गुरचरण दास का ब्लॉगः पूंजीवाद के भविष्य पर उठते सवाल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 26, 2019 07:16 PM2019-09-26T19:16:16+5:302019-09-26T19:16:16+5:30

वर्ष 2016 में हार्वर्ड के एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में 18 से 29 वर्ष आयुवर्ग के आधे युवाओं ने पूंजीवाद को खारिज कर दिया था(इनमें से एक तिहाई ने समाजवाद का पक्ष लिया). दो साल बाद 2018 में हुए एक गैलप पोल ने इस निष्कर्ष को सही ठहराया, जिसमें बताया गया कि उक्त आयु वर्ग के सिर्फ 45 प्रतिशत युवा ही पूंजीवादी व्यवस्था के बारे में सकारात्मक राय रखते हैं.

Gurcharan Das's blog: Questions arising on the future of capitalism | गुरचरण दास का ब्लॉगः पूंजीवाद के भविष्य पर उठते सवाल

अमेरिकी कंपनियों के इन नए लक्ष्यों के भारत में अपरिहार्य परिणाम होंगे क्योंकि हम वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं.

Highlightsपूंजीवाद के विफल होने के डर ने ही अमेरिका में 180 कंपनियों के सीईओ को एक बयान जारी करने के लिए मजबूर किया है.किसी धोखाधड़ी की गुंजाइश के बिना खुली प्रतिस्पर्धा हो’’ फ्रीडमैन की टिप्पणी इतनी प्रभावशाली थी कि इसे कानून में शामिल कर लिया गया था.

वर्ष 2007-08 की वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद से पूंजीवाद रक्षात्मक रहा है. व्यापक असमानता, शीर्ष अधिकारियों की भारी-भरकम तनख्वाह और गहराते अविश्वास के कारण पश्चिम में युवा वर्ग पूंजीवादी बाजार प्रणाली से दूर हुआ है.

वर्ष 2016 में हार्वर्ड के एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में 18 से 29 वर्ष आयुवर्ग के आधे युवाओं ने पूंजीवाद को खारिज कर दिया था(इनमें से एक तिहाई ने समाजवाद का पक्ष लिया). दो साल बाद 2018 में हुए एक गैलप पोल ने इस निष्कर्ष को सही ठहराया, जिसमें बताया गया कि उक्त आयु वर्ग के सिर्फ 45 प्रतिशत युवा ही पूंजीवादी व्यवस्था के बारे में सकारात्मक राय रखते हैं.

पूंजीवाद के विफल होने के डर ने ही अमेरिका में 180 कंपनियों के सीईओ को एक बयान जारी करने के लिए मजबूर किया है. यह लाभ और शेयरधारकों की प्रधानता के वर्तमान सिद्धांत का स्थान लेता है, जिसके बारे में 1970 में नोबल पुरस्कार विजेता मिल्टन फ्रीडमैन का मशहूर कथन था : ‘‘व्यवसाय की एक और केवल एक सामाजिक जिम्मेदारी है - अपने संसाधनों का उपयोग कर अपने मुनाफे को बढ़ाना, जिसमें किसी धोखाधड़ी की गुंजाइश के बिना खुली प्रतिस्पर्धा हो’’ फ्रीडमैन की टिप्पणी इतनी प्रभावशाली थी कि इसे कानून में शामिल कर लिया गया था.

नए बयान में कंपनियों के उद्देश्य को बदलता दिखाया गया है, ताकि शेयरधारकों के हितों के साथ ही साथ ग्राहकों, कर्मचारियों, आपूर्तिकर्ताओं, समुदायों के हितों और पर्यावरण को भी संतुलित किया जा सके और कंपनी को अपने सामाजिक प्रभाव के लिए जवाबदेह बनाया जा सके. अमेरिकी कंपनियों के इन नए लक्ष्यों के भारत में अपरिहार्य परिणाम होंगे क्योंकि हम वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं. 1991 के सुधार हुए दो दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन पूंजीवाद अभी भी भारत में सहज नहीं हो पाया है.

मेरा मानना है कि इस नए बयान के साथ गंभीर समस्याएं हैं. बेशक, कंपनियों को  अपने सभी हितधारकों के हितों को बढ़ावा देना चाहिए, लेकिन इतने सारे लक्ष्यों के लिए आप कंपनी को कैसे जिम्मेदार ठहरा सकते हैं? समाज में प्रत्येक संस्था को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है.

उदाहरण के लिए लोकतंत्र अन्य प्रणालियों से बेहतर है क्योंकि इसमें शासक उन नागरिकों के प्रति जवाबदेह होते हैं जो समय-समय पर उन्हें वोट देते हैं. इसी प्रकार, किसी कंपनी का लाभ इस बात को सूचित करता है कि उसने कुशलतापूर्वक अपने संसाधनों को नियोजित किया है. इसलिए वह अपने मुनाफे के लिए शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह होती है. समस्या यह है कि बहुत सारे अस्पष्ट लक्ष्य लाद देने पर वह किसके प्रति जवाबदेह होगी?

Web Title: Gurcharan Das's blog: Questions arising on the future of capitalism

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