कोविड-19 : प्रकृति के संदेश को समझें, पढ़ें राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का ब्लॉग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 20, 2020 06:17 AM2020-03-20T06:17:20+5:302020-03-20T06:17:20+5:30

हम सभी के लिए अगला सबक यह है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए. मनुष्य ही एकमात्न ऐसी प्रजाति है जिसने अन्य सभी प्रजातियों पर आधिपत्य जमा लिया है, पूरी धरती का नियंत्नण अपने हाथों में ले लिया है और यहां तक कि उसके कदम चांद तक पहुंच गए हैं. लेकिन विडंबना देखिए कि इतनी शक्तिशाली मानव जाति इस समय एक छोटे से जीव यानी कोरोना वायरस के सामने लाचार है.

COVID-19: Understand the message of nature, read President Ram Nath Kovind's blog on Coronavirus | कोविड-19 : प्रकृति के संदेश को समझें, पढ़ें राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का ब्लॉग

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद। (फाइल फोटो)

कोविड-19 नॉवेल कोरोना वायरस के प्रकोप ने पूरी दुनिया में अभूतपूर्व स्थिति उत्पन्न कर दी है. संक्रामक रोग और महामारी फैलना, मानव जाति के लिए कोई नई बात नहीं है. फिर भी, इतने बड़े पैमाने पर इस प्रकार के वायरस का प्रकोप, हम सबके जीवनकाल में नई घटना है.

मेरी संवेदना, इस वायरस के संक्रमण से जूझ रहे सभी लोगों तथा पूरी दुनिया में इसके शिकार हुए लोगों के परिवारों के साथ है. मेरी संवेदना उन डॉक्टरों, नर्सो, पैरामेडिक्स, स्वास्थ्य-कर्मियों तथा उन अन्य सभी लोगों के साथ भी है जो अपने जीवन को जोखिम में डाल  मानव जाति की सेवा कर रहे हैं.

हमारे समक्ष आए गंभीर संकट की इस घड़ी में देशवासियों ने जिस समझदारी और परिपक्वता का परिचय दिया है, उसकी मैं सराहना करता हूं. हमारे स्वास्थ्य-सेवा संस्थानों ने इस असाधारण और निरंतर बढ़ती हुई चुनौती से निपटने में बहुत मुस्तैदी बरती है तथा अपनी दक्षता का परिचय दिया है. हमारे नेतृत्व और प्रशासन ने परीक्षा की इस घड़ी में अपनी क्षमता सिद्ध की है. मैं आश्वस्त हूं कि हम एकजुट होकर इस संकट का सामना कर सकेंगे. मैं प्रधानमंत्नी नरेन्द्र मोदी की सराहना करता हूं कि उन्होंने शुरू में ही, इस महामारी की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाए और पिछले सप्ताह ‘सार्क’ के हमारे पड़ोसी देशों को साथ लेकर इसके प्रसार को रोकने के संयुक्त प्रयास आरंभ कर दिए.

इस महामारी ने हमें अन्य लोगों के साथ सम्मान-जनक दूरी बनाए रखने के लिए विवश कर दिया है. अपने विवेक से अथवा चिकित्सकों द्वारा अनिवार्य किया गया एकांतवास, हमारी अब तक की यात्ना और हमारे भविष्य के मार्ग पर चिंतन-मनन करने के लिए एक आदर्श अवसर सिद्ध हो सकता है. आज के इस कठिन दौर से गुजरते हुए हमें इस चुनौती को एक अवसर में बदलना चाहिए और यह विचार करना चाहिए कि इस संकट के जरिये प्रकृति हमें क्या संदेश देना चाहती है. प्रकृति से हमें अनेक प्रकार के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन मैं केवल कुछ ही पहलुओं पर संक्षेप में प्रकाश डालना चाहूंगा.

हम सभी जानते हैं कि इस संकट का सबसे स्पष्ट और पहला सबक है-साफ-सफाई. एहतियात बरतना ही  कोरोना वायरस की इस नई समस्या से निपटने का एकमात्न तरीका है. और इसके लिए डॉक्टर यही सलाह दे रहे हैं कि ‘सोशल डिस्टेन्सिंग’ के अलावा सभी लोग साफ-सफाई पर ध्यान दें. स्वच्छता और सफाई बनाए रखना, अच्छे नागरिक के मूलभूत गुणों में शामिल है. स्वयं महात्मा गांधी ने इन गुणों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए हम सबको प्रेरित किया था. साफ-सफाई और स्वच्छता, दक्षिण अफ्रीका और भारत में उनके ऐतिहासिक अभियानों के महत्वपूर्ण अंग रहे.

वर्ष 1896 में, गांधीजी भारत की यात्ना पर आए हुए थे. उसी समय बंबई में प्लेग फैल गया. प्लेग की रोकथाम के लिए उन्होंने सरकार को अपनी सेवाएं देने की पेशकश की. उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया. चूंकि वे राजकोट में थे इसलिए उन्होंने वहीं अपनी सेवाएं शुरू कर दीं. क्या आप जानना चाहेंगे कि एक स्वयंसेवी के रूप में उन्होंने क्या कार्य किया? उन्होंने शौचालयों की स्थिति देखी और लोगों को प्रेरित किया कि वे स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें.

हम सभी के लिए अगला सबक यह है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए. मनुष्य ही एकमात्न ऐसी प्रजाति है जिसने अन्य सभी प्रजातियों पर आधिपत्य जमा लिया है, पूरी धरती का नियंत्नण अपने हाथों में ले लिया है और यहां तक कि उसके कदम चांद तक पहुंच गए हैं. लेकिन विडंबना देखिए कि इतनी शक्तिशाली मानव जाति इस समय एक छोटे से जीव यानी कोरोना वायरस के सामने लाचार है. हमें इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि अंततोगत्वा, हम सभी मनुष्य जीवधारी मात्न हैं, और अपने जीवन के लिए अन्य जीवधारियों पर निर्भर हैं. प्रकृति को नियंत्रित करने और अपने लाभ के लिए सभी प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की तैयारियां, वायरस के एक ही प्रहार से तहस-नहस हो सकती हैं.  

हमें याद रखना चाहिए कि हमारे पूर्वज, प्रकृति को मां का दर्जा देते थे. उन्होंने हमें सदैव प्रकृति का सम्मान करने की शिक्षा दी. लेकिन इतिहास के किसी मोड़ पर, हम उनके दिखाए मार्ग से हट गए और हमने अपने परंपरागत विवेक का परित्याग कर दिया. अब महामारियां और असामान्य मौसम की घटनाएं आम होती जा रही हैं. समय आ गया है कि हम थोड़ा ठहर कर यह विचार करें कि हम रास्ते से कहां भटक गए, और यह भी कि हम सही रास्ते पर कैसे लौट सकते हैं.

अपने संबोधनों और वक्तव्यों में, प्राय: मैं ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सद्विचार का उल्लेख करता हूं. इसका अर्थ है कि सम्पूर्ण विश्व, एक ही परिवार है. यह कथन, आज के संदर्भ में जितना सार्थक है उतना पहले कभी नहीं रहा. आज हमारे सामने यह स्पष्ट है कि हर व्यक्ति, एक दूसरे के साथ बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है. हम सब वहीं तक सुरक्षित हैं जहां तक हम दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं. हमें केवल मनुष्यों की ही नहीं अपितु पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों की सुरक्षा भी करनी है.

यह महामारी अति-संक्रामक है इसलिए लोगों को एकजुट करके, स्वैच्छिक सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है. फिर भी, वायरस की रोकथाम और उन्मूलन के काम में लोग कई तरीकों से सहायता कर सकते हैं. जागरूकता बढ़ाने और घबराहट से बचाने में प्रत्येक नागरिक अपना योगदान दे सकता है. जो समर्थ हैं वे अपने संसाधनों को साझा कर सकते हैं, विशेषकर कम सुविधा संपन्न पड़ोसियों के साथ.

प्रकृति हमें यह याद दिलाना चाहती है कि हम पूरी विनम्रता के साथ, समानता और परस्पर-निर्भरता के मूलभूत जीवन-मूल्यों को स्वीकार करें. यह सबक हमें बहुत भारी कीमत चुका कर मिला है. लेकिन, जलवायु संकट जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करने तथा बेहतर और साझा भविष्य के निर्माण में यह सबक हमारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा. मैं आप सबके साथ इस सामूहिक संकल्प को दोहराता हूं कि हम सब वर्तमान संकट में से शीघ्रातिशीघ्र बाहर आएंगे और एक राष्ट्र के रूप में, अभूतपूर्व शक्ति के साथ आगे बढ़ेंगे.

Web Title: COVID-19: Understand the message of nature, read President Ram Nath Kovind's blog on Coronavirus

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