किसान आंदोलन लंबा चला तो पहला सियासी झटका हरियाणा सरकार को लग सकता है?
By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 3, 2020 14:36 IST2020-12-03T14:35:10+5:302020-12-03T14:36:50+5:30
हरियाणा की सत्ता के समीकरण पर नजर डालें तो 90 विधानसभा सीटों में से 40 सीटें बीजेपी की हैं, 10 वर्तमान उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी की हैं, जबकि 31 कांग्रेस की हैं.

किसानों ने विधायकों पर ज्यादा दबाव बनाया, तो निर्दलीय विधायक तो सरकार से दूर हो ही सकते हैं. (file photo)
किसान आंदोलन दिन-प्रतिदिन जोर पकड़ता जा रहा है. पहले आंदोलन में पंजाब के किसान ही ज्यादा नजर आ रहे थे, लेकिन अब हरियाणा के किसान और खाप पंचायतें भी आंदोलन के समर्थन में सक्रिय हो रही हैं. यदि केन्द्र सरकार ने कोई सर्वमान्य समाधान जल्दी ही नहीं तलाशा तो आनेवाले समय में बीजेपी की हरियाणा सरकार को तगड़ा सियासी झटका भी लग सकता है.
हरियाणा की सत्ता के समीकरण पर नजर डालें तो 90 विधानसभा सीटों में से 40 सीटें बीजेपी की हैं, 10 वर्तमान उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी की हैं, जबकि 31 कांग्रेस की हैं. एक-एक सीट इनेलो और हलोभपा की हैं, तो 8 विधायक निर्दलीय हैं. जाहिर है, हरियाणा में बीजेपी सरकार पूर्ण बहुमत में नहीं है.
इसलिए यदि किसानों ने विधायकों पर ज्यादा दबाव बनाया, तो निर्दलीय विधायक तो सरकार से दूर हो ही सकते हैं, जेजेपी के लिए भी सवालिया निशान लग जाएगा, मतलब- ऐसी स्थिति में हरियाणा सरकार अल्पमत में भी आ सकती है.
ऐसा नहीं है कि केवल बीजेपी विरोधी ही केन्द्र सरकार के इन क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं, बल्कि बीजेपी से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़े कुछ संगठन और सहयोगी दल भी इन क़ानूनों के खिलाफ हैं. याद रहे, अकाली दल तो पहले ही इस मुद्दे पर बीजेपी से अलग हो गया था.
खबरों पर भरोसा करें तो हरियाणा सरकार में सहयोगी बने विधायकों पर समर्थन वापसी के लिए दबाव बढ़ने लगा है, लिहाजा इन्हें जनता के, खासकर ग्रामीण क्षेत्र की जनता के कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है. बड़ा सवाल यही है कि क्या केन्द्र सरकार हरियाणा की सत्ता के सियासी संकट बढ़ने की कीमत पर भी अपने किसान आंदोलन विरोधी सियासर तेवर बरकरार रख पाएगी?