दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु बारिशः बाढ़ से खुलती शहरों के विकास की कलई और सामने आती गंदगी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 6, 2025 05:14 IST2025-06-06T05:14:32+5:302025-06-06T05:14:32+5:30
Delhi, Mumbai and Bengaluru rains: 26 मई को मुंबई में एक घंटे में 104 मिलीमीटर वर्षा हुई, जिससे मीठी नदी उफनने लगी. नतीजतन कुर्ला में बाढ़ आ गई और मेट्रो लाइन की तीन सेवाएं रोकनी पड़ीं.

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प्रभु चावला
मुंबई में हुई मूसलाधार बारिश से दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे देश के महानगर इतने बदहाल हो गए कि इनकी गलियां नदी में, घर सैलाब में और सपने त्रासदी में तब्दील हो गए. बेंगलुरु में बस से उतरते ही एक युवक मेनहोल में गिर गया, तो दिल्ली में दीवार ढहने से कुछ श्रमिकों की मृत्यु हो गई. दो मई को कुछ ही घंटों में देश की राजधानी में 80 मिलीमीटर बारिश हुई, जो 1901 के बाद सबसे ज्यादा वर्षा थी. ऐसे ही, 26 मई को मुंबई में एक घंटे में 104 मिलीमीटर वर्षा हुई, जिससे मीठी नदी उफनने लगी. नतीजतन कुर्ला में बाढ़ आ गई और मेट्रो लाइन की तीन सेवाएं रोकनी पड़ीं.
कुर्ला में आई बाढ़ से आठ लोग मारे गए. लगातार बारिश से बेंगलुरु ने व्हाइटफील्ड जैसे अपने आइटी कॉरिडोर को डूबते देखा. एक्स की एक पोस्ट में दुख जताते हुए लिखा गया, ‘टेक सिटी गंदगी में डूब रही है.’ आजादी के 75 साल बाद भी देश के 70 फीसदी से अधिक शहरों में बेहतर सीवेज सिस्टम या कूड़ों के निपटान की व्यवस्था नहीं है.
मानसून में भीषण वर्षा से आई बाढ़ अचानक घटी कोई घटना नहीं है, बल्कि देश की तहस-नहस करने वाली नदियों और अवरुद्ध पड़े ड्रेनेज सिस्टम का उदाहरण है. गंगा से लेकर महानदी तक देश में 400 से अधिक जलमार्ग हैं. इसी साल आई एक चौंकाने वाली रिपोर्ट के मुताबिक, देश की 603 नदियों का 46 फीसदी भाग भीषण रूप से प्रदूषित है.
रिपोर्ट में 275 नदियों के जलमार्ग में 320 जहरीले इलाके हैं. गंगा रोज अपने साथ 2.9 अरब लीटर अनुपचारित सीवेज ढोती है, तो मुंबई की मीठी नदी कीचड़ से भरी हुई है. भारत की शहरी सीवेज प्रणाली उपेक्षा के भार से दबकर ध्वस्त हो चुकी है. दिल्ली में रोज 380 करोड़ लीटर सीवेज निकलता है, लेकिन इनमें से 260 करोड़ लीटर ही उपचारित है.
मुंबई में रोज 210 करोड़ लीटर सीवेज निकलता है, जिसका आधा ही उपचारित है. बेंगलुरु अपने दैनिक सीवेज के 30 फीसदी को ही साफ करता है. ‘प्रगति’ की दौड़ में, जिसके तहत नए हवाई अड्डे, हाइवे और स्मार्ट सिटीज का निर्माण हुआ है, हमारी प्राकृतिक रक्षा प्रणाली नष्ट हो चुकी है.
नदीपथ वाले रास्तों में निर्मित दिल्ली के यमुना एक्सप्रेस-वे के कारण बाढ़ के पानी को समाहित करने की यमुना नदी की क्षमता प्रभावित हुई है. बेंगलुरु में 27000 करोड़ रु. से निर्मित पेरिफेरल रिंग रोड के कारण 1100 एकड़ में फैले ग्रीन कवर और झील नष्ट हो चुके हैं. इस साल प्रकाशित नेशनल वेटलैंड्स इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 से अब तक देश में 40 फीसदी वेटलैंड विलुप्त हो चुके हैं.
चेन्नई के पल्लीकरानाई में कभी 5500 हेक्टेयर तक दलदल था, जो अब घटकर 600 हेक्टेयर में सिमट गया है. हवाई अड्डे के विस्तार को इसकी वजह बताया जा रहा है. इसका नतीजा 2023 में आई भीषण बाढ़ के रूप में सामने आया. वर्ष 2000 के बाद से शहरी इलाकों में खुले इलाके 30 फीसदी सिकुड़ गए हैं, जिससे स्थिति भयावह हुई है.
दरअसल भ्रष्टाचार इन सारी बुराइयों की जड़ है. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक, नमामि गंगे परियोजना में 2014 से अब तक 32000 करोड़ रु. आवंटित किए गए हैं, इसके बावजूद इसकी 68 फीसदी सीवेज ट्रीटमेंट इकाइयां 2025 में निष्क्रिय पाई गईं. बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने 2020 से 2024 के बीच नालियों से गाद निकालने में 1500 करोड़ रु. गंवा दिए,
जिनमें से 60 प्रतिशत धनराशि ऐसी कंपनियों को दी गई, जो अस्तित्व में ही नहीं थीं. इसके विपरीत, वैश्विक शहर अद्भुत उदाहरण पेश करते हैं. जैसे, टोक्यो के भूमिगत जलाशय और फुटपाथ सालाना होने वाली 1500 मिलीमीटर वर्षा का आधा हिस्सा अवशोषित कर लेते हैं, और इस तरह शहर को बाढ़ से बचाते हैं.
न्यूयॉर्क के 10600 किमी लंबे ड्रेनेज सिस्टम की रीयल टाइम मॉनिटरिंग होती है और वहां 500 करोड़ लीटर सीवेज को साफ किया जाता है. जर्मनी के 99 फीसदी कचरे को ऊर्जा में बदला जाता है, जबकि भारत में 6.2 करोड़ टन कचरे में से 1.2 करोड़ टन को ही उपचारित किया जाता है.
जापान अपने कचरे के 70 फीसदी का ट्रीटमेंट करता है, जबकि भारत में कुल कचरे का 80 फीसदी पहाड़ के रूप में इकट्ठा होता है. इंदौर का कचरा प्रबंधन मॉडल तथा मेघालय की उमंगोट संरक्षण व्यवस्था बताती है कि भारत में भी बदलाव संभव है. लेकिन उसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए.