डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: तकनीक के साथ चलने की चुनौती
By डॉ एसएस मंठा | Published: January 7, 2020 11:34 AM2020-01-07T11:34:53+5:302020-01-07T11:34:53+5:30
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार, आज प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले 65 प्रतिशत बच्चे पूरी तरह से नई प्रकार की नौकरियों में काम करेंगे, जो कि अभी मौजूद नहीं हैं.
शिक्षा और शिक्षण पद्धति को आज उस तरह से बदलना होगा, जिसके बारे में हम कभी सोचते थे कि यह सिर्फ कल्पना में ही सम्भव है. परिवर्तन की समय-सीमा का विस्तार अविश्वसनीय रूप से कम हो गया है. टेलीफोन को विकसित होने में जहां 75 साल लगे थे, वहीं वेब को सात साल, फेसबुक को 4 साल, इंस्टाग्राम को दो साल और पोकेमान गो को केवल एक माह का समय लगा. 2006 में हम वापस झांकें तो आश्चर्य होता है कि हमारे पास आईफोन या लाखों पुस्तकों का आभासी पुस्तकालय नहीं था. हम 4जी, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, यहां तक कि आज के सर्वव्यापी वाट्सएप्प के बारे में भी नहीं जानते थे!
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार, आज प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले 65 प्रतिशत बच्चे पूरी तरह से नई प्रकार की नौकरियों में काम करेंगे, जो कि अभी मौजूद नहीं हैं. वर्तमान पीढ़ी कहां काम करेगी या उनकी भूमिका क्या होगी, इसका पूर्वानुमान या कल्पना करना पेचीदा और चुनौतीपूर्ण है.
पहली औद्योगिक क्रांति में मशीनीकृत उत्पादन की शुरुआत हुई थी, जिसमें पानी और भाप के इंजन का इस्तेमाल शक्ति के स्नेत के रूप में किया गया. जबकि दूसरी ने उद्योगों में टेलीग्राफ और रेलमार्गो की शुरुआत की. तीसरी औद्योगिक क्रांति ने एनालॉग सिस्टम को डिजिटल में परिवर्तित किया, जबकि चौथी औद्योगिक क्रांति ने विनिर्माण प्रक्रियाओं को स्वचलित बनाया है, जहां मशीनें स्वतंत्र रूप से मनुष्यों के साथ सहयोग करती हैं, ग्राहकों के हिसाब से उत्पादन करती हैं और खुद ही डाटा एकत्र कर उसका विश्लेषण करती हैं.
विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों ने अपने आसपास होने वाले परिवर्तनों के साथ तालमेल नहीं रखा है. गुणवत्ता के लिए निवेश की जरूरत होती है. लेकिन इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया है और उद्योगों की चुनौतियों को पूरा करने की दिशा में काम नहीं किया गया है. एक ऐसी दुनिया में, जहां मशीनें एक-दूसरे से संवाद करती हैं, उद्योग वास्तविक दुनिया को आभासी दुनिया से जोड़ते हैं और मशीनों को लाइव डाटा एकत्र करने, उनका विश्लेषण करने, यहां तक कि उनके आधार पर निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं, क्या हम यह वहन कर सकते हैं कि हमारे विश्वविद्यालयों या हमारे बच्चों को पीछे छोड़ दिया जाए?