वेद प्रताप वैदिक का ब्लॉग: पद्मश्री सम्मान के सच्चे हकदार

By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 11, 2021 03:08 PM2021-11-11T15:08:26+5:302021-11-11T15:14:16+5:30

इस बार कई ऐसे लोगों को यह सम्मान मिला है, जो न तो अपनी सिफारिश खुद कर सकते हैं और न ही किसी से करवा सकते हैं। उन्हें तो अपने काम से काम होता है। उन्हें किसी पुरस्कार या तिरस्कार की परवाह नहीं होती। ऐसे ही लोग प्रेरणा-पुरुष होते हैं।

here is Meet true padma Shri awardees | वेद प्रताप वैदिक का ब्लॉग: पद्मश्री सम्मान के सच्चे हकदार

हरेकाला हजब्बा पद्म पुरस्कार से सम्मानित

Highlightsतुलसी गौड़ा ने अकेले ही 30 हजार से ज्यादा वृक्ष रोप दिएमोहम्मद शरीफ ने 25 हजार से अधिक लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया

इस बार 141 लोगों को पद्य पुरस्कार दिए गए। जिन्हें पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री पुरस्कार मिलता है, उन्हें उनके मित्र और रिश्तेदार प्राय: बधाइयां भेजते हैं लेकिन मैं या तो चुप रहता हूं या अपने कुछ अभिन्न मित्रों को सहानुभूति का संदेश भिजवाता हूं। सहानुभूति इसलिए कि ऐसे पुरस्कार पाने के लिए कुछ लोगों को पता नहीं कितने जतन करने पड़ते हैं. हालांकि सभी पुरस्कृत लोग ऐसे नहीं होते। 

लेकिन इस बार कई ऐसे लोगों को यह सम्मान मिला है, जो न तो अपनी सिफारिश खुद कर सकते हैं और न ही किसी से करवा सकते हैं। उन्हें तो अपने काम से काम होता है। इनमें से कई लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें न तो पढ़ना आता है और न ही लिखना, या तो उनके पास टेलीविजन सेट नहीं होता है और अगर होता भी है तो उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं होती। वे खबरें तक नहीं देखते। उन्हें किसी पुरस्कार या तिरस्कार की परवाह नहीं होती। 

ऐसे ही लोग प्रेरणा-पुरुष होते हैं। इस बार भी ऐसे कई लोगों को पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुने जाने पर मेरी हार्दिक बधाई और उस सरकारी पुरस्कार-समिति के लिए भी सराहना। कौन हैं, ऐसे लोग? ये हैं- हरेकाला हजब्बा, जो कि खुद अशिक्षित हैं और फुटपाथ पर बैठकर संतरे बेचते थे। उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई लगाकर कर्नाटक के अपने गांव में पहली पाठशाला खोल दी। 

दूसरे हैं, अयोध्या के मोहम्मद शरीफ, जिन्होंने 25 हजार से अधिक लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया। 1992 में रेलवे पटरी पर उनके बेटे के क्षत-विक्षत शव ने उन्हें इस पुण्य-कार्य के लिए प्रेरित किया। तीसरे, लद्दाख के चुल्टिम चोनजोर इतने दमदार आदमी हैं कि कारगिल क्षेत्र के एक गांव तक उन्होंने 38 किमी सड़क अकेले दम बनाकर खड़ी कर दी। 

चौथी, कर्नाटक की आदिवासी महिला तुलसी गौड़ा ने अकेले ही 30 हजार से ज्यादा वृक्ष रोप दिए। पांचवें, राजस्थान के हिम्मताराम भांभूजी भी इसी तरह के संकल्पशील पुरुष हैं। उन्होंने जोधपुर, बाडमेर, सीकर, जैसलमेर, नागौर आदि शहरों में हजारों पौधे लगाने का सफल अभियान चलाया है। 

छठी, महाराष्ट्र की आदिवासी महिला राहीबाई पोपरे भी देसी बीज खुद तैयार करती हैं, जिनकी फसल से उस इलाके के किसानों को बेहतर आमदनी हो रही है। उन्हें लोग ‘बीजमाता’ या सीड मदर कहते हैं। ऐसे अनेक लोग भारत में अनाम सेवा कर रहे हैं। उन्हें खोज-खोजकर सम्मानित किया जाना चाहिए ताकि देश में नि:स्वार्थ सेवा की लहर फैल सके।

Web Title: here is Meet true padma Shri awardees

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