भारत की ताकत को अब पहचान चुका है चीन, गौरीशंकर राजहंस का ब्लॉग

By गौरीशंकर राजहंस | Published: February 24, 2021 02:15 PM2021-02-24T14:15:55+5:302021-02-24T14:17:27+5:30

अमेरिका ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन द्वारा अपने सैनिकों को पीछे हटाने की खबरों पर वह करीबी नजर बनाए है.

eastern Ladakh India power China discuss military dialogue Indian Army China’s People's Liberation Army gauri shankar rajhans blog  | भारत की ताकत को अब पहचान चुका है चीन, गौरीशंकर राजहंस का ब्लॉग

रूसी न्यूज एजेंसी ने कहा था कि इन झड़पों में चीन के 45 सैनिक मारे गए थे. (file photo)

Highlightsभारत और चीन के बीच पिछले साल पांच मई में पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक संघर्ष के बाद सैन्य गतिरोध शुरू हुआ था.दोनों पक्षों ने भारी संख्या में सैनिकों तथा घातक अस्त्र-शस्त्रों की तैनाती कर दी थी.चीन ने आधिकारिक रूप से इन झड़पों में अपने चार सैनिकों के मारे जाने की सूचना दी है.

पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील क्षेत्र से चीन और भारत के सैनिकों के पीछे हटने का काम पूरा हो गया है. भारत और चीन दोनों देशों के सैनिक एक समझौते के तहत अपने-अपने क्षेत्रों में लौट गए हैं.

आठ महीने पहले भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें हुई थीं, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था. भारत ने तो यह कबूल किया था उसके प्राय: 20 सैनिक शहीद हो गए हैं. परंतु चीन ने सारी दुनिया से यह आंकड़ा छिपा कर रखा कि इन झड़पों में उसके कितने सैनिक मारे गए. अब आकर चीन ने आधिकारिक रूप से इन झड़पों में अपने चार सैनिकों के मारे जाने की सूचना दी है.

40 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे

जबकि उसके 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे. आकाश में जो सैटेलाइट घूमते रहते हैं वे वास्तविकता की तस्वीर भेजते रहते हैं. रूसी न्यूज एजेंसी ने कहा था कि इन झड़पों में चीन के 45 सैनिक मारे गए थे. जबकि ब्रिटिश जासूसों ने यह पता लगाया था कि 40 के करीब चीनी सैनिक हताहत हुए थे.

अब चीन ने यह समझ लिया कि वह अब बहुत देर तक इस सत्य को नहीं छिपा सकता है. इन झड़पों के बाद भी कठोर ठंड में भारतीय सैनिक जिस तरह वहां डटे रहे उससे चीन को यह समझ में आ गया कि भारत की फौज का वह बहुत अधिक नुकसान नहीं कर पाएगा. अंत में लाचार होकर और संभवत: अपने देश के सलाहकारों की सलाह पर चीन ने इस मुद्दे पर पीछे हटना ही उचित समझा.

चीन की बहुत पहले से विस्तारवादी नीति रही है

चीन की बहुत पहले से विस्तारवादी नीति रही है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि जिस तरह भारत अंग्रेजों के द्वारा गुलाम बनाया गया उसी तरह चीन भी पश्चिमी देशों का सताया हुआ देश है और जब दोनों देश आजाद होंगे तो वे एक दूसरे के परम मित्र बन जाएंगे. परंतु चीन ने हमेशा कोशिश की कि भारत के निकटवर्ती क्षेत्र को चीन में मिलाकर हड़प ले.

जब 1949 में चीन ने अपने देश में साम्यवादी शासन स्थापित कर लिया, माओ-त्से-तुंग चीन के राष्ट्रपति बन गए, चाउ-एन-लाई चीन के प्रधानंत्री बन गए और पंडित नेहरू से दोस्ती का स्वांग रचने लगे तो नेहरूजी उनकी बातों में आ गए. अचानक ही चीनी आकाओं ने तिब्बत पर कब्जा करना शुरू कर दिया. उस समय तक तिब्बत एक तरह से भारत का हिस्सा समझा जाता था.

भारतीय मुद्रा का चलन था

वहां पर भारतीय मुद्रा का चलन था, भारतीय डाकघर थे और भारतीय पुलिस भी वहां रहती थी. हर तरह से यह समझा जाता था कि तिब्बत भारत का ही अंग है. परंतु रातोंरात साम्यवादी चीन ने तिब्बत को हड़प लिया. जब पंडित नेहरू ने इसका घोर विरोध किया तब चाउ-एन-लाई ने पंडित नेहरू को समझाया कि तिब्बत की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रहेगी और चीन किसी भी हालत में तिब्बत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा. परंतु चीनी नेता धूर्त थे और वे शीघ्र ही अपने वायदों से मुकर गए.

बात यहां तक आई कि वे दलाई लामा को ल्हासा से गिरफ्तार कर चीन ले जाना चाहते थे. जब दलाई लामा के गुप्तचरों ने उनको इसकी सूचना दी तब दलाई लामा रातोंरात ल्हासा से प्राय: 100 खच्चरों पर अपने अनुयायियों के साथ सवार होकर भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए.

पंडित नेहरू ने दलाई लामा राजनीतिक शरण दे दी

जब वे सुरक्षित रूप में भारत में प्रवेश कर गए तब पंडित नेहरू ने उन्हें राजनीतिक शरण दे दी और इसकी घोषणा भारत की संसद में भी कर दी. चीनी नेता पंडित नेहरू के इस बर्ताव से बहुत नाराज हुए और उन्होंने पंडित नेहरू से कहा कि वे दलाई लामा को चीन के हवाले कर दें. पंडित नेहरू इस बात के लिए तैयार नहीं हुए और तभी से दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास आती गई.

हाल में गलवान घाटी में जो झड़पें हुई थीं उनमें चीन को यह एहसास हो गया कि भारत की सेना बहुत ही बहादुर है और उसके लिए भारतीय सेना को हराना संभव नहीं होगा. चीन यह समझ गया कि इन वर्षो में भारत एक अत्यंत ही मजबूत राष्ट्र बन कर उभरा है और किसी भी हालत में भारतीय सेना को नीचा दिखाना संभव नहीं है. इसी कारण लद्दाख में उसकी सेना पीछे लौट गई और दोनों के बीच समझौता हुआ कि दोनों पक्षों के वरिष्ठ सैनिक अधिकारी वार्ता करेंगे और एक सर्वमान्य समझौता करेंगे.

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