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कोरोना काल में अच्छे दिनों पर निठल्ला चिंतन, पीयूष पांडे का ब्लॉग

By पीयूष पाण्डेय | Updated: November 7, 2020 13:07 IST

दिवाली पर बिन चेतावनी आने वाली कोरोना की तीसरी लहर भी भयंकर टेंशन दे सकती है. लेकिन भारतवासियों को जो बात दुनियाभर में आकर्षण का विषय (कई बार नमूना भी) बनाती है, वो है उनका हद से ज्यादा साहसी होना.

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ठळक मुद्दे रेल की पटरी से लेकर ट्रैफिक भरी सड़क पर कानों में इयरफोन लगाए चलते साहसी भी यहीं देखे जा सकते हैंट्रेन में बैठने को जगह हो, फिर भी कई साहसी यात्नी दरवाजे पर लटक कर जाते दिखते हैं. अमेरिका-यूरोप में विनाशलीला दिखा चुका कोरोना वायरस भी सोचता होगा कि भारत में मेरे ‘अच्छे दिन’ कब आएंगे?

हिंदुस्तान के लोग अभी तक अमूमन दो तरह की लहर से परिचित रहे हैं. पहली, समुंदर की लहर. दूसरी, चुनावी लहर. लेकिन, इन दिनों कोरोना की तीसरी लहर का हल्ला है.

जिस तरह बिन बुलाए मेहमान बेवजह का टेंशन देते हैं, वैसे ही दिवाली पर बिन चेतावनी आने वाली कोरोना की तीसरी लहर भी भयंकर टेंशन दे सकती है. लेकिन भारतवासियों को जो बात दुनियाभर में आकर्षण का विषय (कई बार नमूना भी) बनाती है, वो है उनका हद से ज्यादा साहसी होना.

ट्रेन में बैठने को जगह हो, फिर भी कई साहसी यात्नी दरवाजे पर लटक कर जाते दिखते हैं. रेल की पटरी से लेकर ट्रैफिक भरी सड़क पर कानों में इयरफोन लगाए चलते साहसी भी यहीं देखे जा सकते हैं. इस साहस का ही असर है कि लोगों को कोरोना की रत्ती भर परवाह नहीं है. कभी-कभी मुझे लगता है कि अमेरिका-यूरोप में विनाशलीला दिखा चुका कोरोना वायरस भी सोचता होगा कि भारत में मेरे ‘अच्छे दिन’ कब आएंगे?

खैर, कोरोना के ‘अच्छे दिन’ का मामला वायरस समाज का अंदरूनी मामला है. इससे मुझे क्या? मुझे अपने अच्छे दिनों से लेना-देना है, जिनका उसी तरह कुछ अता-पता नहीं, जिस तरह चुनाव बाद घोषणापत्नों का नहीं होता. कोरोना काल में नौकरी चली गई. बचत खत्म हो गई. मित्न-परिचितों को कोरोना हुआ तो अस्पतालों के चक्कर लगाते-लगाते सारे अस्पतालों की जानकारी भले गूगल से ज्यादा हो गई अलबत्ता हर बार अपने अच्छे दिन को हालात के आईसीयू में भर्ती पाया. मेरी सरकार से मांग है कि वो अच्छे दिन लाने के लिए मेरे कुछ सुझावों पर अमल करे.

1- अच्छे दिन लाने के लिए एक कमेटी का गठन करे. कमेटी हर पंद्रह दिन में बैठक कर लोगों को बताए कि अच्छे दिन लाने के लिए भरसक कोशिश कर रही है. लोग रिपोर्ट का इंतजार करेंगे, अच्छे दिन का नहीं.

2- अच्छे दिन की परिभाषा बदली जाए. नीति आयोग बताए कि जो रोज पानी पी रहा है, उसके लिए अच्छे दिन हैं. तब सरकारी दस्तावेजों में लोगों के अच्छे दिन आ जाएंगे.

3- सरकार हर गली-मुहल्ले, सड़क, चौराहे पर ‘अच्छे दिन आ गए’ के पोस्टर-बैनर टंगवा दे ताकि लोग गुजरते हुए हमेशा यही पढ़ें कि  अच्छे दिन आ गए.

टॅग्स :कोविड-19 इंडियाकोरोना वायरसकोरोना वायरस इंडियाअमेरिकावर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशनभारत सरकार
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