डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: इस डाल पर फिर बैठेगी सोने की चिड़िया

By विजय दर्डा | Published: July 17, 2023 07:05 AM2023-07-17T07:05:34+5:302023-07-17T07:05:34+5:30

हो सकता है कि अभी आप मेरी उम्मीद से सहमत न हों लेकिन वह दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया में रहने के लिए सबसे ज्यादा मुफीद जगह के रूप में हिंदुस्तान को पसंद किया जाएगा।

Dr. Vijay Darda blog: India developing story, golden bird will again sit on this branch | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: इस डाल पर फिर बैठेगी सोने की चिड़िया

डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: इस डाल पर फिर बैठेगी सोने की चिड़िया

कोई 58 साल पहले बनी फिल्म सिकंदर-ए-आजम का ये गीत हम सभी मौके-बे-मौके जरूर गुनगुनाते हैं...जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा...वो भारत देश है मेरा...! गीतकार राजेंद्र कृष्ण द्वारा लिखा गया यह गीत खासकर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर जरूर बजता है. आप सोचेंगे कि इस गीत की चर्चा अभी क्यों? स्वतंत्रता दिवस तो अगले महीने है! ...और भारत अब सोने की चिड़िया भी नहीं है!

जी हां, यही वो सोच है जिसने मुझे प्रेरित किया कि इस विषय पर अपनी बात आपके सामने रखी जाए. मैंने देश और दुनिया के बड़े हिस्से की यात्राएं की हैं. हर नस्ल और हर संस्कृति के लोगों से मेरी मुलाकातें हुई हैं. हिंदुस्तान के प्रति उनके नजरिये को समझने का मौका मिला है. अंग्रेजों ने जिस धरती को संपेरों और मदारियों के देश के रूप में दुष्प्रचारित किया, उसकी ठसक अब पूरी दुनिया महसूस कर रही है.

चलिए सबसे पहले बात करते हैं उस सोने की चिड़िया की जो हमारी गुनगुनाहट में आज भी शामिल है. फिर इस बात की चर्चा करेंगे कि हमारे देश की डाल पर फिर से सोने की चिड़िया कैसे बैठेगी? मुगलों और पुर्तगालियों से लेकर डच, डेनिश, फ्रांसीसी और अंग्रेज यहां आए ही इसलिए क्योंकि भारत की समृद्धि की ख्याति उन तक पहुंची. 
हम सीधे-सादे लोग थे और वे चतुर चालाक, जो लूट की कला में माहिर थे. मुगलों की लूट तो सबको पता है, आपको जानकर हैरत होगी कि 1498 में भारत पहुंचे पुर्तगाली वास्कोडिगामा ने आने-जाने में जितना खर्च किया उससे 60 गुना ज्यादा मुनाफा कमाया. 

अंग्रेजों का कच्चा-चिट्ठा तो ऑक्सफोर्ड यूनियन में सांसद शशि थरूर खोल ही चुके हैं. थरूर ने प्रामाणिक रूप से यह साबित किया है कि ब्रिटिश जब यहां आए तब वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी हिस्सेदारी करीब 23 प्रतिशत थी लेकिन जब अंग्रेज लौटे तो यह आंकड़ा 4 प्रतिशत पर आ पहुंचा था. विश्व व्यापार में हमारी हिस्सेदारी 27 प्रतिशत थी वह 2 प्रतिशत पर आ गई. हिंदुस्तान की कीमत पर ब्रिटेन का औद्योगीकरण हुआ. 

केवल थरूर ही नहीं देश की जानी-मानी अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक ने भी यह साबित किया है कि 1765 से लेकर 1947 के बीच अंग्रेजों ने हमारे देश के खजाने से 44 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा लूटे.

इतनी बड़ी लूटपाट मचाने वाले ब्रिटेन को अर्थव्यवस्था के मामले में हिंदुस्तान ने पीछे छोड़ दिया है तो उम्मीद की बड़ी किरण है. हम आज पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं और जल्दी ही तीसरे क्रमांक पर पहुंचेंगे! जब अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती है तो आधारभूत संरचनाएं भी तेजी से विकसित होती हैं. संसाधन जुटते जाते हैं. सुविधाएं विकसित होती हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी का लक्ष्य है कि 2047 तक हम विकसित देश के रूप में जाने जाएं. जब मैं दुनिया के दूसरे देशों से अपने देश की तुलना करता हूं तो मुझे स्पष्ट नजर आता है कि कुछ समस्याएं हम दूर कर लें तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदुस्तान रहने की सबसे मुफीद जगह होगी. अपनी समृद्धि के कारण अमेरिका दुनिया भर को आज भी आकर्षित करता है लेकिन वहां की सामाजिक संरचना तार-तार हो रही है. 

कोई सिरफिरा कभी भी कहीं भी गोलियों की बौछार कर देता है. वहां का मौसम कठिन है. यूरोप की स्थिति तो दुनिया देख ही रही है. वैसे भी यूरोप का वक्त बीत चुका है. अमेरिकी गठबंधन को हटा दें तो यूरोप की खुद की आज पहले जैसी हैसियत नहीं रह गई है.

निश्चित रूप से रहने की दृष्टि से आज स्विट्जरलैंड जरूर इतना साधन सम्पन्न है कि दुनिया भर से लोग वहां खिंचे चले आते हैं. दूसरी ओर दुबई ने भी बड़ी तेजी से संसाधनों का विकास किया है. सारी लक्जरी वहां मौजूद है. दुनिया भर से लोग वहां पहुंच रहे हैं, काम कर रहे हैं,  लेकिन वहां एक बड़ी समस्या है खुलेपन की. वैचारिक भी और सामाजिक भी! आपको वहां रहना है तो निजी आजादी से समझौता करना होगा. वैचारिक आजादी का तो खैर सवाल ही नहीं है! 

शानदार तो सिंगापुर भी है लेकिन वहां भी सब कुछ शिकंजे में कसा हुआ है. सुविधाओं के मामले में चीन दुनिया के हर देश को टक्कर दे रहा है लेकिन वहां भी आजादी जैसी कोई चीज नहीं है. मात्र एक सरकारी नीति पर सवाल करने वाले जैक मा जैसे उद्योगपति को तबाह किया जा सकता है तो दूसरों की क्या बिसात?

ऐसी स्थिति में स्वाभाविक रूप से पूरी दुनिया की नजर हिंदुस्तान पर है जहां सच्चे अर्थों में लोकतंत्र है,  मौसम की विविधता है और सबसे बड़ी बात कि हिंदुस्तान के स्वभाव में सबको अपना बना लेने की और अतिथि देवो भव: की सांस्कृतिक परंपरा है. 

कट्टरता के कुछ उदाहरण हमें डराते भी हैं लेकिन वह इतनी प्रभावी कभी नहीं हो पाएगी कि हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को नष्ट कर सके. ये एक ऐसा मुद्दा है जिस पर पूरे हिंदुस्तान को पैनी और सख्त निगाह रखनी होगी. वैसे आतंकवाद भी डराता है लेकिन हमारी फौज इतनी सक्षम है कि उसे नेस्तनाबूद कर दे. यदि पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करना है तो हमें शिक्षा, स्वास्थ्य और सरकारी कार्यों की सुगमता पर ध्यान देने की जरूरत होगी. 

निश्चित रूप से इस दिशा में काम हो रहा है लेकिन गति और बढ़ानी होगी. जब अपने देश में ही विश्वस्तरीय पढ़ाई होगी और रोजगार के परिपूर्ण अवसर होंगे तो कोई युवा विदेश क्यों जाएगा? कोई विदेश जाकर क्यों बसेगा? सबको पता है कि विदेश कितना भी लुभाए, वह अपना देश नहीं है. अपनी मां की जगह दूसरी कोई बहुत स्नेही महिला नहीं ले सकती. 

हिंदुस्तान को फिर से सोने की चिड़िया बनाने के लिए सरकार तो अपने तईं सबकुछ करेगी ही, हम नागरिकों को अपने स्तर पर भी समर्पित होना होगा. तभी हम सब सही अर्थों में गा पाएंगे...सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा...!

Web Title: Dr. Vijay Darda blog: India developing story, golden bird will again sit on this branch

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