संपादकीय: घोषणापत्र सिर्फ कागज का टुकड़ा बनकर न रह जाएं 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 10, 2019 06:12 AM2019-04-10T06:12:50+5:302019-04-10T06:12:50+5:30

पिछले कुछ चुनावों से सभी राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणापत्रों को केवल प्रचार का हिस्सा ही मानती चली आ रही हैं. इनमें लोकलुभावन और अव्यावहारिक बातों को शामिल कर दिया जाता है.

Editorial: manifesto should not just became a piece of paper | संपादकीय: घोषणापत्र सिर्फ कागज का टुकड़ा बनकर न रह जाएं 

संपादकीय: घोषणापत्र सिर्फ कागज का टुकड़ा बनकर न रह जाएं 

भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है, जिसे संकल्प पत्र का नाम दिया गया है. भाजपा ने अपने ‘संकल्प पत्र’ में कुल 75 संकल्प लिए हैं. इन सभी को आजादी के 75 साल पूरे होने पर 2022 तक पूरा करने का वादा किया गया है. कांग्रेस पहले ही अपना घोषणा पत्र जारी कर चुकी है. 

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ‘हम निभाएंगे’ के वादे के साथ न्यूनतम आय योजना, किसानों के लिए अलग बजट, 22 हजार नौकरियां, स्वास्थ्य आदि से जुड़ी 52 घोषणाएं की हैं. यानी, देश की दोनों बड़ी पार्टियों का घोषणा पत्र देश की जनता के सामने आ चुका है. दोनों ने अपने-अपने हिसाब से वादों के माध्यम से जनता को लुभाने की कोशिश की है. लोकतांत्रिक चुनावों में वादों का अपना महत्व है, आखिर इन्हीं के माध्यम से पता चलता है कि हमारे नेता देश को कौन-सी दिशा देना चाहते हैं. 

दुर्भाग्यवश, पिछले कुछ दशकों में ये चुनावी वादे महज झूठ का पुलिंदा बन कर रह गए हैं. इतना ही नहीं, इनके भरोसे चुनाव जीत जाने वाले जनप्रतिनिधि न केवल अपने वादों को भुला देते हैं, बल्कि अपने संवैधानिक उत्तरदायित्व से भी मुंह मोड़ते नजर आने लगते हैं. जबकि, देश की स्वतंत्रता के बाद राजनेताओं ने अपनी योजनाओं के माध्यम से देश की तस्वीर बदलने की भरपूर कोशिश की. उन्हीं की बदौलत आज यह देश विकसित राष्ट्र बनने की कतार में खड़ा है.

 लेकिन, पिछले कुछ चुनावों से सभी राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणापत्रों को केवल प्रचार का हिस्सा ही मानती चली आ रही हैं. इनमें लोकलुभावन और अव्यावहारिक बातों को शामिल कर दिया जाता है. यही वजह है कि आम जनता का अब इन घोषणापत्रों से विश्वास डिगने लगा है, जो बड़ी चिंता का कारण है. आवश्यक है कि हर पार्टी अपने चुनावी घोषणापत्र के प्रति गंभीर और उत्तरदायी बने. 

जीत कर आने के बाद उनको पूरा करने की प्रतिबद्धता भी दिखाए. इधर देखने में यह भी आ रहा है कि चुनाव, पार्टी और उनकी नीतियों पर नहीं, बल्कि व्यक्तियों पर आधारित हो गए हैं. यह भी एक गलत परंपरा है. हर राजनीतिक पार्टी का प्रयास होना चाहिए कि आम आदमी को त्वरित और प्रभावी सेवा मिल सके, उसका जीवन आसान बन सके. इसके लिए हर पार्टी को जवाबदेह होना होगा ताकि इस बार भी कहीं ऐसा न हो कि पार्टियों के घोषणापत्र सिर्फ कागज का टुकड़ा बनकर रह जाएं. 

Web Title: Editorial: manifesto should not just became a piece of paper