Guru Purnima 2025: शिक्षा के लिए गुरु की संस्था को प्राणवान बनाना जरूरी

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: July 10, 2025 11:57 IST2025-07-10T11:57:07+5:302025-07-10T11:57:07+5:30

आज शिक्षा केंद्र से बाहर की दुनिया गुरु-शिष्य की भावनाओं और प्रेरणाओं को प्रदूषित कर रही है. अध्यापक परीक्षा-गुरु हो रहा है, वित्त की इच्छा प्रबल होती जा रही है और नैतिक मूल्य अप्रासंगिक. गुरु को भी समाज में अब पहले जैसा आदर नहीं मिलता.  शिक्षा की गुणवत्ता घट रही है.

Guru Purnima 2025 It is necessary to give vitality to the institution of Guru for education | Guru Purnima 2025: शिक्षा के लिए गुरु की संस्था को प्राणवान बनाना जरूरी

Guru Purnima 2025: शिक्षा के लिए गुरु की संस्था को प्राणवान बनाना जरूरी

आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा भारत में ‘व्यास-पूर्णिमा’ के नाम से प्रसिद्ध है.  इस दिन गुरु का पूजन-वंदन करने की प्रथा है.  गुरु को भारतीय परम्परा में बड़ा ऊंचा स्थान दिया गया है. गुरु के प्रति कृतज्ञता के भाव को व्यक्त करने के लिए गुरु पूर्णिमा का अवसर एक निमित्त बनता है.  

इस अवसर पर महर्षि व्यास का स्मरण प्रासंगिक होते हुए भी प्रायः विस्मृत रहता है. महर्षि पराशर तथा निषाद कन्या मत्स्यगंधा सत्यवती के पुत्र कृष्ण द्वैपायन भारतीय ज्ञान परम्परा के अधिष्ठाता कहे जा सकते हैं. वे श्याम वर्ण के थे इसलिए कृष्ण कहे गए और यमुना नदी के द्वीप में पैदा होने से द्वैपायन कहा गया.

व्यास का शाब्दिक अर्थ ‘विस्तार’ होता है और महर्षि वेद व्यास ने वेदों का विस्तार कर मंत्रों की प्रकृति को देखते हुए वेद संहिता के चार विभाग कर व्यवस्थित किया. बाद में पुराणों का सृजन किया. बादरायण इसलिए कहा गया कि यमुना नदी के जिस द्वीप में उनका जन्म हुआ था वहां बदरी (बेर) वृक्ष प्रचुर मात्रा में थे. व्यास को विष्णु का अंशावतार भी कहा जाता है. 

यह भी रोचक है कि व्यास स्वयं महाभारत के घटनाक्रम में एक प्रमुख पात्र भी हैं. वस्तुतः वे पांडव वंश के प्रवर्तक हैं. धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर उन्हीं के पुत्र हैं.  महाभारत कथा में व्यास, भीष्म और कृष्ण अनेक अवसरों पर एक साथ मिलते हैं. परम्परा में व्यास को चिरजीवी यानी अजर अमर कहा गया है. तपस्वी, विद्वान और महाकवि व्यास की कीर्ति अतुलनीय है. 

उन्होंने अनेकानेक कार्य किए. महाभारत के वर्णन के अनुसार जन्म लेते ही व्यास कुमार रूप हो गए  थे.  माता से अनुमति मांगी कि तपस्या करने के लिए प्रस्थान करना है. पर साथ में यह भी कहा कि जब भी वह याद करेंगी, पहुंच जाएंगे. इस वचन का जीवन भर उन्होंने पालन किया. बदरिकाश्रम उनकी तपस्थली रही. विशाल महाभारत ग्रंथ और अठारह पुराणों की रचना का श्रेय महर्षि व्यास को जाता है.  

गुरु और व्यास की परम्परा आज भी प्रचलित है. बहुत से परम्परागत परिवारों में गुरु मुख होना अभी भी गृहस्थ जीवन का महत्वपूर्ण कार्य बना हुआ है. कथा कहने वाले व्यास कहे जाते हैं और उनका आसन व्यास गद्दी. आज कथा-वाचन ने व्यवसाय का भी रूप ले लिया है और अनेक तरह के लोग इसकी दौड़ में शामिल हैं.  कथा-श्रवण करने वालों में अभी भी धर्म भावना है और दूर-दूर से कष्ट सह कर भी लोग कथा सुनने आते हैं.

वर्तमान युग में ज्ञान की ही महिमा है. प्रौद्योगिकी में आ रहे तेजी से बदलाव के साथ गुरु की संस्था के अच्छे-बुरे तमाम विकल्प आने लगे हैं.  गूगल गुरु और चैट जीपीटी जैसे कृत्रिम मेधा (एआई) वाले गुरु धमक रहे हैं पर वह नाकाफी है. गुरु का महत्व अभी भी शेष है. गुरु से विद्यार्थी को जीवंत संस्पर्श मिलता है. समाज, संस्कृति और राजनीति हर क्षेत्र में गुरु की भूमिका क्रांतिकारी रही है. 

आज शिक्षा केंद्र से बाहर की दुनिया गुरु-शिष्य की भावनाओं और प्रेरणाओं को प्रदूषित कर रही है. अध्यापक परीक्षा-गुरु हो रहा है, वित्त की इच्छा प्रबल होती जा रही है और नैतिक मूल्य अप्रासंगिक. गुरु को भी समाज में अब पहले जैसा आदर नहीं मिलता.  शिक्षा की गुणवत्ता घट रही है. निष्प्राण होती शिक्षा के लिए गुरु की संस्था को प्राणवान बनाना आवश्यक है.
 

Web Title: Guru Purnima 2025 It is necessary to give vitality to the institution of Guru for education

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