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ब्लॉग: पश्चिम बंगाल में शिक्षक नियुक्ति में करोड़ों रुपयों का घोटाला और हाई कोर्ट का नयाब फैसला

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: May 19, 2023 14:28 IST

बिहार और बंगाल में सरकारी भर्तियों में ‘कैश या काइंड’ में लाभ लेकर नौकरी देने की सरकारी नीति के उपयोग के जो मामले उभर कर सामने आ रहे हैं, वे आंख खोल देने वाले हैं.ौ

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भारत की जनता में सहते रहने की अदम्य शक्ति है और वह सबको अवसर देती है कि वे अपने वादों और दायित्वों के प्रति सजग रहें परंतु जनप्रतिनिधि होने पर भी ज्यादातर राजनेता जनप्रतिनिधित्व के असली काम को संजीदगी से नहीं लेते हैं. चुनावी सफलता पाने के बाद वे यथाशीघ्र और यथासंभव सत्ता भोगने के नुस्खे आजमाने लगते हैं.

ऐसे में जनसेवा का वह संकल्प और जज्बा एक ओर धरा रह जाता है जो धूमिल रूप में ही सही, उनके मन में कभी तैर रहा होता था. दरअसल वे एक व्यापारी की तरह सोचने और काम करने लगते हैं. पर आगे क्या हो सकता है इसका दर्दनाक उदाहरण पश्चिम बंगाल में जेल में बंद राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और उनके सहयोगियों से मिलता है.

जिस तरह शिक्षक नियुक्ति के मामले में करोड़ों रुपयों के गंभीर आर्थिक घोटालों का पता चल रहा है और हजारों की संख्या में नियुक्ति पा चुके शिक्षकों को उच्च न्यायालय के आदेश द्वारा नौकरी से मुक्त किया जा रहा है, वह स्वतंत्र भारत के राजनैतिक और शैक्षिक इतिहास में नायाब है. तेजतर्रार मुख्यमंत्री की नाक तले इतना कुछ कैसे होता रहा, यह घोर आश्चर्य का विषय है. 

याद रखना होगा कि स्वास्थ्य, कानून, प्रौद्योगिकी और शिक्षा जैसे तकनीकी क्षेत्रों में ज्ञान तथा कौशल की विशेषज्ञता का कोई विकल्प नहीं होता है. राजनैतिक दबाव में इसकी भी बुरी तरह उपेक्षा होने लगी है. कोशिश यही रहती है कि यथाशक्ति अपने, अपने भरोसे के, अपनी जाति-बिरादरी के, अपनी विचारधारा के या फिर किसी तरह से (आर्थिक या अन्य) लाभ पहुंचाने वाले आदमी को मौका दिया जाए.

बिहार और बंगाल में सरकारी भर्तियों में ‘कैश या काइंड’ में लाभ लेकर नौकरी देने की सरकारी नीति के उपयोग के जो मामले उभर कर सामने आ रहे हैं, वे आंख खोल देने वाले हैं. इन सबमें सत्ता का जबरदस्त दुरुपयोग किया गया है और आंख मूंद कर अवैध कमाई की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता. अपने आदमियों को (ही) भरने के दुराग्रह के तात्कालिक लाभ दिखते हैं और कुछ (अवांछित) लोगों को नौकरी और अन्य लाभ भी मिल जाते हैं. 

उन लोगों से दल विशेष को लाभ भी मिल सकता है परंतु अंतत: उस तरह का निवेश सामाजिक अन्याय का ही रूप लेगा. यदि और जगहों की खोज खबर ली जाए, तो इस तरह की और गड़बड़ियां भी जरूर मिलेंगी जहां विभिन्न पदों पर धन लेकर नियुक्तियां हुई हैं. राजनैतिक संस्कृति का अनिवार्य अंश बनता जा रहा सीमित स्वार्थ का विषाणु राजरोग की तरह जीवन के अनेक क्षेत्रों को बुरी तरह संक्रमित करता जा रहा है और कार्य संस्कृति को बाधित कर रहा है.

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