ब्लॉगः गुजरात के सीएम विजय रुपाणी ने दिया इस्तीफा, भूपेंद्र पटेल नए मुख्यमंत्री, कई राज्य में बदले गए...
By अवधेश कुमार | Published: September 13, 2021 01:25 PM2021-09-13T13:25:36+5:302021-09-13T13:27:09+5:30
रघुवर दास को नहीं बदला गया और चुनाव में पार्टी सत्ता से विपक्ष में चली गई. झारखंड में लगभग 25 सीटें भाजपा अपनी ही पार्टी के विद्रोहियों के कारण हारी.
गुजरात के मुख्यमंत्नी पद से विजय रुपाणी के अचानक इस्तीफे ने पूरे देश को चौंकाया है. अब वहां मुख्यमंत्री के रूप में भूपेंद्र पटेल के नाम की घोषणा की गई है.
इसके पहले कभी नहीं देखा गया कि एक मुख्यमंत्नी दोपहर में प्रधानमंत्नी के साथ कार्यक्रम में रहता हो और शाम को पत्नकारों के सामने आकर यह कहे कि मैंने पद से इस्तीफा दे दिया है. जिस समय वो इस्तीफे की घोषणा कर रहे थे उनके चेहरे पर किसी प्रकार का दुख, अवसाद या मलाल का भाव नहीं था.
राष्ट्रीय संगठन मंत्नी बीएल संतोष, भाजपा के वरिष्ठ नेता केंद्रीय मंत्नी भूपेंद्र यादव का वहां पहले से पहुंचना इस बात का संकेत था कि नेतृत्व परिवर्तन की कवायद पहले से चल रही थी. केंद्रीय मंत्नी नरेंद्र सिंह तोमर और प्रह्लाद जोशी तथा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ का वहां होना भी यही साबित करता है.
कहने की आवश्यकता नहीं कि केंद्रीय नेतृत्व यानी नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जे.पी. नड्डा ने आपसी विमर्श के बाद यह फैसला किया होगा तथा विजय रुपाणी को सूचित किया गया होगा. राजनीतिक विश्लेषक इसके कई कारण गिना सकते हैं. विरोधी पार्टियां भी अपने-अपने तरीके से इसका विश्लेषण कर रही हैं. यह भी नहीं कह सकते कि जो कुछ कहा जा रहा है, वो सारी बातें गलत हैं.
यह सही है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 2012 के 115 से घटकर 99 तक सिमट गईं तथा कांग्रेस की सीटें 61 से बढ़कर 77 हो गईं. सच यही है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत पाने के लिए नाको चने चबाने पर पड़े. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी को करीब तीन दर्जन सभाएं करनी पड़ीं. अमित शाह चुनाव के काफी पहले से लेकर परिणाम आने तक वहीं डटे रहे.
वास्तव में भाजपा की पूरी शक्ति गुजरात में लगी हुई थी. तब किसी तरह बहुमत हासिल हो सका. वस्तुत: गुजरात में पटेल या पाटीदार समुदाय के अंदर भाजपा के विरुद्ध असंतोष और विद्रोह कोई भी देख सकता था. अगर मोदी ने चुनावी सभाओं के अलावा भी दिन-रात एक नहीं किया होता तो परिणाम पलट भी सकता था.
तभी यह साफ हो गया था कि नरेंद्र मोदी का गुजरात के मुख्यमंत्नी के रूप में होना और उनकी पसंद के किसी का मुख्यमंत्नी होना गुजरात की जनता के लिए समान मायने नहीं रखता. आनंदीबेन पटेल को मोदी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में सामने रखा लेकिन उनके विरुद्ध पार्टी में ही असंतोष पैदा हो गया. फिर पाटीदार आरक्षण आंदोलन को जिस ढंग से उन्होंने हैंडल किया उसके विरुद्ध भी प्रतिक्रिया हो रही थी.
हालांकि आनंदीबेन पटेल की अपनी कोई गलती नहीं थी लेकिन प्रदेश की राजनीति का ध्यान रखते हुए उनको हटाने का फैसला करना पड़ा तथा उनकी जगह विजय रूपाणी आए. विजय रूपाणी लोकप्रिय नेता न थे, न हैं. इसलिए 2022 के चुनाव में उनके चेहरे के साथ उतरना भाजपा के लिए जोखिम भरा होता.
2014 में प्रधानमंत्नी बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने यह नीति अपनाई थी कि जिसे भी मुख्यमंत्नी पद की जिम्मेदारी दी जाए, उसे काम करने दिया जाए. प्रदेश में अनेक मुख्यमंत्रियों के खिलाफ असंतोष थे, इनकी सूचना प्रधानमंत्नी तक पहुंची लेकिन उन्होंने किसी का इस्तीफा नहीं लिया. झारखंड में मुख्यमंत्नी रघुवर दास के खिलाफ जनता तो छोड़िए, पार्टी के अंदर ही व्यापक विद्रोह था.
रघुवर दास को नहीं बदला गया और चुनाव में पार्टी सत्ता से विपक्ष में चली गई. झारखंड में लगभग 25 सीटें भाजपा अपनी ही पार्टी के विद्रोहियों के कारण हारी. स्वयं रघुवर दास को पार्टी के ही वरिष्ठ नेता सरजू राय ने विद्रोही उम्मीदवार के तौर पर पराजित कर दिया. हरियाणा में मुख्यमंत्नी मनोहर लाल खट्टर के विरुद्ध पार्टी के अंदर असंतोष था.
चुनाव के पहले से उनको हटाए जाने की मांग थी. उन्हें नहीं हटाया गया और परिणामस्वरूप भाजपा को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ. निर्दलीय में पांच ऐसे विधायक चुने गए जो भाजपा के विद्रोही थे तथा कई सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों को पार्टी के लोग ही हराने में भूमिका निभा रहे थे. इन दो घटनाओं से मोदी ने सबक लिया और उत्तराखंड के मुख्यमंत्नी त्रिवेंद्र सिंह रावत को जाना पड़ा.
आज वहां पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्नी हैं. इसी तरह भाजपा ने कर्नाटक में वहां के वरिष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बीएस येदियुरप्पा से इस्तीफा दिला कर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्नी बनाया है. कहने का तात्पर्य है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने मुख्यमंत्नी को हर हाल में बनाए रखने की अपनी नीति को बदल दिया है. वह किसी व्यक्ति को बनाए रखने के लिए राजनीतिक जोखिम उठाने को तैयार नहीं है. यह भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्रियों के लिए भी संकेत है.