संपादकीय: भारत रत्न सम्मान और चुनावों पर ध्यान!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: January 28, 2019 04:28 IST2019-01-28T04:28:19+5:302019-01-28T04:28:19+5:30
फिलहाल केंद्र सरकार ने एक साहसिक कदम में हर बात को दरकिनार कर अपने आधार से तीन व्यक्तियों को चुना है, जो सम्मानित व्यक्तियों के लिहाज से स्वागत योग्य है.

संपादकीय: भारत रत्न सम्मान और चुनावों पर ध्यान!
चुनावी वर्ष में केंद्र सरकार की हर गतिविधि को चुनाव से अलग नहीं देख पाना अपरिहार्य बन चुका है. ऐसे में कितने भी तर्क दिए जाएं, मगर बात तो मतदाताओं से जुड़ ही जाती है. भारत रत्न सम्मान के लिए तीन महानुभावों का ताजा चयन भी चुनाव से जुड़ा माना जा रहा है. हालांकि चुनी गई तीनों हस्तियां अपने-अपने क्षेत्र में महान हैं.
चुने गए हर व्यक्ति ने अपने सार्वजनिक जीवन में अनेक उपलब्धियां हासिल कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े नानाजी देशमुख मूलत: महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके के हिंगोली जिले के निवासी थे और उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वावलंबन के क्षेत्र में देश के ग्रामीण भागों में गुजारा.
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें अनुकरणीय योगदान के लिए पद्म विभूषण भी प्रदान किया था. इसी प्रकार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारतीय राजनीति में अपना अलग स्थान बनाया. अनेक सरकारों में काम करते हुए देश की सेवा कर स्वयं को सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित किया. वहीं पूर्वोत्तर राज्य असम के गायक भूपेन हजारिका ने अपनी मूल भाषा असमिया के अलावा हिंदी, बांग्ला सहित कई अन्य भारतीय भाषाओं में गाने गाए और भारतीय संगीत को विश्व स्तर पर पहुंचाया.
इस सबके बावजूद तीनों महान शख्स अलग-अलग तरह से राजनीति से जुड़े दिखते हैं. ताजा परिस्थितियों में नानाजी देशमुख आरएसएस, प्रणब मुखर्जी कांग्रेस और भूपेन हजारिका का असम से संबंध चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. इस माहौल में हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का चयन नहीं होने से निराश होने वाले भी बहुत हैं और चूंकि तीनों भारत रत्न पाने वालों के चयन आधार अपने-अपने हैं, ऐसे में शिवसेना की तरफ से वीर सावरकर के नाम की मांग उठना स्वाभाविक है.
फिलहाल केंद्र सरकार ने एक साहसिक कदम में हर बात को दरकिनार कर अपने आधार से तीन व्यक्तियों को चुना है, जो सम्मानित व्यक्तियों के लिहाज से स्वागत योग्य है.
देश में प्रतिभाओं और उपलब्धियों की फेहरिस्त लंबी है, ऐसे में कहीं खुशी, कहीं गम भी स्वाभाविक है. मगर ध्यानचंद जैसी हस्तियों का सम्मान नहीं होना दु:खद है. उम्मीद है कि भविष्य में देश के सर्वोच्च सम्मान में केवल राजनीति का आधार ही नहीं देखा जाएगा, बल्कि जनभावना को भी आधार बनाया जाएगा.