संपादकीय: पानी बचाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास हों

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 27, 2019 01:38 PM2019-02-27T13:38:45+5:302019-02-27T13:38:45+5:30

ऐसे में केंद्रीय भूतल परिवहन तथा जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की यह चिंता जायज है कि भारत में पानी की कमी नहीं है लेकिन उसका दोहन अनियंत्रित रूप से हो रहा है जिसके कारण पेयजल संकट की स्थिति उत्पन्न हो रही है.

Editorial: Attempt at war level to save water | संपादकीय: पानी बचाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास हों

संपादकीय: पानी बचाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास हों

जल संकट सिर्फ भारत की ही नहीं बल्कि समूचे विश्व की समस्या है. यह एक ऐसा संकट है जो साल दर साल विकराल रूप धारण करता जा रहा है. स्थानीय स्तर पर तो पीने के पानी के लिए खूनी संघर्ष आम बात हो गई है. अब हालत यह है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक, मौसम विशेषज्ञ तथा पर्यावरणविद् भविष्यवाणी कर रहे हैं कि पानी के लिए विश्व युद्ध तक हो सकता है.

ऐसे में केंद्रीय भूतल परिवहन तथा जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की यह चिंता जायज है कि भारत में पानी की कमी नहीं है लेकिन उसका दोहन अनियंत्रित रूप से हो रहा है जिसके कारण पेयजल संकट की स्थिति उत्पन्न हो रही है. गडकरी का यह कथन दुनिया के उन तमाम देशों पर भी लागू होता है जो जल संकट का सामना कर रहे हैं. भारत में जल संकट मानव निर्मित ही है.

यहां के अधिकांश भूभाग को छोटी-बड़ी नदियों का वरदान मिला हुआ है. इन नदियों ने सदियों तक भूजल स्तर को स्वस्थ रखा, जमीनें उपजाऊ रहीं तथा पीने, खेती व अन्य कार्यो के लिए भरपूर पानी उपलब्ध रहा. औद्योगीकरण की रफ्तार, जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि तथा शहरों के बेतरतीब विकास, नदियों के किनारे रेत का अवैध उत्खनन, विशाल बांधों का जरूरत से ज्यादा निर्माण, भूजल के बेहिसाब दोहन के कारण भारत में जल संकट की स्थिति पैदा होने लगी.

जल व्यवस्थापन के परंपरागत एवं प्राचीन उपायों की पूर्णत: उपेक्षा करने के कारण स्थिति और बिगड़ गई. इन सबके बावजूद पानी की कमी हिंदुस्तान में नहीं है मगर उसे बर्बाद ज्यादा किया जा रहा है, उसका असमान वितरण हो रहा है. इसके अलावा उपलब्ध जलस्नेतों के संरक्षण की कोई ठोस नीति आज भी नहीं है. जो नदियां पर्यावरणीय कारणों से सूख गईं, उन पर अतिक्रमण हो गया है. यह सिलसिला जारी है.

लुप्त नदियों को न तो पुनर्जीवित किया जा रहा है और न ही बड़े बिल्डरों को छोटी नदियों एवं नालों को पाटने से कोई रोक रहा है. एक दशक पहले मुंबई में आई विनाशकारी बाढ़ का कारण ही यही था कि नदी को बिल्डरों ने पाट दिया था तथा पानी की निकासी के तमाम स्नेत बंद हो गए थे. यही नहीं नदियों का प्रवाह नियंत्रित कर देने से भूजल स्तर भी बुरी तरह प्रभावित होता है.

हमें एक बात का ध्यान रखना होगा कि पानी के जो स्नेत उपलब्ध हैं, उन्हें बढ़ाया नहीं जा सकता लेकिन इस बात की सतर्कता भी जरूरी है कि ये जलस्नेत सूख न जाएं या अतिक्रमण की चपेट में न आएं. पानी के संरक्षण तथा संवर्धन की प्राचीन और मध्ययुगीन पद्धतियां आज भी प्रासंगिक हैं. आधुनिक तकनीक तथा परंपरा के मेल से जलसंवर्धन का बेहतरीन तरीका विकसित किया जा सकता है.

पानी के बिना मनुष्य का अस्तित्व नहीं रह सकता. अत: जलसंकट को हल्के में लेना भारी भूल होगी. पानी की एक-एक बूंद बचाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास किए जाने की तत्काल जरूरत है अन्यथा हालात काबू से बाहर हो जाएंगे.

Web Title: Editorial: Attempt at war level to save water

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