वेदप्रताप का ब्लॉग: हर आदमी को न्याय आखिर कैसे मिले ?

By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 11, 2021 12:39 PM2021-08-11T12:39:02+5:302021-08-11T13:02:42+5:30

विज्ञान भवन के एक समारोह में उन्होंने कहा कि भारत के पुलिस थानों में गिरफ्तार लोगों के साथ जैसी बदसलूकी की जाती है, वह न्याय नहीं, अन्याय है. वह न्याय का अपमान है. गरीब आदमी भी इस न्याय व्यवस्था का हिस्सा है .

how every person can get the justice a big issue in india chief justice nv ramana also put his thought on it | वेदप्रताप का ब्लॉग: हर आदमी को न्याय आखिर कैसे मिले ?

फोटो सोर्स - सोशल मीडिया

Highlightsन्यायमूर्ति एनवी रमणा ने कहा कि लोगों के साथ सबसे ज्यादा अन्याय पुलिस थानों में होता है हमें गरीब और अशिक्षित लोगों के लिए भी न्याय को सुलभ बनाना होगा भारतीय कानून हिंदी में लिख जाएं ताकि सभी के लिए ये समझने योग्य हो

 भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमणा ने भारत की न्याय-व्यवस्था के बारे में दो-टूक बात कह दी है. विज्ञान भवन के एक समारोह में उन्होंने कहा कि भारत के पुलिस थानों में गिरफ्तार लोगों के साथ जैसी बदसलूकी की जाती है, वह न्याय नहीं, अन्याय है. वह न्याय का अपमान है. गरीब और अशिक्षित लोगों की कोई मदद नहीं करता. उन्हें कानूनी सहायता मुफ्त मिलनी चाहिए. उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि वे भी हमारी न्याय-व्यवस्था के अंग हैं. अदालतों तक पहुंचने का खर्च इतना ज्यादा है और मुकदमे इतने लंबे समय तक अधर में लटकते रहते हैं कि करोड़ों गरीब, ग्रामीण, अशिक्षित लोगों के लिए हमारी न्याय-व्यवस्था बेगानी बन गई है. आजकल तो डिजिटल डिवाइस है, वह भी उक्त लोगों के लिए बेकार है. दूसरे शब्दों में हमारी न्याय और कानून की व्यवस्था सिर्फ अमीरों, शहरियों और शिक्षितों के लिए उपलब्ध है.

न्यायमूर्ति रमणा ने हमारे लोकतंत्न की दुखती रग पर अपनी उंगली रख दी है लेकिन इस दर्द की दवा कौन करेगा? हमारी संसद करेगी. हमारी सरकार करेगी. ऐसा नहीं है कि हमारे सांसद और हमारी सरकारें न्याय के नाम पर चल रहे इस अन्याय को समझती नहीं हैं. उन्हें सब पता है. लेकिन वे स्वयं इसके भुक्तभोगी नहीं हैं. वे पहले से ही विशेषाधिकार संपन्न होते हैं. वर्तमान सरकार ने ऐसे कई कानूनों को रद्द करने का साहस जरूर दिखाया है लेकिन पिछले 75 साल में हमारे यहां एक भी सरकार ऐसी नहीं बनी, जो संपूर्ण कानून और न्याय-व्यवस्था पर पुनर्विचार करती. यह तो संतोष और थोड़ गर्व का भी विषय है कि इस घिसी-पिटी व्यवस्था के बावजूद हमारे कई न्यायाधीशों ने सच्चे न्याय के अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किए हैं.

न्याय-व्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ पहल एकदम जरूरी हैं. सबसे पहले तो सभी कानून मूलत: हिंदी में लिखे जाएं. बहस और फैसलों में भी! ये दोनों वादी और प्रतिवादी की भाषा में हों. वकीलों की लूटपाट पर नियंत्नण हो. गरीबों को मुफ्त न्याय मिले. हर मुकदमे पर फैसले की समय-सीमा तय हो. मुकदमे अनंत काल तक लटके न रहें. अंग्रेजों के जमाने में बने कई असंगत कानूनों को रद्द किया जाए. न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी लाभ के पद पर न रखा जाए ताकि उनके निर्णय सदा निष्पक्षता और निर्भयतापूर्ण हों. न्यायपालिका को सरकार और संसद के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नियंत्नणों से मुक्त रखा जाए. स्वतंत्न न्यायपालिका लोकतंत्न की सबसे मजबूत गारंटी है.

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