हरीश गुप्ता का ब्लॉग: वैक्सीन के पहले डोज के लिए कौन आएगा आगे!

By हरीश गुप्ता | Published: December 10, 2020 11:52 AM2020-12-10T11:52:19+5:302020-12-10T11:53:40+5:30

हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने परीक्षण के दौरान टीके का डोज लेकर काफी हलचल मचा दी थी. लेकिन उसके बाद से केंद्र या राज्य का कोई भी अग्रणी मंत्री लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए, पहला डोज लेने की घोषणा करने के लिए आगे नहीं आया.

Harish Gupta's blog: Who will come forward for the first dose of vaccine! | हरीश गुप्ता का ब्लॉग: वैक्सीन के पहले डोज के लिए कौन आएगा आगे!

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

अगले कुछ हफ्तों में देश में चार टीके उपलब्ध होने की उम्मीद है. ऐसे में सरकार में इस बात को लेकर गहन अटकलें हैं कि पहला डोज कौन लेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और अन्य वैश्विक नेताओं द्वारा टीके का पहला डोज लेने की इच्छा जताए जाने के बाद यहां अटकलें तेज हैं कि कौन आगे आएगा.

हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने परीक्षण के दौरान टीके का डोज लेकर काफी हलचल मचा दी थी. लेकिन उसके बाद से केंद्र या राज्य का कोई भी अग्रणी मंत्री लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए, पहला डोज लेने की घोषणा करने के लिए आगे नहीं आया. सरकार में अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी देशवासियों को आश्चर्यचकित कर सकते हैं क्योंकि वह इसके लिए जाने जाते हैं. 

यदि प्रमुख राजनेता, नौकरशाह और प्रधानमंत्री के दस कार्यबलों के मुखिया कोविड का टीका लेते हैं तो इससे लोगों में टीकों के प्रति विश्वास बढ़ेगा. विज के हाल ही में संक्रमित होने और सीरम कोविशील्ड के कुछ विवादग्रस्त होने के बाद, लोगों के मन में कुछ उलझन पैदा हो गई है. 

लेकिन अब देश को टीके का बेसब्री से इंतजार है और लोगों की निगाहें नेताओं पर टिकी हैं कि क्या उनमें से कोई टीका लेने के लिए आगे आएगा. 70 साल से ऊपर के राजनेता टीका लेने के लिए प्रेरित हो सकते हैं. 

वाराणसी की हार का लगा झटका!

भाजपा 11 में से छह सीटें जीतकर यूपी काउंसिल के चुनावी नतीजों पर खुश हो सकती है. लेकिन प्रधानमंत्री गुस्से से भरे हुए हैं क्योंकि पार्टी ने अपने वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में दोनों सीटें खो दी हैं, जिन पर पिछले दस सालों से वह काबिज थी. शेष पांच सीटों में से तीन समाजवादी पार्टी और दो निर्दलीय उम्मीदवारों के पास गईं. कांग्रेस, बसपा खाली हाथ रहे.

प्रधानमंत्री किसी को भी इस हार के लिए दोषी नहीं ठहरा सकते हैं क्योंकि गुजरात के ही उनके अपने विश्वासपात्र सुनील ओझा वाराणसी के प्रभारी थे. हालांकि पूर्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह यूपी के प्रभारी हैं लेकिन वाराणसी के नहीं. ओझा रणनीतिकारों की एक टीम के प्रमुख हैं और सूक्ष्म से सूक्ष्म रणनीति बनाते हैं. वे भावनगर के पूर्व विधायक हैं और 2014 से वाराणसी में मोदी के अभियान की देखरेख करते आ रहे हैं. मूल रूप से विहिप के, ओझा एक समय मोदी के कट्टर प्रतिद्वंद्वी प्रवीण तोगड़िया के करीबी थे और 1990 के दशक में संघ परिवार के अयोध्या आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई थी. 

दिलचस्प बात यह है कि ओझा उन विधायकों के समूह में शामिल थे, जिन्होंने 2007 में मोदी के खिलाफ विद्रोह किया था और भाजपा छोड़ दी थी. वे एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव हार गए और बाद में महागठबंधन जनता पार्टी (एमजेपी) में शामिल हो गए, जो एक अन्य विद्रोही और मोदी सरकार में पूर्व गृह राज्य मंत्री रहे गोरधन झडफिया ने बनाई थी. दोनों 2011 में भाजपा में लौट आए. यूपी में 2021 में पंचायत चुनाव होंगे और 2022 में विधानसभा चुनाव होंगे.

अमरिंदर की अलग धुन क्यों!

यहां तक कि जब राहुल गांधी कृषि कानूनों पर मोदी सरकार की धज्जियां उड़ा रहे थे, कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह सबको चकित करते हुए तीन दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर पहुंचे. पार्टी को इस बैठक के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. जैसे कि यह पर्याप्त नहीं था, अमरिंदर सिंह ने प्रदर्शनकारी किसानों से सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने के बजाय एक सौहाद्र्रपूर्ण समाधान तक पहुंचने की अपील करते हुए एक और झटका दिया. 
निश्चित रूप से अमरिंदर सिंह द्वारा लिया गया सार्वजनिक स्टैंड पार्टी लाइन के अनुरूप नहीं था. अमरिंदर ने इन तीनों कानूनों को हटाने या वापस लेने पर जोर नहीं दिया. 

कहा जाता है कि अमरिंदर सिंह इन दिनों तनी हुई रस्सी पर चल रहे हैं, क्योंकि उनके दामाद चीनी मिल की बिक्री से संबंधित एक मामले का सामना कर रहे हैं और बेटे को ईडी का नोटिस मिल चुका है. वे अकाली दल-भाजपा के बीच दरार का भी लाभ उठाना चाहते हैं और अपनी ही बनाई राह पर चल रहे हैं. जहिर है, कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व असहाय नजर आ रहा है.

राहुल का गोवा के विधायक को झटका कर्नाटक से कांग्रेस विधायक लक्ष्मी हेब्बालकर ने अपने बेटे की शादी में शामिल होने के लिए राहुल और सोनिया गांधी को गोवा के होटल में आमंत्रित किया था. सोनिया गांधी अपनी गोवा यात्र के दौरान कैवेलोसिम के उसी पॉश रिसॉर्ट लीला होटल में रुकी थीं जहां शादी और रिसेप्शन होना था. 

कांग्रेस विधायक को उम्मीद थी कि अगर सोनिया गांधी नहीं तो कम से कम राहुल गांधी तो आ ही सकते हैं क्योंकि वे भी अपनी मां के साथ मौजूद थे. दुल्हन भद्रावती के विधायक संगमेश की भतीजी थी. मोबोर समुद्र तट पर पांच सितारा रिजॉर्ट-होटल कांग्रेसियों से भरा हुआ था और उनको इससे खुशी ही होती. लेकिन राहुल गांधी उन सब से दूर ही रहे.

Web Title: Harish Gupta's blog: Who will come forward for the first dose of vaccine!

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