हरीश गुप्ता का ब्लॉग: CM योगी की बढ़ती ही जा रही हैैं मुसीबतें!
By हरीश गुप्ता | Published: October 15, 2020 01:44 PM2020-10-15T13:44:07+5:302020-10-15T13:44:07+5:30
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान का निधन ऐसे समय में हुआ है जब उनके बेटे चिराग पासवान ने एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है. चिराग के पिता ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कई राजनीतिक जुए खेले और किस्मत हमेशा उनके साथ रही.
एक समय था जब भगवाधारी योगी आदित्यनाथ का ग्राफ पार्टी के सभी मुख्यमंत्रियों के बीच सबसे ऊपर था. 47 वर्षीय युवा संन्यासी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी पीछे छोड़ दिया था. सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहट थी कि योगी अब अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चौहान जैसे लोगों के क्लब में शामिल हो गए हैं और पीएम पद के संभावित उत्तराधिकारी हैं. लेकिन अब नहीं! आदित्यनाथ ने मामलों को जिस तरह संभाला है, विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामलों को, उससे उनकी छवि को बहुत आघात पहुंचा है. चाहे वह कुलदीप सिंह सेंगर का मामला हो या स्वामी चिन्मयानंद का, यूपी के सीएम तेजी से काम करने में नाकाम रहे. अब लड़की ने चिन्मयानंद के खिलाफ अपने बलात्कार के आरोप को वापस ले लिया है. कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने दुर्दांत अपराधियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है. लेकिन हाथरस मामले ने योगी की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है. यह भी सामने आया है कि वे लखनऊ में मुट्ठी भर नौकरशाहों के कैदी बनकर रह गए हैैं. उनके एक समुदाय विशेष का पक्ष लेने के आरोप भी चर्चा में हैं और वे उनके खिलाफ कदम नहीं उठाते हैं. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी उनसे नाखुश है क्योंकि वह कुछ मामलों में उसकी नहीं सुनते हैं. अमित शाह के साथ उनका जाहिरा कारणों से अच्छा तालमेल नहीं है और लखनऊ में मौजूद उनके अधिकांश आलोचक दिल्ली में संरक्षण पाते हैं. यूपी के संगठनात्मक प्रभारी सुनील बंसल के साथ उनकी चल रही लड़ाई ने उनके संकट को और बढ़ा दिया है. एक तरह से, वह अब अकेले लड़ रहे हैं, जबकि मुसीबतें बढ़ रही हैं.
जगन भारी संकट में क्यों फंसे!
अगर योगी आदित्यनाथ को लखनऊ में कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है, तो आंध्र प्रदेश में उनके समकक्ष वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी भी भारी संकट में फंसे हैं. जाहिरा तौर पर, वे देश के पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस एन. वी. रमन्ना और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कई न्यायाधीशों के खिलाफ पत्र लिखकर भारत के प्रधान न्यायाधीश से जांच की मांग की. दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के ऐसे जज पर आरोप लगाए गए हैं जो अप्रैल 2021 में अगला सीजेआई बनने की कतार में हैं. जगन ने ऐसा अभूतपूर्व कदम क्यों उठाया? अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि जगन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह देश के शायद एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनके खिलाफ 31 आपराधिक मामले दर्ज हैं. उनमें से 11 की सीबीआई द्वारा जांच की जा रही है और सात मामलों में प्रवर्तन निदेशालय उनकी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक धन को लेकर जांच कर रहा है. मामलों की सुनवाई कछुआ चाल से चल रही है. 16 सितंबर को न्यायमूर्ति रमन्ना ने देश भर के उच्च न्यायालयों को आदेश दिया था कि सभी मौजूदा और पूर्व सांसदों, विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले एक साल के भीतर निपटाए जाएं. देश की किसी भी अदालत द्वारा मंजूर किए गए सभी स्टे निष्प्रभावी किए जाएं और सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री उनकी निगरानी करेगी. यदि दैनंदिन आधार पर सुनवाई शुरू की जाती है, तो सबसे पहले कौन पीड़ित होगा? जाहिर है, जगन नींद से जागे और जज के खिलाफ ही विवादास्पद पत्र लिख अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली.
चिराग पासवान के लिए बड़ी चुनौती
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान का निधन ऐसे समय में हुआ है जब उनके बेटे चिराग पासवान ने एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है. चिराग के पिता ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कई राजनीतिक जुए खेले और किस्मत हमेशा उनके साथ रही. लोकसभा चुनावों से पहले वे जिस भी गठबंधन में शामिल हुए, जीत उसे ही मिली. अब सभी की नजरें चिराग पासवान पर टिकी हैं, जो उनके वारिस हैं. निश्चित रूप से उन्हें भारी सहानुभूति मिलेगी और नीतीश कुमार के जदयू वोट बैंक में कटौती होगी. बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान लोजपा ने 42 सीटों पर भाजपा के साथ चुनाव लड़ा था. तब वह बमुश्किल 2 सीटें जीत सकी और 4.38% वोट हासिल किए. जनमत सर्वेक्षकों का कहना है कि लोजपा कम से कम 25 सीटों पर जदयू को नुकसान पहुंचाने में सक्षम है. यह 10 नवंबर को चुनावों के बाद बिहार में भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने में मदद कर सकती है. क्या भाजपा चिराग को पुरस्कृत करेगी? कोई नहीं जानता कि पीएम के दिमाग में क्या चल रहा है.
तुषार मेहता अगले एजी बनेंगे!
अस्सी से ऊपर की उम्र के के.वेणुगोपाल द्वारा हाथ खड़े कर दिए जाने के बाद यह लगभग तय है कि सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता भारत के अगले अटॉर्नी जनरल होंगे. वेणुगोपाल को पद पर बनाए रखने के लिए मोदी सरकार उत्सुक थी. लेकिन वेणुगोपाल ने इस प्रस्ताव को विनम्रता से अस्वीकार कर दिया और पीएम से कहा कि उन्हें जल्द ही एक उत्तराधिकारी ढूंढना होगा. बड़ी कठिनाई के साथ, उन्हें एक वर्ष की अवधि के लिए पद पर बने रहने के लिए राजी किया गया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी विश्वासपात्र तुषार मेहता कतार में आगे हैं. 2014 में दिल्ली आने के बाद से वे पर्याप्त अनुभव हासिल कर चुके हैैं- पहले अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल के रूप में और बाद में 2017 में सॉलिसिटर जनरल के रूप में. वास्तव में तुषार मेहता ही सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.