Elderly people: भारतीय संस्कृति में सदा से ही बड़ों के आदर-सम्मान की परंपरा रही है लेकिन आज दुनिया के अन्य देशों सहित हमारे देश में भी वृद्धजनों पर बढ़ते अत्याचारों की खबरें समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई हैं. अधिकांश परिवारों में वृद्ध जिस तरह की उपेक्षा झेलने को मजबूर हैं, उससे ज्यादा पीड़ादायक और क्या हो सकता है.
समृद्ध परिवार होने के बावजूद घर के बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में जीवनयापन करने को विवश हैं. बहुत से मामलों में बच्चे ही उन्हें बोझ मानकर वृद्धाश्रमों में छोड़ आते हैं. हालांकि यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है, जब उन्हें परिजनों के अपनेपन, प्यार और सम्मान की सर्वाधिक जरूरत होती है. एक व्यक्ति जिस घर-परिवार को बनाने में अपनी पूरी जिंदगी खपा देता है, वृद्धावस्था में जब उसी घर में उसे अवांछित वस्तु के रूप में देखा जाने लगता है तो लगता है जैसे उस घर में रहने वालों की इंसानियत और उनके संस्कार मर चुके हैं.
विश्वभर में ऐसे हालात को देखते हुए ही वृद्धजनों के लिए कुछ कल्याणकारी कदम उठाने की जरूरत महसूस हुई थी. इसीलिए वर्ष 1982 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ‘वृद्धावस्था को सुखी बनाइए’ जैसा नारा देते हुए ‘सबके लिए स्वास्थ्य’ अभियान शुरू किया था.
वृद्धों के साथ होने वाले अन्याय, उपेक्षा और दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने और वृद्धजनों के प्रति उदारता व उनकी देखभाल की जिम्मेदारी के अलावा उनकी समस्याओं के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने 14 दिसंबर 1990 को निर्णय लिया कि प्रतिवर्ष एक अक्तूबर का दिन दुनियाभर में ‘अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा.
संयुक्त राष्ट्र की इस पहल के बाद एक अक्तूबर 1991 को पहली बार यह दिवस मनाया गया, जिसे ‘अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस’ के नाम से भी जाना जाता है. भारतीय समाज में संयुक्त परिवार को हमेशा से अहमियत दी गई है लेकिन आज के बदलते परिवेश में छोटे और एकल परिवार की चाहत में संयुक्त परिवार की अवधारणा खत्म होती जा रही है.
यही कारण है कि लोग अपने बुजुर्गों से दूर होते जा रहे हैं और नई पीढ़ी दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार से वंचित होती जा रही है. एकल परिवार के बढ़ते चलन के कारण ही परिवारों में बुजुर्गों की उपेक्षा होने लगी है. न चाहते हुए भी बुजुर्ग अकेले रहने को मजबूर हैं.
इसका एक गंभीर परिणाम यह देखने को मिला है कि बुजुर्गों के प्रति अपराध भी तेजी से बढ़े हैं. शहरों-महानगरों में आए दिन बुजुर्गों को निशाना बनाए जाने की खबरें दहला देती हैं. दूसरा गंभीर परिणाम यह कि बच्चों को बड़े-बुजुर्गों का सान्निध्य नहीं मिलने के कारण उनके जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.