लाइव न्यूज़ :

भारत डोगरा का ब्लॉग: ग्रामीण विकास की गांधीजी की सोच को ही बढ़ाना होगा आगे

By भारत डोगरा | Updated: September 22, 2019 06:55 IST

जब हम खेती की तकनीक की आत्म-निर्भरता की बात करते हैं तो सबसे पहली आवश्यकता तो परंपरागत स्थानीय बीजों की है जो बिना रासायनिक खाद व कीटनाशक के ठीक फसल देते थे. अत: एक महत्वपूर्ण कार्य है परंपरागत स्थानीय बीजों को बचाना.

Open in App

महात्मा गांधी ने ग्रामीण विकास की मौलिक सोच सामने रखी थी जो आज की बदली हुई परिस्थितियों में भी बहुत उपयोगी है. कुछ लोग यह कहते हैं कि इसमें व्यावहारिक कठिनाइयां हैं. विशेषकर गांवों को आत्म-निर्भर बनाने की गांधीजी की सोच के बारे में यह कहा जाता है. पर सच्चाई तो यह है कि गांधीजी की इस सोच को व्यावहारिक स्तर पर आगे बढ़ाना संभव भी है और बहुत जरूरी भी है. यह एक बहुत रचनात्मक कार्य है.

आइए, अब एक नजर यह देखें कि किस तरह के काम गांव की आत्म-निर्भरता के अभियान के अंतर्गत करने के लिए सार्थक होंगे. जल संरक्षण, वन बचाने और नए पेड़ लगाने के कार्य के महत्व को तो सब स्वीकार करते हैं, इस बारे में विशेष कहने की आवश्यकता नहीं है. गांधीजी के समय में किसानों को लूटा तो बहुत जा रहा था, पर उनकी तकनीक काफी हद तक आत्म-निर्भर थी. उन्होंने अधिक जोर कुटीर उद्योगों पर दिया. पर पिछले लगभग तीन-चार दशकों में अनेक क्षेत्रों में कृषि की तकनीक पूरी तरह बदल गई. हर मामले में बाहर वालों पर निर्भर हो गई. अत: आज इसको अधिक महत्व देना जरूरी है.

जब हम खेती की तकनीक की आत्म-निर्भरता की बात करते हैं तो सबसे पहली आवश्यकता तो परंपरागत स्थानीय बीजों की है जो बिना रासायनिक खाद व कीटनाशक के ठीक फसल देते थे. अत: एक महत्वपूर्ण कार्य है परंपरागत स्थानीय बीजों को बचाना. अभी उन्हें अधिक किसान अपनाएं या न अपनाएं पर कम से कम किसान जब उनकी जरूरत महसूस करें तो ये उपलब्ध जरूर होने चाहिए. प्राय: खाद्यान्न के परंपरागत बीज बचाने का महत्व तो अब समझा जा रहा है पर कपास के परंपरागत बीज बचाने की बात बहुत कम सुनी गई है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि कपास की उन परंपरागत किस्मों का बहुत महत्व है जो एक समय रासायनिक खाद और रासायनिक कीटनाशक के बिना भारत के अधिकांश भागों में उगाई जाती थीं व कहीं-कहीं,  दूर-दराज के गांवों में आज भी मौजूद हैं. 

देसी कपास की अधिकांश किस्मों की विशेषता यह है कि वे हाथ से कताई के अधिक अनुकूल हैं जबकि जो विदेशी किस्में आज प्रचलित हैं वे मिल में मशीन पर कताई के अनुकूल हैं. आने वाले दिनों में बिना हानिकारक रसायन के उगाई जाने वाली कपास की मांग और इससे बने वस्त्रों की मांग दुनिया भर में जोर पकड़ेगी. कपास की इन किस्मों को बचा कर रखना बहुत महत्वपूर्ण है. मिल की जगह कुटीर स्तर पर धान से चावल प्राप्त करना, गांव की घानी में तेल निकालना, साबुन बनाना, कागज बनाना व रद्दी कागज के लिफाफे बनाना, छोटी सी बेकरी में कई तरह के खाद्य बनाना-ये सब कुटीर दस्तकारियों के उदाहरण हैं.

टॅग्स :महात्मा गाँधी
Open in App

संबंधित खबरें

भारतPutin India Visit: पुतिन ने राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी, देखें वीडियो

भारतराहुल गांधी नहीं हो सकते जननायक?, तेज प्रताप यादव ने कहा-कर्पूरी ठाकुर, राम मनोहर लोहिया, डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी में कैसे शामिल कर सकते

कारोबारMake In India: आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए लौटना होगा स्वदेशी की ओर, स्वदेशी 2.0 का समय

भारतGandhi Jayanti 2025: पीएम मोदी ने महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री को किया नमन, कहा, 'हम उनके बताए रास्ते पर चलते रहेंगे'

भारतGandhi Jayanti 2025: महात्मा गांधी की लिखी ये किताबें, जो हर भारतीय को जरूर पढ़नी चाहिए

भारत अधिक खबरें

भारतMaharashtra Local Body Polls Result: महायुति 214, एमवीए 49, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी, जानें किस पार्टी को कितनी सीटें

भारतस्थानीय निकाय चुनावः 286 में से 212 सीट पर जीत?, अशोक चव्हाण बोले- भाजपा के 3,300 पार्षद निर्वाचित, जनवरी 2026 में 29 नगर निगमों चुनावों पर असर दिखेगा?

भारतबिहार में फाइनेंस कंपनियों के कर्ज से परेशान लोग आत्महत्या करने को मजबूर, पुलिस ने लिया गंभीरता से, ईओयू को दी कार्रवाई की जिम्मेदारी

भारतमुंबई निगम चुनावः नगर परिषद और पंचायत में करारी हार?, ठाकरे-पवार को छोड़ वीबीए-आरपीआई से गठजोड़ करेंगे राहुल गांधी?

भारतपालघर नगर परिषद में शिवसेना के उत्तम घरत ने भाजपा के कैलाश म्हात्रे को हराया और बीजेपी ने जव्हार नगर परिषद और वाडा नगर पंचायत पर किया कब्जा