हरीश गुप्ता का ब्लॉग: शिवसेना और भाजपा की बिछड़ी हुई जोड़ी, आखिर क्या है भविष्य

By हरीश गुप्ता | Published: July 8, 2021 10:22 AM2021-07-08T10:22:59+5:302021-07-08T10:22:59+5:30

शिवसेना में कई ऐसे लोग हैं कि जिन्हें लगता है कि कि भाजपा के साथ उनका समझौता अभी भी खत्म नहीं हुआ है. ऐसा भी लगता है कि भले ही दोनों पार्टियों का रास्ता अलग-अलग हो गया हो लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और उद्धव ठाकरे ने आत्मीयता बरकरार रखी है.

Harish Gupta blog: Shiv Sena and BJP relation what would be the future | हरीश गुप्ता का ब्लॉग: शिवसेना और भाजपा की बिछड़ी हुई जोड़ी, आखिर क्या है भविष्य

शिवसेना और भाजपा के रिश्ते का भविष्य क्या होगा (फाइल फोटो)

जब शिवसेना नेता संजय राऊत ने भाजपा-शिवसेना के रिश्ते की तुलना आमिर खान-किरण राव से की तो शायद वे हद पार कर गए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के करीबी सूत्र ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘हम तलाकशुदा नहीं हैं. हम एक ही विचारधारा से बंधे हैं. हम उस बिछड़े हुए जोड़े की तरह हैं जो मजबूरी में अलग-अलग रहता है.’’ 

शिवसेना में बहुत से लोगों को लगता है कि भाजपा के साथ उनका समझौता खत्म नहीं हुआ है बल्कि विलंबित है. इसलिए, शिवसेना के कुछ आलोचकों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी और उद्धव ठाकरे के बीच संबंधों में खटास नहीं आ सकती. 

यह विरोधाभास ओडिशा सहित कई राज्यों में देखा जा सकता है, जहां भाजपा प्रमुख विपक्षी दल है. लेकिन उसने कभी भी मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पर हमला नहीं किया. इसी प्रकार वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस.जगन मोहन रेड्डी के सीबीआई, ईडी के आरोपों का सामना करने के बावजूद, उन पर हमला करने से बचती है. 

भाजपा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की आलोचना करने के बावजूद एक सीमा से बाहर नहीं जाती. केंद्रीय नेतृत्वपूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा को भी नाराज नहीं करता है. हालांकि तेलंगाना के मामले में भाजपा ने टीआरएस नेता और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव पर जमकर हमला बोला है. 

भाजपा ने यही मापदंड पश्चिम बंगाल के लिए भी अपनाया है. लेकिन पंजाब के मामले में, उसने किसानों के आंदोलन को संभालने के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की निजी तौर पर सराहना की है.

अकालियों के लिए भी दरवाजे बंद होने के बावजूद वह बादल पर हमला करने से बच रही है. इसलिए, राज्य इकाई खुद को मजबूत करने के लिए उद्धव ठाकरे पर हमले कर सकती है और केंद्र का उसको वरदहस्त भी मिल सकता है. 

प्रधानमंत्री ने फडणवीस को महाराष्ट्र में कोई ‘चमत्कार’ होने तक अकेले जाने के लिए तैयार रहने की छूट दे दी है. लेकिन उद्धव के साथ प्रधानमंत्री का निजी सौजन्य बरकरार रहेगा.  

नीतीश नहीं हैं उद्धव

दिल्ली में आठ जून को प्रधानमंत्री और उद्धव ठाकरे के बीच निजी मुलाकात के ब्यौरे सामने आने लगे हैं. दोनों ने इस बारे में सार्वजनिक तौर पर एक शब्द नहीं बोला है. दोनों ने ही आत्मीयता बरकरार रखी है. यहां तक कि जब केंद्रीय गृह मंत्री और उद्धव ठाकरे के बीच जुबानी जंग हुई, तब भी प्रधानमंत्री दूर ही रहे. 

उन्होंने अपनी तरफ से यह भी सुनिश्चित किया कि उद्धव को राज्यपाल द्वारा महाराष्ट्र विधान परिषद में नामित किया जाए, जो इसमें देरी कर रहे थे. यह कोई रहस्य नहीं है कि प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र के मामलों की कमान अपने हाथों में ले ली है. 

प्रधानमंत्री चाहते हैं कि 48 लोकसभा सीटों वाले महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता में आए. वे यहां एक भी सीट हारने का जोखिम नहीं उठा सकते, क्योंकि भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने 2019 में यहां 42 सीटें जीती हैं. लेकिन भाजपा पीछे की सीट पर बैठ कर यह इंतजार नहीं कर सकती कि कोई हादसा हो और शिवसेना गठबंधन से बाहर निकले. 

इसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री के बीच दिल्ली में बैठक हुई. अब पता चला है कि दोनों नेताओं ने महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति पर चर्चा की और ऐसा लगता है कि रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल रही है. लेकिन पीएमओ के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘‘आपके लोगों ने मुझे वहां ढकेला है.’’ 

कहने का आशय था कि उन्होंने कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन के बारे में सोचा भी नहीं था लेकिन भाजपा नेतृत्व ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया. उन्होंने यह भी समझाया कि वे एकतरफा कदम उठाते हुए तीन पार्टियों के गठबंधन को तोड़ कर आधी रात के तख्तापलट की तरह भाजपा से हाथ नहीं मिला सकते. मौजूदा गठबंधन से बाहर निकलने के लिए कोई ठोस कारण चाहिए. 

हालांकि उन्होंने किसी भी राज्य के नेता का नाम नहीं लिया, लेकिन सूत्रों का कहना है कि उनके दिमाग में नीतीश कुमार थे. उद्धव बिहार का नीतीश कुमार नहीं बनना चाहते, जिन्होंने सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए पाला बदल लिया. उद्धव ने यह भी कहा कि कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन में शामिल होने के बाद भी उन्होंने विचारधारा के साथ कोई समझौता नहीं किया है.   

उन्होंने सुनिश्चित किया कि कोई भी शिवसेना नेता कभी भी प्रधानमंत्री या केंद्र के खिलाफ कुछ न बोले. उद्धव ने संकेत दिया कि वे खुद महाविकास आघाड़ी की नाव को नहीं डुबाएंगे. प्रधानमंत्री ने अपनी तरफ  से कहा कि भाजपा उनके पांच साल के कार्यकाल तक मुख्यमंत्री बने रहने से खुश होगी. 

शिवसेना के संजय राऊत ने भी यह कहकर इन्हीं भावनाओं को प्रतिध्वनित किया कि ‘‘अगर भाजपा ने शिवसेना को इस हद तक नहीं धकेला होता तो आज वह सत्ता में होती.’’

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