शशिधर खान का ब्लॉग: शीर्ष कोर्ट में बढ़ते राजनीतिक मामले
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 10, 2019 08:33 IST2019-08-10T08:33:53+5:302019-08-10T08:33:53+5:30
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शीर्ष कोर्ट में जजों की संख्या बढ़ाने के लिए पत्र लिखा और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस संबंध में संविधान संशोधन लाने का फैसला कर लिया

शशिधर खान का ब्लॉग: शीर्ष कोर्ट में बढ़ते राजनीतिक मामले
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शीर्ष कोर्ट में जजों की संख्या बढ़ाने के लिए पत्र लिखा और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस संबंध में संविधान संशोधन लाने का फैसला कर लिया. संसद सत्र समाप्त होने के समय केंद्रीय मंत्रिमंडल ने यह निर्णय लिया है. इसलिए प्रस्तावित संविधान संशोधन तो अब संसद के शीतकालीन सत्र में ही लाया जा सकता है. यह सत्र तो पहले से लंबित संशोधन बिलों को पारित कराने में गया.
शीर्ष कोर्ट और हाईकोर्टों में जजों की संख्या कम होने के अलावा जजों के रिक्त पदों पर नियुक्तियां लंबित रहने के संबंध में चीफ जस्टिस ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा. एक तो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों मेें जितने आवंटित पद हंै, उसमें भी रिक्तियां हैं, दूसरे, जजों की संख्या बढ़ाने में सरकार की कोई खास दिलचस्पी नहीं है. कोर्टों में लंबित मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. निष्पादन में समय ज्यादा लगता है. उसका कारण जजों की संख्या कम होने के कारण काम का बढ़ता बोझ है.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने प्रधानमंत्री को जो पत्र लिखा इसका असली कारण बढ़ते लंबित मुकदमे के निष्पादन में आ रही दिक्कतों से उन्हें अवगत कराना था. प्रधानमंत्री, कानून मंत्री यदा-कदा कानून और अदालत से जुड़े समारोहों में कोर्टों में लंबित मुकदमे पर चिंता व्यक्त करने के साथ-साथ इसके लिए घुमा-फिराकर कोर्टों को ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस स्वयं भी कई बार विभिन्न समारोहों में इस पर चिंता जताते देखे गए हैं. लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता और यह कोई भी विचारणीय विषय नहीं मानता कि कोर्ट का सबसे ज्यादा समय राजनीतिक मामलों की सुनवाई में जाता है. विधायिका और कार्यपालिका के रसूख वाले लोग अपने राजनीतिक हित के लिए कोर्ट में मुकदमे, याचिका दायर करते हैं.
जिसके पक्ष में फैसला नहीं गया, वो पुनर्विचार याचिका लगा देता है. वहीं जब किसी आम पीड़ित व्यक्ति को विधायिका और कार्यपालिका से न्याय नहीं मिलता, तब भूले-भटके किसी पीड़ित की पीड़ा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचती है. उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता का मामला ताजा है. निचली अदालतों की तो रसूख वाले परवाह ही नहीं करते