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ब्लॉग: पहले हिमाचल और अब कर्नाटक...कांग्रेस के भाग्यशाली अध्यक्ष साबित हो रहे खड़गे

By हरीश गुप्ता | Updated: May 18, 2023 07:20 IST

मल्लिकार्जुन खड़गे के 26 अक्टूबर 2022 को पदभार संभालने के बाद पार्टी ने पिछले साल दिसंबर में हिमाचल प्रदेश में जीत दर्ज की. इसके पांच माह बाद, 13 मई 2023 को खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस ने कर्नाटक में बाजी मारी है.

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के जब नतीजे आने शुरू हुए थे तो तीनों गांधी (सोनिया, राहुल और प्रियंका) की नजरें टीवी की ओर ही लगी हुई थीं. राहत के उन क्षणों में सोनिया गांधी ने पार्टी अध्यक्ष 80 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रयासों की सराहना की थी, जिन्होंने 36 जनसभाओं को संबोधित किया था. 10 जनपथ के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो प्रियंका ने यह कहते हुए अपनी मां को बधाई दी थी कि उनके द्वारा चुना गया कमांडर भाग्यशाली रहा है. प्रियंका ने सही कहा था, क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के आठ माह के भीतर ही खड़गे ने दो राज्यों में पार्टी को जीत दिलाई है. 

खड़गे के 26 अक्टूबर 2022 को पदभार संभालने के बाद पार्टी ने हिमाचल में जीत दर्ज की. लंबे सूखे के बाद 8 दिसंबर 2022 को पार्टी द्वारा दर्ज की गई यह पहली जीत थी. उसके पांच माह बाद, 13 मई 2023 को खड़गे ने कर्नाटक जैसा बड़ा राज्य गांधी परिवार को सौंपा है. कर्नाटक में खड़गे की अग्निपरीक्षा थी क्योंकि यह उनका गृह राज्य था. दूसरे, 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी हार को वे पचा नहीं पा रहे थे और विधानसभा चुनाव ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ने का अवसर प्रदान किया. उन्होंने अनेक समीकरणों को साधते हुए कठोर परिश्रम किया और कुछ कठोर फैसले भी लिए. 

भाजपा नेतृत्व को इस वास्तविकता को समझने में बहुत देर लगी कि राज्य में खड़गे दलितों और मुस्लिमों को एक साथ लाने में उत्प्रेरक साबित हो सकते हैं. यह भाजपा के लिए घातक साबित हुआ क्योंकि सिद्धारमैया के कारण पिछड़े और डी.के. शिवकुमार के कारण वोक्कालिंगा पहले से ही कांग्रेस के साथ जुड़े थे. यह डी.के. शिवकुमार ही थे जिन्होंने देवगौड़ा के तीन दशक पुराने किले को ढहाने में सफलता पाई. 

खड़गे भाजपा के लिए भारी साबित हो सकते हैं क्योंकि वे क्षितिज पर एक नए दलित नेता के रूप में उभरे हैं. कांग्रेस उम्मीद कर सकती है कि पिछले 30-35 वर्षों में बड़े पैमाने पर छिटक कर दूसरे दलों में जा चुके दलित वोटों को वह फिर से अपने पाले में ला सकती है. मायावती और ओवैसी की पार्टी जैसे दूसरे दलों में जा चुके मुस्लिम भी उन सीटों पर कांग्रेस को वोट दे सकते हैं जहां वह भाजपा को हराने की स्थिति में हो.

बीएमसी चुनाव अधर में

भाजपा पर कर्नाटक की भारी हार का असर नजर आने लगा है. सत्तारूढ़ पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद बीएमसी चुनाव कराने का मन बना लिया था. महाराष्ट्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मुंबई भाजपा प्रमुख आशीष शेलार और अन्य नेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले थे जहां शाह ने उनसे हर म्युनिसिपल वार्ड में आक्रामक तरीके से काम शुरू करने को कहा था. 

ठाकरे से बीएमसी को छीनने के लिए शाह ने महाराष्ट्र के नेताओं को सात सूत्रीय कार्यक्रम दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भले ही शिंदे सरकार को बरकरार रखकर राहत दी हो  लेकिन सुप्रीम कोर्ट और अन्य मंचों पर कानूनी लड़ाई आने वाले दिनों में लंबी चलने वाली है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी मुंबई का दौरा किया था. लेकिन कर्नाटक के चुनाव परिणाम ने योजना को अधर में लटका दिया है. मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र में भाजपा बुरी तरह पराजित हुई है जहां अधिकांश सीटों पर कांग्रेस ने बाजी मारी है.

जालंधर उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार की क्यों जब्त हुई जमानत

भाजपा की सिर्फ कर्नाटक में ही हार नहीं हुई है बल्कि पंजाब में भी जालंधर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में उसके उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई. बेशक पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस उपचुनाव में उसके वोट शेयर में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई. लेकिन भाजपा के इकबाल सिंह अटवाल न सिर्फ चौथे स्थान पर रहे बल्कि अपनी जमानत भी गंवा बैठे. उम्मीदवारों को अपनी जमानत बचाने के लिए डाले जाने वाले कुल वैध मतों का छठवां हिस्सा हासिल करना होता है. लेकिन भाजपा उम्मीदवार ऐसा कर पाने में विफल रहे. 

पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की यह दूसरी हार है. भगवा पार्टी ने तीन कृषि विधेयकों के मुद्दे पर अपने तीन दशकों के विश्वस्त सहयोगी को खो दिया था. अब लोकसभा चुनावों को नजदीक आते देख भाजपा नेतृत्व फिर अकाली दल से गठजोड़ कर सकता है. अकाली दल का उम्मीदवार भी जालंधर उपचुनाव में पराजित हुआ है लेकिन पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल खुश हैं क्योंकि अकाली दल का उम्मीदवार आप और कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान पर रहा है. 

इसमें संदेह नहीं कि शिअद-भाजपा की एकता परिदृश्य को बदल सकती है. लेकिन बादल अभी अपने पत्ते खोलने के मूड में नहीं हैं और अनुकूल मौके की राह देख रहे हैं. कांग्रेस और अन्य दलों से नेताओं को आयातित करने का भाजपा का प्रयोग पंजाब में कोई लाभ नहीं दे सका है.

समारोह स्थगित

भाजपा में ऐसा कहने वाले नेताओं की कमी नहीं है कि कर्नाटक में एक हार का कोई महत्व नहीं है. लेकिन पार्टी नेतृत्व पूरी तरह से हिल गया है. इस हार के पहले नतीजे ने पार्टी कार्यकर्ताओं को चकित कर दिया, जब भाजपा नेतृत्व ने प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का नौ साल का कार्यकाल पूरा होने के उपलक्ष्य में होने वाले राष्ट्रव्यापी समारोहों के शुरू होने की तारीख को चुपचाप आगे बढ़ा दिया. सभी मंत्रियों को एक तय समय सीमा के भीतर निर्धारित क्षेत्र में रैलियां आयोजित करने और मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल की उपलब्धियां बताने को कहा गया था. 

ये समारोह 15 मई से शुरू होकर 15 जून तक होने थे. अनेक नेताओं ने अपने परिवार और दोस्तों के साथ यात्रा करने के लिए 20 जून के बाद के लिए टिकट बुक करा लिए थे. लेकिन भाजपा ने चुपचाप समारोहों की तारीख को एक पखवाड़ा आगे बढ़ा दिया. अब ये आयोजन 30 मई से 30 जून के बीच होंगे. कोई भी यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि यह बदलाव क्यों किया गया है!

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