प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: पुराने बांधों के मद्देनजर जरूरी था बांध सुरक्षा कानून
By प्रमोद भार्गव | Published: December 6, 2021 09:12 AM2021-12-06T09:12:48+5:302021-12-06T09:16:28+5:30
इस कानून का उद्देश्य बांधों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत और संस्थागत कार्ययोजना उपलब्ध कराना है। भारत में बांधों की सुरक्षा के लिए कानून की कमी के कारण यह चिंता व विचार का मुद्दा था। खासतौर से बड़े बांधों का निर्माण देश में बड़ी बहस और विवाद के मुद्दे बने हैं।
बड़े बांधों की सुरक्षा से जुड़ा एक अत्यंत आवश्यक कानून लोकसभा के बाद आखिरकार राज्यसभा से भी पारित हो गया। लोकसभा से यह ‘बांध सुरक्षा विधेयक’ दो साल पहले पास हो गया था, लेकिन इसके बाद राज्यसभा के पटल पर रखे जाने की बारी नहीं आने पाई। किंतु अब इस लंबित विधेयक ने कानूनी रूप ले लिया है। हालांकि इस शीत सत्र में विधेयक को राज्यसभा में पेश किए जाने के बाद विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया था। उनकी मांग थी कि पहले इसे प्रवर समिति के सामने रखा जाना चाहिए। मगर इस मांग को नहीं माना गया और विधेयक ध्वनिमत से पास हो गया। इस कानून के वजूद में आने के बाद केंद्र के साथ राज्य सरकारों की भी जिम्मेदारी तय होगी।
दरसअल इन बांधों के साथ निर्माण से जुड़ी बुनियादी समस्या है कि ज्यादातर बांध दो राज्यों की सीमा पर बने हैं। इस कारण सिंचाई के लिए पानी लेने में विवाद बना ही रहता है। रखरखाव पर धनराशि कौन खर्च करे, इस गफलत में भी बांधों का क्षरण चलता रहता है। यह कानून तब और ज्यादा जरूरी व प्रासंगिक है, जब देश के अधिकांश बांधों की उम्र पचास वर्ष से ऊपर हो गई है।
नदियों पर बांध इस दृष्टि से बनाए गए थे, जिससे जल के इन अक्षुण्ण भंडारों से सिंचाई, बिजली और महानगरों के लिए पेयजल की आपूर्ति के साथ पानी की बर्बादी पर अंकुश लगे। लेकिन औसत आयु पूरी होने से पहले ही देश के ज्यादातर बांध एक तो गाद से भर गए, दूसरे बांधों की पक्की दीवारों में क्षरण होने से पानी का लीकेज बढ़ गया। पुराने होने से कई बांध बरसात में ज्यादा पानी भर जाने पर टूटने भी लगे हैं।
गाद भर जाने से बांधों की जलग्रहण क्षमता कम हुई है। नतीजतन ये जल्दी भर जाते हैं। ऐसे में बांधों से छोड़ा गया पानी तबाही का कारण भी बन रहा है। इस नाते बांधों की मरम्मत के लिए, समय रहते भारत सरकार ने देशभर के बांधों को सुरक्षित बनाए रखने की दृष्टि से 10211 करोड़ रुपए का बजट भी आवंटित किया हुआ है।
यह धन बांध पुनर्वास और सुधार कार्यक्रम (डीआरआईपी) के अंतर्गत दिया गया है। दो चरणों में बांधों की मरम्मत होगी। भारत बांधों की संख्या के लिहाज से दुनिया में तीसरे स्थान पर है। देश में कुल बांध 5745 हैं। इनमें से संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने 1115 बांधों की हालत खस्ता बताई है। चीन पहले और अमेरिका दूसरे स्थान पर है। देश में 973 बांधों की उम्र 50 से 100 वर्ष के बीच है, जो 18 प्रतिशत बैठती है।
56 फीसदी ऐसे बांध हैं, जिनकी आयु 25 से 50 वर्ष है। शेष 26 प्रतिशत बांध 25 वर्ष से कम आयु के हैं, जिन्हें मरम्मत की अतिरिक्त जरूरत नहीं है। दरअसल पुराने और ज्यादा जल दबाव वाले बांधों की मरम्मत इसलिए जरूरी है, क्योंकि बरसात का अधिक मात्रा में पानी भर जाने पर इनके टूटने का खतरा बना रहता है। बांधों की उम्र पूरी होने पर रख-रखाव का खर्च बढ़ता है, लेकिन जल भंडारण क्षमता घटती है।
बांध बनते समय उनके आसपास आबादी नहीं होती है, लेकिन बाद में बढ़ती जाती है। नदियों के जल बहाव के किनारों पर आबाद गांव, कस्बे एवं नगर होते हैं, ऐसे में अचानक बांध टूटता है तो हजारों लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। भारत में बांधों की मरम्मत अप्रैल 2021 से लेकर 2031 तक पूरी होनी है। कई बांध इतनी जर्जर अवस्था में आ गए हैं कि बांध की दीवारों, मोरियों और द्वारों से निरंतर पानी रिसता रहता है।
इस नजरिये से इस कानून का उद्देश्य बांधों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत और संस्थागत कार्ययोजना उपलब्ध कराना है। भारत में बांधों की सुरक्षा के लिए कानून की कमी के कारण यह चिंता व विचार का मुद्दा था। खासतौर से बड़े बांधों का निर्माण देश में बड़ी बहस और विवाद के मुद्दे बने हैं। फरक्का, नर्मदा सागर और टिहरी बांध के विस्थापितों का आज भी सेवा-शर्तो के अनुसार उचित विस्थापन संभव नहीं हुआ है। बड़े बांधों को बाढ़, भू-जल भराव क्षेत्रों को हानि और नदियों की अविरलता के लिए भी दोषी माना गया है।