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हरीश गुप्ता का ब्लॉग: इंदिरा गांधी के नक्शेकदम पर चल पड़े हैं पीएम मोदी! 2024 के चुनाव से पहले बड़ी तैयारी

By हरीश गुप्ता | Updated: April 20, 2023 07:33 IST

सूत्रों के अनुसार पीएम नरेंद्र मोदी 2024 का लोकसभा चुनाव ‘भ्रष्टाचार’ के मुद्दे पर लड़ना चाहते हैं. उन्होंने विपक्षी पार्टियों के एकजुट होने की कवायद के बीच यह कहते हुए 'जंग' छेड़ दी है कि 'मैं देश से भ्रष्टाचार हटाना चाहता हूं और ये विपक्षी दल मुझे हटाने के लिए गिरोह बना रहे हैं.'

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अपने खिलाफ एकजुट हो रही विपक्षी पार्टियों के मामले में मोदी दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रास्ते पर चलते नजर आ रहे हैं. हालांकि इनमें से अधिकांश राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस की घोर विरोधी हैं, फिर भी वे 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले व्यावहारिक एकता बनाने के लिए पूरा जोर लगा रही हैं. इंदिरा गांधी ने ‘सिंडीकेट’ का हिस्सा रहे अधिकांश वरिष्ठ नेताओं से छुटकारा पाया था, जिसमें के. कामराज, अतुल्य घोष, एन. संजीव रेड्डी, एस. के. पाटिल आदि शामिल थे. 

विडंबना यह थी कि इस सिंडीकेट ने ही 1966 में उन्हें प्रधानमंत्री बनाया था और बाद में वे बाहर हो गए क्योंकि ‘गूंगी गुड़िया’ (राजनीतिक गलियारे में इंदिरा गांधी का उपनाम) ने बोलना शुरू कर दिया था. ‘सिंडीकेट’ और भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी ने गरीबों के लिए कई लोकलुभावन घोषणाएं की थीं. उनका नारा था, ‘मैं गरीबी हटाना चाहती हूं और ये लोग मुझे हटाना चाहते हैं.’ 

इसका चमत्कारिक असर पड़ा और उन्होंने लोकसभा की 521 में से 352 सीटों पर जीर हासिल की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इंदिरा गांधी के नक्शेकदम पर चल रहे हैं. उन्होंने सभी विपक्षी पार्टियों के खिलाफ यह कहते हुए जंग छेड़ दी है कि ‘‘मैं देश से भ्रष्टाचार हटाना चाहता हूं और ये विपक्षी दल मुझे हटाने के लिए गिरोह बना रहे हैं.’’ 

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मोदी विपक्षी पार्टियों को एकजुट होने के लिए उकसा रहे हैं क्योंकि वे 2024 का लोकसभा चुनाव ‘भ्रष्टाचार’ के मुद्दे पर लड़ना चाहते हैं. उन्होंने सीबीआई, ईडी और अन्य एजेंसियों से भी कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में कोई कमी नहीं आनी चाहिए. यह उल्लेख करना दिलचस्प होगा कि मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में या अन्य कहीं भी इंदिरा गांधी का नाम कभी नहीं लिया, जबकि नेहरू, राजीव और अन्य की वे तीखी आलोचना करते रहे हैं.

पुलिस मुठभेड़ों की गाथा

पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने वालों के रिकॉर्ड आंकड़ों के कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सुर्खियों में हैं. मार्च 2017 में उनके सत्ता में आने के बाद से 10900 से अधिक पुलिस एनकाउंटर हुए हैं, जिसमें 23300 कथित अपराधी गिरफ्तार किए गए हैं, 5046 घायल हुए हैं और 185 मारे गए हैं. योगी आदित्यनाथ अडिग हैं. बल्कि हाल ही में उन्होंने विधानसभा में गरजते हुए कहा कि ‘‘हम माफिया को मिट्टी में मिला देंगे.’’ लेकिन जिस तरह से अतीक अहमद और उसके भाई को अस्पताल परिसर के बाहर, टीवी कैमरों के सामने गोली मारी गई है, उससे तय है कि उनके सामने आगे कठिन चुनौती आने वाली है. 

भाजपा हाईकमान इस पर करीब से नजर रख रहा है, जबकि नॉर्थ ब्लॉक (गृह मंत्रालय) फैसले की प्रतीक्षा कर रहा है, क्योंकि इन हत्याओं से अदालत को दखल देना पड़ सकता है. कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि नेताओं द्वारा एक्स्ट्रा ज्यूडीशियल किलिंग को महिमामंडित किए जाने से अराजकता के वातावरण को बढ़ावा मिलेगा. लेकिन माफिया को खत्म करने के लिए यह रास्ता चुनने वाले योगी कोई पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं. 

1990 के दशक से भारत का इतिहास फर्जी मुठभेड़ों की घटनाओं से भरा पड़ा है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 1993 से 2009 के बीच फर्जी मुठभेड़ों के 2560 मामले दर्ज किए थे. 2000 से 2017 के बीच मुठभेड़ों का आंकड़ा 1782 था. इसमें से 1224 एनकाउंटर फर्जी थे. 1990 के दशक में मुंबई पुलिस अंडरवर्ल्ड के नेटवर्क को खत्म करने के लिए मुठभेड़ों में मारने का तरीका अपनाती थी और जल्दी ही यह तरीका पंजाब जैसे अन्य राज्यों में भी फैल गया. 

‘सुपर कॉप’ के.पी.एस. गिल ने नब्बे के दशक में पंजाब में आतंकवाद का खात्मा करने में सफलता पाई थी. उन्हें पद्म पुरस्कार भी प्रदान किया गया था. यह अलग बात है कि इन एक्स्ट्रा ज्यूडीशियल किलिंग में अनेक पुलिस अधिकारियों को जेल जाना पड़ा है. संयोगवश, मुंबई के शीर्ष पुलिस अधिकारी  जे. एफ. रिबेरो को विशेष तौर पर पंजाब भेजा गया था, जहां उन्होंने ‘बुलेट फॉर बुलेट’ की नीति अपनाई. बाद में, गिल ने अपने ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ की सफलता से पांसा पलट दिया. एनएचआरसी की रिपोर्ट कहती है कि चाहे वह राजस्थान, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, दिल्ली, उत्तराखंड, असम हो या प. बंगाल - सभी राज्यों में बड़ी संख्या में एनकाउंटर हुए हैं.

सलमान खुर्शीद की सरप्राइज एंट्री

जब से पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद अपना आखिरी लोकसभा चुनाव हारे हैं, वे पूरी तरह से राजनीतिक निर्वासन में थे. उन्होंने अपनी वकालत की प्रैक्टिस पर ध्यान देना शुरू कर दिया था. लेकिन एक सुबह वे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कुछ अन्य चुनिंदा नेताओं के साथ महत्वपूर्ण बैठक में शामिल पाए गए. सभी विपक्षी पार्टियों के बीच एकजुटता के लिए कांग्रेस और नीतीश कुमार के बीच यह पहली औपचारिक बैठक थी. लेकिन क्यों इस महत्वपूर्ण बैठक के लिए खुर्शीद को अप्रत्याशित रूप से बुलाया गया? 

पता चला है कि खड़गे ने खुर्शीद को बैठक में शामिल होने के लिए बुलाया था. माना जाता है कि खुर्शीद और नीतीश कुमार के बीच कभी मधुर संबंध थे और खड़गे उनकी सेवाओं का उपयोग बिहार के संबंध में करना चाहते हैं.

यह उल्लेख करना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार ने नेताओं से यह भी कहा कि 2017 में सोनिया गांधी के साथ बैठक के बाद उन्होंने करीब एक माह तक इस बात के लिए इंतजार किया था कि क्या कांग्रेस उनके साथ राष्ट्रीय स्तर पर काम करने को राजी है. तब कांग्रेस की ओर से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं आने के कारण उनके पास भाजपा के साथ जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

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