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फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: सुरक्षित भविष्य के लिए महामारी से सीखने होंगे सबक

By फिरदौस मिर्जा | Updated: June 9, 2021 14:33 IST

महामारी ने सबसे महत्वपूर्ण सबक सिखाया है कि अपने प्रतिनिधि का चुनाव कैसे किया जाए। प्रतिनिधि चुनते समय एक ही परीक्षा होती है कि उस व्यक्ति को चुनें जो महामारी के दौरान जरूरतमंदों की मदद करता नजर आया हो।

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कोरोना की दूसरी लहर ने खुद को एक महान शिक्षक साबित किया है, इसने धर्म, जाति या वर्ग के आधार पर कोई भेद नहीं किया है। इसने समान रूप से सभी को प्रभावित किया और उन लोगों को निराश किया जो मनुष्यों के बीच मतभेदों को उजागर करने में गर्व महसूस करते थे। इस असाधारण शिक्षक से हम जो कुछ सबक सीख सकते हैं, वे संक्षेप में निम्न हैं..

सार्वजनिक स्वास्थ्य- महामारी ने हमें एहसास दिलाया कि हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली कितनी खराब है। खुद को दवाइयों इत्यादि के सबसे बड़े निर्माता के रूप में मानना हमारा भ्रम साबित हुआ। स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की दिशा में उठाए गए कदमों को हालांकि शुरुआत में हमने प्रगतिशील माना, लेकिन अंतत: यह प्रतिगामी साबित हुआ। भारत के संविधान के अनुच्छेद-47 में समुचित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के निर्माण को सरकार की प्राथमिकता बताया गया है और अनुच्छेद-21 में स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार निरूपित किया गया है, फिर भी, इस हिसाब से हमारा बजटीय आवंटन दो प्रतिशत से अधिक नहीं है। सबसे बड़ा सबक जो सीखना चाहिए वह है सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में सुधार पर ध्यान देना, निजी क्षेत्र पर निर्भरता कम करना और स्वास्थ्य के लिए बजटीय आवंटन बढ़ाना।

शिक्षा- दवाओं की कालाबाजारी के बाद इन दिनों सबसे ज्यादा शिकायत की श्रेणी में निजी स्कूलों का प्रबंधन है। सभी अभिभावक निजी स्कूलों के बंद होने और कक्षाओं को ‘ऑनलाइन’ आयोजित करने के बावजूद पूरी फीस की वसूली के बारे में शिकायत कर रहे हैं। माता-पिता उम्मीद कर रहे हैं कि सरकारें हस्तक्षेप करें और उन्हें कुछ राहत मिले। कुछ सरकारों ने निजी स्कूलों पर लगाम लगाने की कोशिश की लेकिन उनके आदेशों को अदालतों का समर्थन नहीं मिला। इस अनुभव से हमें जो सबक लेना चाहिए, वह यह है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत प्रदान किए गए अपने मौलिक अधिकार को कभी छोड़ना नहीं चाहिए। 

यह अधिकार है 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे के लिए सरकार की ओर से ‘अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा’ पाने का। लेकिन हमने अपने बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश देकर इस अधिकार को खुद ही छोड़ दिया। अब एक तरफ सरकारी स्कूलों को छात्रों के अभाव में बंद किया जा रहा है और दूसरी तरफ अभिभावकों को फीस भरने में आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यदि बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्रवेश दिया जाता है तो वे अपने घर से एक किमी के दायरे में स्थित स्कूल में ही जाएंगे और परिवहन की कोई आवश्यकता नहीं होगी। बुनियादी ढांचा और सीखने की सामग्री उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। सबक यह है कि अगर संवैधानिक प्रावधानों का सही तरीके से पालन करें तो हम खुद को कई समस्याओं से बचा सकते हैं।

बुनियादी कर्तव्यों का पालन- संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक से विविधताओं के बीच सभी से भाईचारे की भावना को बनाए रखने की उम्मीद करता है, लेकिन हमने बहुत से लोगों को मामूली फायदे के लिए अपने साथी भारतीयों की जिंदगी के बारे में सोचे बिना जीवन रक्षक दवाओं, ऑक्सीजन और यहां तक अस्पताल के बेडों की कालाबाजारी में लिप्त देखा है। यहां तक कि कफन चोरी के मामले भी सामने आए। हम सभी धर्मो की उन महान शिक्षाओं को भूल गए कि आप मरते समय एक पैसा भी साथ में लेकर नहीं जा सकते और कफन में जेब नहीं होती। हमें जो सबक सीखने की जरूरत है, वह यह है कि सभी भारतीय भाई-बहन हैं और भाईचारा एक-दूसरे के लिए मानवता और सहानुभूति की मांग करता है, कोई नहीं जानता कि अगला नंबर किसका है।

लोकतंत्र का संरक्षण- महामारी ने सबसे महत्वपूर्ण सबक सिखाया है कि अपने प्रतिनिधि का चुनाव कैसे किया जाए। प्रतिनिधि चुनते समय एक ही परीक्षा होती है कि उस व्यक्ति को चुनें जो महामारी के दौरान जरूरतमंदों की मदद करता नजर आया हो। जो लोग क्षुद्र राजनीति से पहले मानव जीवन को महत्व नहीं देते, उनका समर्थन न करें। हम नागरिक योग्य प्रतिनिधि चुनकर ही लोकतंत्र को बचा सकते हैं जो इसे एक कल्याणकारी राष्ट्र बनाने की दिशा में काम करेगा। इस तरह के दर्दनाक दौर से गुजरने और पवित्र गंगा में बहते हुए शवों को देखने के बाद, यदि हम सबक नहीं सीखते हैं, तो निश्चित रूप से हमने अपनी आत्मा खो दी है और परम दयालु की दया के पात्र नहीं हैं।

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