डॉ. विशाल शर्मा का ब्लॉग: मोहन राकेश ने दी नाट्य लेखन को आधुनिक चेतना

By डॉ. विशाला शर्मा | Published: January 8, 2021 12:06 PM2021-01-08T12:06:22+5:302021-01-08T12:15:16+5:30

मोहन राकेश की आज जयंती है. अमृतसर में जन्में मोहन राकेश हिंदी के एकमात्र ऐसे नाटककार हैं जिनके सभी नाटकों का सफलतापूर्वक मंचन हो चुका है.

Dr Vishala Sharma blog on Mohan Rakesh who gave modern presence to drama writing | डॉ. विशाल शर्मा का ब्लॉग: मोहन राकेश ने दी नाट्य लेखन को आधुनिक चेतना

मोहन राकेश, जिन्होंने हिंदी नाट्य कला को दी नवीनता (फाइल फोटो)

Highlightsमोहन राकेश की शिक्षा लाहौर में हुई, विभाजन के बाद आकर जालंधर में बसेमोहन राकेश की ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘लहरों के राजहंस’ तथा ‘आधे अधूरे’ जैसी रचना काफी लोकप्रिय रहीमोहन राकेश को हिंदी नाट्य कला को नवीनता देने का श्रेय जाता है, 1972 में हुआ निधन

अमृतसर में जन्मे मोहन राकेश की शिक्षा लाहौर में हुई. विभाजन के पश्चात वे जालंधर आकर बस गए. मोहन राकेश अल्पायु में ही संस्कृत में गद्य और पद्य लिखा करते थे. जीवन के पथ पर भी और साहित्य कर्म में भी वह सदैव गतिशील बने रहे. 

गति सदैव विद्रोह को जन्म देती है इसी गति के वशीभूत मोहन राकेश समाज और व्यक्ति के बनाए बंधनों और नियमों को नकारते रहे. साहित्य क्षेत्र में चलने वाले हथकंडे, छल कपट और षड्यंत्र से उन्हें नफरत थी. 

इसलिए मोहन राकेश का व्यक्तित्व उनकी रचनात्मकता से अलग नहीं है. उनके तीन नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘लहरों के राजहंस’ तथा ‘आधे अधूरे’ नाटक विधा के लिए नए मार्ग को प्रशस्त करते हैं

‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक रोमांटिक भाव बोध और आधुनिक बोध को साथ लेकर चलता है. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस नाटक का नामकरण कालिदास की कल्पना को लेकर किया गया है. मोहन राकेश ने अतीत के कथानक और चरित्रों को लेकर आधुनिक भाव बोध को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है. 

इन नाटकों में मोहन राकेश ने यथार्थ के धरातल पर अस्तित्व को मनोविज्ञान के सहारे अभिव्यक्ति दी है. मोहन राकेश का नाटक ‘लहरों के राजहंस’ का प्रमुख पात्र नंद भी समस्याओं से जूझ रहा है. मनुष्य की अस्मिता का बोध ही मानव हृदय के द्वंद्व को जन्म देता है. 

नंद का द्वंद्व आज के मानव का द्वंद्व भी है. तीसरे चर्चित नाटक ‘आधे-अधूरे’ में महेंद्रनाथ एक बेरोजगार एवं असफल पति है. अपनी पत्नी और बच्चों के द्वारा भी सम्मान नहीं पाता है जिसमें अपनी हार के लिए छटपटाहट है. नाटककार मनुष्य को वर्तमान स्थितियों के बीच रखकर अस्तित्व के संकट से जूझने देता है और अपने संवादों से स्पष्ट करता है कि जीवन में किसी वस्तु की अति कष्ट का कारण बनती है. 

ऊंची आकांक्षाएं व्यक्ति को सदैव आधा अधूरा बनाए रखती हैं. इस नाटक में मध्यम वर्गीय परिवार में व्याप्त तनाव कुंठा और कलह अवलोकनीय है, जिसे हम मध्यवर्गीय जीवन की शुष्क विनाशकारी रिक्तता का प्रखर दस्तावेज मान सकते हैं.

परंपरागत पद्धतियों का त्याग कर आधुनिक युग में बौद्धिक और मनोवैज्ञानिक व्याख्या का प्रस्तुतिकरण करने वाले मोहन राकेश ने भारतीय नाटक को विश्व के रंगमंच पर स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया. उनकी लेखनी में कसाव, अनुशासन और विचारों को सही रूप प्रदान करने की अद्भुत क्षमता थी. 

हिंदी नाट्य कला को नवीनता देने का श्रेय उन्हें जाता है. वे हिंदी के एकमात्र ऐसे नाटककार हैं जिनके सभी नाटकों का सफलतापूर्वक मंचन हो चुका है. 

Web Title: Dr Vishala Sharma blog on Mohan Rakesh who gave modern presence to drama writing

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