गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: संकल्प के बल पर हराना होगा कोरोना को
By गिरीश्वर मिश्र | Published: March 25, 2020 06:41 AM2020-03-25T06:41:56+5:302020-03-25T06:41:56+5:30
कोविड-19 के संक्रमण का मुख्य आधार एक सामान्य व्यक्ति का रोग के संक्रमित व्यक्ति के साथ किसी भी तरह से सम्पर्क में आना है. इसलिए इससे बचाव के लिए सामाजिक सम्पर्क को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है. भीड़भाड़ की जगहों में जाने पर संक्रमण की आशंका बहुत बढ़ जाती है. किसी भी संक्रमित सतह से सम्पर्क खतरनाक हो सकता है. इसीलिए सामाजिक दूरी बनाने पर जोर दिया जा रहा है.
कोरोना विषाणु ने लगभग पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है और भारत में भी इसका प्रभाव पड़ रहा है. समय बीतने के साथ इससे प्रभावित रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है. इस महामारी के आतंक के साये में सबका जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है. यह सबके लिए चिंता की बात है कि इस पर किस तरह जल्दी से जल्दी नियंत्नण पाया जाए.
मुश्किल यह भी है कि इसके लक्षण सामान्य फ्लू की ही तरह के होते हैं इसलिए इसे आसानी से ठीक तरह पहचानना भी सरल नहीं होता है. इसमें भी सामान्य सर्दी, जुकाम, नाक से पानी आना, खांसी, सांस लेने में कठिनाई और बुखार आदि की अस्वास्थ्यकर स्थितियां दिखती हैं जो मिल कर शरीर की प्रणाली पर आक्रमण करती हैं. इनका प्रतिरोध करने के लिए शुरू में शरीर अपनी शक्ति भर प्रयास करता है परंतु उसकी भी सीमा होती है. इस संघर्ष में शरीर का संचित ऊर्जा संसाधन धीरे-धीरे कम पड़ने लगता है और यदि समय पर उपचार न मिले तो खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है और जीवन की हानि हो सकती है.
कोविड-19 के संक्रमण का मुख्य आधार एक सामान्य व्यक्ति का रोग के संक्रमित व्यक्ति के साथ किसी भी तरह से सम्पर्क में आना है. इसलिए इससे बचाव के लिए सामाजिक सम्पर्क को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है. भीड़भाड़ की जगहों में जाने पर संक्रमण की आशंका बहुत बढ़ जाती है. किसी भी संक्रमित सतह से सम्पर्क खतरनाक हो सकता है. इसीलिए सामाजिक दूरी बनाने पर जोर दिया जा रहा है.
चूंकि वृद्धों में इस विषाणु के प्रभाव अधिक होते हैं इसलिए उनको अधिक सावधानी अपनाने की जरूरत है. साथ ही शरीर के प्रतिरक्षा तंत्न को सुदृढ़ बनाना बहुत जरूरी है. चूंकि यह समय ऋतु-परिवर्तन का है इसलिए शरीर की प्रक्रियाओं को उचित आहार-विहार और औषधियों द्वारा उसके अनुकूल बनाए रखना होगा. परंतु सामाजिक जीवन को भी नियमित करना आवश्यक है.
शोर और दौड़धूप की जिंदगी पर विराम लगा कर एकांत में जीना लोगों को थोड़ा सुकून भी दे रहा है. आपाधापी के बीच दौड़ने-धूपने को ही सहज मान बैठने वालों को ठहर कर खुद से मिलने का अवसर मिल रहा है. शायद जीवन जीने की पद्धति और वरीयताओं पर भी फिर से विचार करने की जरूरत है. संयम, धैर्य और आत्मनियंत्नण का विकल्प नहीं है.
यह संतोष की बात है कि प्रधानमंत्नी के 'जनता कर्फ्यू' के आह्वान को पूरे देश ने अपार समर्थन दिया. कोरोना ने जीवन पर जो आपात काल लगाया है उससे आर्थिक मोर्चे पर बड़ी मुश्किलें खड़ी हो रही हैं, पर जीवन पर मंडराते खतरे के आगे यह छोटा प्रश्न है. समय की आवश्यकता है कि दृढ़ संकल्प के साथ कोरोना की चुनौती का सामना किया जाए.