डॉ अकील खान का ब्लॉग: देश में आधुनिक शिक्षा की बुनियाद रखने वाले नेता मौलाना आजाद
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 11, 2020 01:45 PM2020-11-11T13:45:29+5:302020-11-11T15:03:35+5:30
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को पवित्न स्थान मक्का में हुआ. ‘आजाद’ उनका उपनाम था. उनके जन्म के कुछ साल बाद उनके पिता अपने देश भारत लौट आए. घर में अरबी, फारसी और उर्दू में इतिहास, गणित, दर्शन शास्त्र, तर्क विद्या और दूसरे विषय पिता और दूसरे विद्वान लोगों की निगरानी में सीखे.
भारत में आजादी के समय निरक्षरता एक बड़ी समस्या थी. 35 करोड़ की आबादी में 85 प्रतिशत लोग अशिक्षित थे. उच्च शिक्षा के क्षेत्न में सिर्फ 20 विश्वविद्यालय, 496 कॉलेज और उनमें रजिस्टर्ड कुल 241639 विद्यार्थी थे. सिर्फ 36 इंजीनियरिंग कॉलेज थे और हर साल केवल 3000 विद्यार्थियों को दाखिला देने की उनकी क्षमता थी. साइंस, इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी और मेडिसिन में अनुसंधान संस्थान केवल नाम को थे. शिक्षा से संबंधित इस निराशाजनक स्थिति में नेहरू और गांधीजी ने मौलाना आजाद को शिक्षा मंत्नालय संभालने का न्यौता दिया. मौलाना आजाद 15 अगस्त 1947 से 22 फरवरी 1958 को देहांत होने तक केंद्रीय शिक्षा मंत्नी रहे.
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को पवित्न स्थान मक्का में हुआ. ‘आजाद’ उनका उपनाम था. उनके जन्म के कुछ साल बाद उनके पिता अपने देश भारत लौट आए. घर में अरबी, फारसी और उर्दू में इतिहास, गणित, दर्शन शास्त्र, तर्क विद्या और दूसरे विषय पिता और दूसरे विद्वान लोगों की निगरानी में सीखे. अंग्रेजी खुद बहुत मेहनत से सीखी. मौलाना आजाद इंडियन नेशनल कांग्रेस वर्किग कमेटी के नेता बने और दो बार निर्वाचित अध्यक्ष की हैसियत से काम किया. भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया. कई बार जेल गए. आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले राजनीतिक नेताओं में उनका एक विशेष स्थान है.
मौलाना आजाद का कहना था कि शिक्षा का मतलब केवल रोजी-रोटी कमाना ही नहीं होना चाहिए बल्कि उससे व्यक्तित्व विकास का भी काम लिया जाना चाहिए. केंद्रीय शिक्षा मंत्नी होने की हैसियत से उन्होंने प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के क्षेत्नों को आधुनिक बनाने और उन्हें समय की जरूरतों को पूरा करने के योग्य बनाने के लिए कई ठोस कदम उठाए, जिनका लाभ आज मिल रहा है. भारत में प्रारंभिक शिक्षा को अनिवार्य और नि:शुल्क बनाने की नीति उन्होंने ही बनाई और लागू की. इस नीति के मुताबिक 6 से 14 साल के बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है. इसके नतीजे में 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत थी. आजादी के समय यह केवल 15 प्रतिशत थी. माध्यमिक शिक्षा के सुधार और विकास के लिए 1952 में मौलाना ने सेकंडरी एजुकेशन कमीशन (मुदलियार कमीशन) बनाया.
उन्होंने स्त्नियों और अनपढ़ बालिगों की शिक्षा पर खास ध्यान दिया. स्कूल की शिक्षा की गुणवत्ता और क्षमता बढ़ाने के लिए उन्होंने 19 दिसंबर 1947 को सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन देहली की बुनियाद रखी जिसे बाद में देहली यूनिवर्सिटी का डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन बना दिया गया. कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) भारत का एक मशहूर साइंस और टेक्नोलॉजी में अनुसंधान के लिए इंस्टीट्यूट है जिसकी 41 साइंस और टेक्नोलॉजी की लेबोरेटरियां, उनमें काम करने वाले 4600 से ज्यादा साइंटिस्ट हैं.
हालांकि यह इंस्टीट्यूट 1942 में कायम हो चुका था लेकिन मौलाना आजाद के नेतृत्व में इसका विस्तार और विकास 1949 से शुरू हुआ. 21 सितंबर 1953 में ‘इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, पिलानी के उद्घाटन के मौके पर मौलाना आजाद ने कहा था कि 5 साल में सीएसआईआर के तहत 12 वीं लेबोरेटरी कायम होने का मतलब है कि औसत 2 से ज्यादा रिसर्च लेबोरेटरियों की हर साल बुनियाद रखी गई. सीएसआईआर के हजारों पेटेंट्स हैं जिसमें से कई साधारण जिंदगी में और सरकार के अलग-अलग डिपार्टमेंट में इस्तेमाल किए जाते हैं.
मौलाना आजाद भारत की कला और संस्कृति की अहमियत अच्छी तरह जानते थे. वे यह भी जानते थे कि अंग्रेजी सरकार ने इस क्षेत्न में कुछ भी नहीं किया था. उन्होंने कला और संस्कृति की सुरक्षा और तरक्की के लिए साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी और संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इंडियन कौंसिल फॉर कल्चर रिलेशंस की बुनियाद रखी.
स्वतंत्नता सेनानी और महान नेता मौलाना आजाद का जन्मदिवस 11 नवंबर सारे भारत में ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है. कई सरकारी और गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थान मौलाना आजाद के नाम पर कायम किए गए हैं.