हरीश गुप्ता का ब्लॉग: आरएसएस-कांग्रेस गुप्त संधि की स्क्रिप्ट टूटी
By हरीश गुप्ता | Updated: July 16, 2020 08:27 IST2020-07-16T08:27:45+5:302020-07-16T08:27:45+5:30
मोदी सरकार ने वाड्रा, नेशनल हेराल्ड इत्यादि के खिलाफ जांच शुरू की. लेकिन जल्दी ही कड़ी कार्रवाई को रोक दिया. हालांकि, गांधी वंश के वारिस ने मई 2019 में मोदी के सत्ता में वापस आने के बाद भी रोज एक ट्वीट करते हुए मोदी पर तीखा प्रहार जारी रखा.

कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे ने आत्मसमर्पण करने के लिए मध्य प्रदेश के उज्जैन को क्यों चुना, इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है.
ऐसा लगता है कि कांग्रेस और आरएसएस-भाजपा के बीच चार दशक पुरानी ‘संधि’ रद्द होने के कगार पर है. 80 के दशक में आरएसएस के शीर्ष नेताओंं और स्वर्गीय राजीव गांधी के बीच ‘गुप्त समझौता’ हुआ था. ये वार्ता इंदिरा गांधी के कहने पर शुरू की गई थी जो पंजाब में आतंकवाद से लड़ रही थीं. लेकिन यह राजीव गांधी ही थे जिन्होंने इंदिराजी की हत्या के बाद इसे मूर्तरूप दिया था. राजीव गांधी पार्टी नेता के रूप में इन वार्ताओं का हिस्सा थे. ‘गुप्त संधि’ में अपेक्षा व्यक्त की गई थी कि दोनों राजनीतिक समूह अपनी-अपनी राजनीतिक राह पर चलने के लिए स्वतंत्र होंगे और एक-दूसरे के खिलाफ कोई दमनकारी कार्रवाई नहीं करेंगे. न ही कोई व्यक्तिगत हमला करेंगे.
राजीव गांधी ने बालासाहब देवरस और भाऊराव देवरस से कई बार मुलाकात की थी और उनकी सरकार का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ दृष्टिकोण इन वार्ताओं का ही नतीजा था. यह स्क्रिप्ट अब टूट रही है और संधि की धज्जियां उड़ रही हैं. यह सब राफेल सौदे पर राहुल गांधी के पीएम मोदी के खिलाफ ‘चौकीदार चोर है’ अभियान के साथ शुरू हुआ.
मोदी सरकार ने वाड्रा, नेशनल हेराल्ड इत्यादि के खिलाफ जांच शुरू की. लेकिन जल्दी ही कड़ी कार्रवाई को रोक दिया. हालांकि, गांधी वंश के वारिस ने मई 2019 में मोदी के सत्ता में वापस आने के बाद भी रोज एक ट्वीट करते हुए मोदी पर तीखा प्रहार जारी रखा. इससे क्षुब्ध होकर ‘परिवार’ के लिए एसपीजी कवर वापस ले लिया गया और गांधी परिवार के ट्रस्टों की जांच के लिए अमित शाह द्वारा एक उच्चस्तरीय अंतर-मंत्रालयीन जांच समिति गठित की गई. मोदी ने कथित रूप से आरएसएस के शीर्ष नेताओं के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की जब वे दो हफ्ते पहले जे.पी. नड्डा और अन्य के साथ उनके आवास पर मिले थे. इस कड़वे अध्याय के परिणाम का इंतजार करना होगा.
विकास दुबे ने उज्जैन में क्यों किया समर्पण?
कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे ने आत्मसमर्पण करने के लिए मध्य प्रदेश के उज्जैन को क्यों चुना, इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है. पता चला है कि भगोड़े विकास दुबे ने बिचौलियों के माध्यम से भाजपा के शक्तिशाली मंत्री नरोत्तम मिश्रा से संपर्क किया. दुबे की एकमात्र मांग थी कि उसे आत्मसमर्पण करने की अनुमति दी जाए और पुलिस उसे जिला मजिस्ट्रेट के पास ले जाए. नरोत्तम मिश्रा कभी यूपी के कानपुर क्षेत्र में भाजपा के मामलों के प्रभारी थे और संयोग से, अपनी अन्य जिम्मेदारियों के अलावा उज्जैन जिले के प्रभारी हैैं.
मध्य प्रदेश के प्रत्येक मंत्री के पास एक जिले का प्रभार है. मिश्रा ने तुरंत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विश्वास में लिया और रणनीति बनने लगी. यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का एकमात्र मिशन किसी भी कीमत पर दुबे को प्राप्त करना था. इस प्रकार, मुहूर्त तय किया गया और सब कुछ योजना के मुताबिक चला. लेकिन दुबे को जो झटका लगा वह यह कि उसे जिला मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करने की बजाय सीधे यूपी पुलिस को सौंप दिया गया.
जब आनंद शर्मा आपे से बाहर हुए!
राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा इन दिनों नाराज चल रहे हैं. गुलाम नबी आजाद द्वारा राज्यसभा के टिकट से इनकार किए जाने के बाद वे विपक्ष का नेता बनने की उम्मीद कर रहे थे. इसके बजाय, आलाकमान ने राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे को लाने का फैसला किया जो अंतत: विपक्ष के नेता बन सकते हैं. वे लोकसभा चुनावों में हार गए थे और लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता थे. आनंद शर्मा के सीडब्ल्यूसी की पिछली बैठक में भड़कने की खबर है, जब इस ओर संकेत किया गया कि कई वरिष्ठ नेता मोदी के खिलाफ जोरदार तरीके से बात नहीं करते हैं. शर्मा ने कहा कि कई नेता जिन्होंने पहले पार्टी छोड़ दी है और सीडब्ल्यूसी में बैठे हैैं, उन्होंने शायद ही मोदी के खिलाफ बोला हो. इसके विपरीत, वे खुद मोदी की आलोचना करने में हमेशा सबसे आगे रहे- चाहे वह राज्यसभा में हो या बाहर. अंदरूनी सूत्रों की मानें तो उन्होंने खड़गे का नाम भी उनमें से एक के रूप में लिया था. देखना होगा कि इस मामले में कितनी झड़पें और होती हैं.