वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः दिवाली का अर्थ पटाखेबाजी नहीं
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 7, 2018 03:42 PM2018-11-07T15:42:49+5:302018-11-07T15:42:49+5:30
यहां असली सवाल यह है कि हम पटाखे फोड़ते ही क्यों हैं? क्या दिवाली और पटाखों का कोई जन्मजात संबंध है? नहीं, ऐसा नहीं है। अमेरिकी और चीनी लोगों के यहां दिवाली कोई नहीं मनाता (प्रवासी भारतीयों के सिवाय) लेकिन वहां गजब की पटाखेबाजी होती है।
वेदप्रताप वैदिक
जो लोग दीपावली का अर्थ सिर्फ पटाखे फोड़ना समझते हैं, उन्हें इस साल निराशा होगी, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखेबाजी के खिलाफ अपना फैसला दिया है। दिल्ली की पुलिस ने भारी मात्र में पटाखे जब्त किए हैं। इसके बावजूद लोग पटाखे फोड़ने से बाज नहीं आएंगे। मैंने अब से 60-65 साल पहले ही दिवाली पर पटाखे फोड़ना बंद कर दिया था लेकिन कई लोग दिवाली के दिन मेरे यहां ढेरों पटाखे भेज दिया करते थे और फोड़ने वाले भी आ जाते थे लेकिन इस साल कमाल हुआ है। दर्जनों मित्र और रिश्तेदार तरह-तरह के उपहार लाए लेकिन एक भी पटाखा नहीं है। मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि इस साल मैंने संकल्प किया था कि ‘न तो फोडूंगा, न फोड़ने दूंगा।’
यहां असली सवाल यह है कि हम पटाखे फोड़ते ही क्यों हैं? क्या दिवाली और पटाखों का कोई जन्मजात संबंध है? नहीं, ऐसा नहीं है। अमेरिकी और चीनी लोगों के यहां दिवाली कोई नहीं मनाता (प्रवासी भारतीयों के सिवाय) लेकिन वहां गजब की पटाखेबाजी होती है। अब से लगभग 40 साल पहले 4 जुलाई के दिन मेरा अमेरिका के सिएटल में रहना हुआ। वह अमेरिका का स्वतंत्नता दिवस होता है। सिएटल की झील के चारों तरफ और आसमान में रात के वक्त ऐसी पटाखेबाजी हुई कि मुङो लगा कि वह रात नहीं, दिन है।
कहने का मतलब यह कि पटाखेबाजी मनुष्य स्वभाव की एक कमजोरी है, जिसे आप सारी दुनिया में देख सकते हैं। शोर मचाकर और अंधेरे में उजाला दिखाकर आप दुनिया को बताना चाहते हैं कि आप कितने खुश हैं। शोर ऐसा कि कान फट जाएं और उजाला ऐसा कि आंखें चौंधिया जाएं। इन दोनों से भी ज्यादा खतरनाक प्रदूषण है, जो प्राणलेवा है। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने खतरनाक रसायनों से बनने वाले पटाखे पर रोक लगाई है। दूसरे शब्दों में पटाखेबाजी और दिवाली में कोई अनन्य या अन्योन्याश्रित संबंध नहीं है। दिवाली तो लक्ष्मीजी के स्वागत का त्यौहार है। इस पवित्न-बेला में हम पटाखों का प्रदूषण क्यों फैलाएं?