चौदह दौर में चीन की वादाखिलाफी से बातचीत बेनतीजा रही. गत फरवरी में विदेश मंत्नी डॉ. जयशंकर ने साफ तौर पर कहा था कि वास्तविक नियंत्नण रेखा पर एक पक्ष द्वारा एकतरफा तौर पर यथास्थिति में किसी भी प्रकार के बदलाव की कोशिश को मंजूर नहीं किया जा सकता है.
वैसे इस बार 15वें दौर की बातचीत से पहले चीन का रवैया भी कुछ सकारात्मक देखने को मिला है. चीन के विदेश मंत्नी वांग यी ने इसी सप्ताह कहा कि दोनों देशों को सही रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए, जिससे हम अपनी जनता को लाभ पहुंचा सकें, साथ ही क्षेत्न और विश्व में भी अपना अधिक योगदान दे सकें.
वांग का कहना था कि सीमा संबंधी मुद्दों को अन्य द्विपक्षीय संबंधों पर हावी नहीं होने देना चाहिए. लेकिन सीमा पर जब दोनों देशों की फौजें आमने सामने डटी हों, ऐसे में संबंधों को सामान्य तौर पर कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है?
गौरतलब है कि 15 जून 2020 में लद्दाख में गलवान में वास्तविक नियंत्नण रेखा पर चीन द्वारा भारत के 20 सैनिकों की नृशंस हत्या के बाद से सीमा पर भड़के तनाव को दूर करने के लिए चौदह दौर की बातचीत हो चुकी है.
हालांकि, सैन्य और कूटनीतिक प्रयासों के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों ने पिछले साल गोगरा में तथा पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर सैनिकों की वापसी की प्रक्रि या पूरी की थी.
पैंगोंग झील के इलाकों में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक संघर्ष के बाद पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई थी. चीन लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक लगभग 3500 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्नण रेखा पर सैन्य स्थिति मजबूत करने और वहां आधारभूत ढांचा मजबूत करने पर जुटा है.
जवाबी तैयारी का विकल्प भारत भी अपना रहा है. फिलहाल दोनों देशों के लगभग 50-50 हजार सैनिक वास्तविक नियंत्नण रखा पर आमने सामने डटे हैं. हालांकि, 15वें दौर की बातचीत एक बार फिर उम्मीदों के बीच हुई, लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि इस सैन्य तनाव का इतना जल्द हल निकलेगा.
फिलहाल दोनों पक्षों के बीच तनाव दूर करने के लिए बातचीत के लिए आमने-सामने बैठने को ही सकारात्मक संकेत माना जा सकता है.