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India Canada Relations: ट्रूडो की हठधर्मिता से टूटने के कगार पर संंबंध?, भारत-कनाडा रिश्ते बद से बदतर...

By शोभना जैन | Updated: October 18, 2024 05:15 IST

India Canada Relations: अविश्वास इस कदर बढ़ा दिया कि दोनों एक-दूसरे के अनेक राजनयिकों को अपने-अपने देशों से निकाल चुके हैं.

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ठळक मुद्देमामले में पूछताछ और जांच पड़ताल तक करने की बात कह डाली. उच्चायुक्त संजय वर्मा सहित अपने छह वरिष्ठ राजनयिकों को वापस बुला लिया.कनाडा के उपउच्चायुक्त सहित छह राजनयिकों को 19 अक्तूबर तक देश छोड़ने के लिए कह दिया.

India Canada Relations: भारत और कनाडा के बीच रिश्ते इस वक्त बद से बदतर होते जा रहे हैं. दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते टूट की कगार पर हैं. कनाडा ने आरोप लगाया था कि (खालिस्तान समर्थक) कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर उसकी पुलिस को ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो इस हत्याकांड में भारत सरकार के अधिकारियों की संलिप्तता की ओर संकेत करते हैं. निज्जर की हत्या में कथित संलिप्तता को लेकर कनाडा ने भारत पर जिस तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं उससे इस मामले को लेकर पिछले एक वर्ष से चल रहे पुराने विवाद ने इस बार इतना गंभीर रूप ले लिया है कि रिश्ते गिरावट की चरम सीमा पर पहुंचते जा रहे हैं. इस विवाद ने दोनों देशों  के बीच अविश्वास इस कदर बढ़ा दिया कि दोनों एक-दूसरे के अनेक राजनयिकों को अपने-अपने देशों से निकाल चुके हैं.

कनाडा ने तो वहां भारत के उच्चायुक्त सहित पांच अन्य वरिष्ठ  राजनयिकों  से निज्जर की हत्या से जुड़े मामले में पूछताछ और जांच पड़ताल तक करने की बात कह डाली. बाद में भारत ने उच्चायुक्त संजय वर्मा सहित अपने छह वरिष्ठ राजनयिकों को वापस बुला लिया. इससे पूर्व भारत ने कनाडा के उपउच्चायुक्त सहित छह राजनयिकों को 19 अक्तूबर तक देश छोड़ने के लिए कह दिया.

इस  विवाद से जुड़ा एक चिंताजनक घटनाक्रम यह भी  है कि अमेरिका ने इन तमाम घटनाओं के बाद कहा है कि भारत को निज्जर हत्याकांड के मामले में कनाडा की ओर से लगाए जा रहे आरोपों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.गौरतलब है कि पिछले साल सितंबर में कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने अपने देश की संसद में भारत के ‘एजेंटों’ पर निज्जर की हत्या में शामिल होने के आरोप लगाए थे.

भारत के विदेश मंत्रालय ने साफ तौर पर इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि ट्रूडो अगले वर्ष होने वाले चुनावों में अपनी कमजोर स्थिति को बदलने की मंशा से खालिस्तान समर्थक वोट बैंक लुभाने के लिए जांच की बात कर रहे हैं. भारत का साफ तौर पर कहना है कि कनाडा सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उग्र आतंकवादियों को भारतीय राजनयिकों और सिख समुदाय के नेताओं को डराने-धमकाने के लिए अपनी भूमि का इस्तेमाल करने दे रही है. भारत की यह शिकायत थी कि ट्रूडो अपनी धरती पर भारत विरोधी गतिविधियों और खालिस्तान की मुहिम के लिए हो रही लामबंदी पर अंकुश नहीं लगा रहे. निज्जर के प्रत्यर्पण को लेकर भारत के बार-बार अनुरोध को भी वह दरकिनार करते रहे.

भारत कनाडा संबंधों पर नजर रखने वाले एक जानकार के अनुसार दरअसल इस सबके साथ भारत-कनाडा संबंधों में टकराव का एक अहम बिंदु सिख अलगाववाद से जुड़ा है, जिसे ट्रूडो के शासन में और हवा मिली. कनाडा में इसकी जड़ें बहुत पुरानी हैं, जिसके तार ट्रूडो के पिता के शासनकाल से भी जुड़ते हैं लेकिन बदलते हालात में  अपना चुनावी भविष्य डावांडोल होते  देख वे ऐसे कदम उठा रहे हैं.

ट्रूडो की मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब खालिस्तान के समर्थक जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने मॉन्ट्रियल में हार से कुछ वक्त पहले ही अपना समर्थन वापस ले लिया था. ट्रूडो अल्पमत में सरकार चला रहे हैं, दो बार अविश्वास प्रस्ताव से भी बच कर निकल चुके हैं, लेकिन निश्चय ही ये उनकी राजनीति के लिए संकट का समय है.

उनकी अपनी पार्टी में भी उनके इस्तीफे की मांग बढ़ती जा रही है. कोविड के बाद से ही कनाडा के नागरिकों में भी असंतोष देखने को मिल रहा है. वहां आम लोगों को जीवन यापन के लिए खासा संघर्ष करना पड़ रहा है. इन सबके मद्देनजर, ट्रूडो का भारत के प्रति ऐसा रुख होना हैरान नहीं करता क्योंकि अगले साल कनाडा में चुनाव हैं.

जब ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने थे, तो शुरू के कुछ वर्षों तक उनकी छवि अच्छी  रही. लेकिन उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के नौवें साल में उनकी  रेटिंग 33 फीसदी पर आ पहुंची है.  रेटिंग में उनके विपक्षी नेता पियरे पोइलिवरे आगे चल रहे हैं. निश्चय ही उनकी यह बौखलाहट आगामी चुनाव में अपनी स्थिति को कमजोर आंके जाने को लेकर है, जिसके चलते घरेलू चुनौतियां डिप्लोमेसी पर हावी हो गई हैं.

जरूरी था कि दोनों देश इस विषम स्थिति को संवाद के जरिए सुलझाने की कोशिश करते. भारत ट्रूडो के आरोपों को बेतुका बताते हुए खारिज करता रहा है और कनाडा के खालिस्तान समर्थक सिखों का केंद्र बन जाने पर चिंता व्यक्त करता रहा है. देखना होगा कि कनाडा के अगले चुनावों तक ट्रूडो इस पूरे विवाद से कैसे निपटेंगे या फिर इसे लटकाए रखेंगे.

भारत की छवि एक ऐसे देश की है जो सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करता है और जो अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी बात रखने के लिए तेजी से अपनी पहचान बना रहा है. ऐसे में कनाडा के साथ रिश्तों में इतनी गिरावट उसकी छवि और डिप्लोमेसी के लिए एक बड़ी चुनौती है.

जरूरी है कि भारत अगला कोई कदम समग्रता से सभी पहलुओं पर विचार कर उसके प्रभाव को देखते हुए उठाए, साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सम्मुख भी अपनी स्थिति स्पष्ट करे जिससे उन्हें अपनी बात समझाई जा सके.

टॅग्स :नरेंद्र मोदीकनाडासिखजस्टिन ट्रूडो
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