देश की सुरक्षा में नए आयाम जोड़ने के प्रयास
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: January 1, 2024 09:49 AM2024-01-01T09:49:16+5:302024-01-01T09:55:51+5:30
दुनिया में सुरक्षा सहित विकास के क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों के बीच सभी देशों की चिंता बढ़ी है, जिसे दूर करने के लिए अंतरिक्ष में भेजे गए उपग्रह बहुत सहायता कर रहे हैं।
दुनिया में सुरक्षा सहित विकास के क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों के बीच सभी देशों की चिंता बढ़ी है, जिसे दूर करने के लिए अंतरिक्ष में भेजे गए उपग्रह बहुत सहायता कर रहे हैं। जलवायु से लेकर भौगोलिक स्थितियों को समझने तथा दुश्मन देशों की गतिविधियों को जानने के लिए उपग्रह काफी मददगार साबित हो रहे हैं।
अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों के अनेक जासूसी उपग्रह अंतरिक्ष में होने के बाद भारत ने अपना पहला जासूसी उपग्रह वर्ष 2009 में भेजा था। उसके बाद तीन और उपग्रह भेजे गए। किंतु अब अगले पांच साल में जमीन से जुड़ी खुफिया जानकारियों को जमा करने के लिए 50 जासूसी उपग्रह भेजने की तैयारी आरंभ हो गई है।
इस बात को सार्वजनिक रूप से इसरो के प्रमुख डॉ एस सोमनाथ ने बताया है। अलग-अलग ऊंचाई पर तैनात किए जाने वाले इन उपग्रहों की सहायता से दुश्मनों की हरकतों पर नजर रखी जा सकेगी। इससे सीमाओं पर होने वाली घुसपैठ पर रोक लगाने में सहायता मिलेगी। इनके माध्यम से सैनिकों की आवाजाही पर नजर रखी जा सकेगी।
वैसे वर्ष 2009 में भारत को जासूसी उपग्रह की जरूरत तब महसूस हुई थी, जब समुद्री सीमा से मुंबई में आए आतंकवादियों ने हमले किए थे। उसके बाद से चुनौतियां कम नहीं हुईं, बल्कि बढ़ी ही हैं। उत्तरी सीमा हो या फिर दक्षिणी क्षेत्र अथवा पूर्व-पश्चिम का मामला, सभी स्थानों पर तकनीकी स्तर पर मजबूत होकर ही चुनौतियों से निपटा जा सकता है।
यूं देखा जाए तो भारत अपने स्वभाव के अनुसार एक तरफ जहां दुनिया के विकसित देशों की तुलना में जासूसी के मामले में पीछे है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका सहित अनेक देशों में इसे लेकर होड़ मची है। बीते समय में भी भारत ने जासूसी के मुद्दे को बहुत मामूली तरीके और दबे-छिपे अंदाज में अंजाम दिया किंतु पचास उपग्रहों को छोड़े जाने की सार्वजनिक घोषणा नए भारत का संदेश है, जो यह कहता है कि अब देश अपनी सुरक्षा संबंधी चिंताओं को अनदेखा नहीं कर सकता है।
यहां तक कि भारत ने दो महाद्वीपों पर बन रहे दुनिया के सबसे बड़े रेडियो टेलिस्कोप की योजना में भी भागीदारी ले ली है, जिसमें देश ने सहयोग राशि भी प्रदान की है। भारत को हमेशा ही पूर्वी सीमा पर चीन अपने सैनिकों की हलचल से और पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान आतंकवाद का पोषण कर चुनौती देता है। दक्षिण के समुद्री क्षेत्र में भी चीन की हलचल बनी रहती है।
ऐसे में केवल सैन्य संसाधनों को मजबूत कर ही काम नहीं चलाया जा सकता है। सेना को आधुनिक तकनीक की आवश्यकता है, जिस पर दुनिया के अनेक देश काम कर रहे हैं। अब भारत भी खुलेआम अपनी ताकत को हर स्तर पर बढ़ा रहा है, जो उसे दुनिया के नक्शे पर मजबूत राष्ट्र बनने में सहायक होगी। दरअसल ताकत का बोलबाला ही विकसित राष्ट्र का सपना साकार करेगा।