गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: भारतीय भाषाओं के लिए विश्वविद्यालय की जरूरत

By गिरीश्वर मिश्र | Published: December 7, 2020 10:46 AM2020-12-07T10:46:51+5:302020-12-07T10:49:39+5:30

भारत की अदिवासी भाषाओं में से 196 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं. भारत में कुल 1957 भाषाएं हैं. इनमें 6 से 1416 लिपिहीन हैं.

Girishwar Mishra's blog: University Need for Indian Languages | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: भारतीय भाषाओं के लिए विश्वविद्यालय की जरूरत

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

भाषाओं को लेकर विगत वर्षो में जो अनुसंधान हुए हैं, उनसे यह प्रकट हो रहा है कि भाषाओं का बड़े पैमाने पर तेजी से लोप हो रहा है. यूनेस्को का आकलन है कि विश्व भर में बोली जाने वाली 6000 भाषाओं में से 2500 भाषाएं संकटग्रस्त हैं. अनुमान है कि 21वीं सदी के अंत तक मात्न 200 भाषाएं ही जीवित बचेंगी.

भारत की अदिवासी भाषाओं में से 196 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं. भारत में कुल 1957 भाषाएं हैं. इनमें 6 से 1416 लिपिहीन हैं. ये सभी संकटग्रस्त हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार देश में भाषा के मानक पर खरी उतरने वाली 1369 बोलियां/भाषाएं थीं. इसमें से 121 भाषाएं ऐसी हैं जिनके बोलने वालों की संख्या 10 हजार से अधिक है.

इनमें आठवीं अनुसूची की भाषाएं भी सम्मिलित हैं. पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया के वर्ष 2013 के अध्ययन के अनुसार देश में 780 भाषाएं हैं. पिछले 50 वर्ष में भारत से 220 से अधिक भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं तथा 197 लुप्त प्राय हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार भारोपीय भाषा भाषी 78.05 प्रतिशत, द्रविड़ 19.64 प्रतिशत, आस्ट्रो-एशियाटिक 2.31 प्रतिशत तथा शेष अन्य भाषा परिवारों के हैं.

भारतीय भाषाओं की सामथ्र्य बढ़ाने की चेष्टा करते समय हमें कई बातों पर ध्यान देना होगा. किसी भी भाषा की सामाजिक सामथ्र्य कई बातों पर निर्भर करती है.

इनमें प्रमुख हैं : पीढ़ी दर पीढ़ी भाषा का अंतरण, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्न में भाषा का उपयोग, भाषा के विविध रूपों का दस्तावेजीकरण, भाषा द्वारा नई तकनीक और आधुनिक माध्यमों की स्वीकार्यता, सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्नों में प्रचलित भाषा नीति तथा भाषा के समुदाय की उस भाषा के साथ भावनात्मक लगाव की मात्ना.

चूंकि भाषा असंदिग्ध रूप से संस्कृति, राष्ट्र और राष्ट्रीयता को परिभाषित करती है तथा राष्ट्र के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाती है, यह आवश्यक है कि इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए यथाशीघ्र समेकित प्रयास किया जाएं. दृढ़ संकल्प के साथ जीवन के सभी क्षेत्नों में भारतीय भाषाओं को स्थापित करने के अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय नहीं है.

इसके लिए वातवरण बनाना जरूरी है. यह स्वीकार करते हुए कि भाषा की समस्या सभ्यता की समस्या है, इस दिशा में तत्काल प्रभावी कदम उठाना आवश्यक है. भारतीय भाषाओं के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा.

भारतीय भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन देश के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और ज्ञानमूलक विकास को गति दे सकेगा और आम जन की सामाजिक जीवन में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी. इस उद्देश्य के अनुरूप विश्वविद्यालय द्वारा अनुसंधान, अध्ययन-अध्यापन तथा प्रशिक्षण का कार्य संपादित होना चाहिए.

संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी भाषाओं के साथ इसका आरंभ होना चाहिए. इस हेतु शैक्षिक और अनुसंधान की अपेक्षित सुविधाएं जुटा कर भाषाओं के विविध पक्षों यथा- शब्द संकलन, लिपि निर्धारण और विकास, कोश-निर्माण, अनुवाद, प्रासंगिक भाषावैज्ञानिक समस्याओं विशेषत: भाषाओं के अनुप्रयोगात्मक (अप्लायड) पक्षों का विश्लेषण और अनुसंधान, अपेक्षित भाषाई तकनीकों का विकास, भाषाओं का तुलनात्मक विश्लेषण, भाषा-संस्कृति के पारस्परिक संबंध तथा इन सभी से जुड़े अन्य संबंधित विषयों का अध्ययन किया जाना चाहिए.

वैज्ञानिक रूप से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत में भाषाओं के प्रयोग की स्थिति का सतत पर्यवेक्षण और भाषा नीति के विकास और उसके आलोक में आवश्यक उपायों के विकास का कार्य संभव हो सकेगा. खबर है कि भारत सरकार के शिक्षा मंत्नालय ने इस दिशा में विचार आरंभ किया है. देर आयद दुरुस्त आयद!

Web Title: Girishwar Mishra's blog: University Need for Indian Languages

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