शैलेंद्र देवलंकर का ब्लॉग: कोरोना का कहर और भारत का आदर्श
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 23, 2020 16:12 IST2020-03-23T16:12:02+5:302020-03-23T16:12:02+5:30
कोरोना कोविड-19, जो कि चीन के वुहान में फैल चुका है, यह दुनिया भर के 145 से अधिक देशों के 3 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका है। मरने वालों की संख्या 8000 पार कर गई है। इस संकट का परिणाम कई देशों की अर्थव्यवस्था पर हों गया है। यूरोपीय देशों ने कोशिश करने के बावजूद भी यह वायरस नियंत्रण में नहीं आ रहा हैं।

कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया।
कोरोना के बढ़ते संक्रमण और दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति को देखते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया। इन सभी देश के नेताओं ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बात की। सार्क एसा पहला संगठन होगा जिसके माध्यम से सामूहिक प्रयास का विचार प्रथम सामने आया। वास्तव मे यूरोपीय संघ, आसियान के माध्यम से, एसा विचार आगे नहीं आया है। इसके विपरीत, यूरोपीय देशों ने अपनी सीमाओं को अन्य देशों के लिए बंद कर दिया है और पूरी तरह से अलग हो गए हैं। इस पृष्ठभूमि पर, सार्क द्वारा भारत के माध्यम से किए गए प्रयास निश्चित रूप से सार्थक हैं।
कोरोना कोविड-19, जो कि चीन के वुहान में फैल चुका है, यह दुनिया भर के 145 से अधिक देशों के 3 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका है। मरने वालों की संख्या 8000 पार कर गई है। इस संकट का परिणाम कई देशों की अर्थव्यवस्था पर हों गया है। यूरोपीय देशों ने कोशिश करने के बावजूद भी यह वायरस नियंत्रण में नहीं आ रहा हैं। इसकी तुलना में, कोरोना की स्थिति आठ दक्षिण एशियाई देशों, विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान, अफगानिस्तान में नियंत्रण में है, जो सार्क एसोसिएशन के सदस्य हैं। वास्तव में, भारत के अलावा दक्षिण एशियाई देशों को गरीब देशों के रूप में जाना जाता है। इन देशों में एक सक्षम चिकित्सा प्रणाली नहीं है, जो कोरोना वायरस के संक्रमण का सामना कर सकती है। इसलिए, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इन देशों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लिया और सभी आठ सार्क देशों के नेताओं के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बातचीत की। उनसे चर्चा की कि दक्षिण एशिया मे कोरोना वायरस के प्रसार को कैसे रोका जाए। एक साझा प्नीति सेट की गई है। इसके लिए 10 मिलियन डॉलर का एक बड़ा फंड जुटाने का प्रस्ताव रखा। इन गरीब देशों के पास कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए आवश्यक धन नहीं है। इसलिए भारत ने घोषणा की कि वह $ 10 मिलियन फंड दे रहा है।
भारत ने सार्क उपग्रह की घोषणा तब की थी जब नेपाल में 18 वां सार्क सम्मेलन करीब पांच साल पहले हुआ था। उसके बाद अब भारत ने कोरोना संक्रमण के लिए फंड जुटाने की दूसरी बड़ी घोषणा की। न केवल राजनीतिक कारणों से सार्क संगठन का जन्म हुआ, बल्कि सार्क का जन्म दक्षिण एशियाई देशों के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को साझा करने के लिए हुआ था, जिनमें कम और अधिक समानताएं हैं, इन सभी का सामयिक रूप से सामना करने के लिए सार्क संगठन का जन्म हुआ था। लेकिन पाकिस्तान की निरंतर राजनीति के कारण सार्क, क्षेत्रीय व्यापार संघ, लगभग ध्वस्त हो गया है। एसे समय मे, सामाजिक कारणों के लिए सार्क देशों को एकजुट करने की भारत की पहल निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। इसका सकारात्मक प्रभाव निश्चित रूप से दिखेंगा।
सार्क संगठन की स्थापना 1984 में हुई थी। पहला सार्क सम्मेलन बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आयोजित किया गया था। दक्षिण एशिया उपमहाद्वीप पहले केवल एक ही था। आज, भले ही 8 देश बनाए गए है, लेकिन वे एक व्यापक उपमहाद्वीप का हिस्सा थे। उदाहरण के लिए, म्यांमार प्राचीन समय का ब्रम्हदेश 1935 अधिनियम के तहत भारत से स्वतंत्र हो गया था। 1947 में, भारत, पाकिस्तान दो स्वतंत्र देश हुए। 1971 में बांग्लादेश का निर्माण हुआ। ये सभी देश एक बड़े भूखंड का हिस्सा थे। इसलिए उनकी समस्याएं समान हैं। ये देश भी एक ही काल में बने हैं। इसीलिए SAARC को इस दृष्टिकोण से बनाया गया था कि कैसे सामूहिक आर्थिक विकास को प्राप्त किया जाए, साथ ही साथ सामाजिक मुद्दों को कैसे हल किया जाए, आर्थिक लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जाए। फिर भी, पाकिस्तान ने राजनीतिक कारण का लगातार समर्थन किया है। परिणामस्वरूप, सार्क के गठन के 30 साल बाद भी, यह संगठन अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाया है। परिणामस्वरूप, भारत ने 'बिम्सटेक' जैसे उप-विभागीय संगठन की स्थापना करने की कोशिश की ।
पिछला 18 वां सार्क सम्मेलन नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित किया गया था । अगला सम्मेलन पाकिस्तान में होना था। लेकिन भारत में उरी और पठानकोट पर पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादियों द्वारा भयंकर आतंकवादी हमलों के कारण भारत ने सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया। और कुछ अन्य देशों से भी अपील की और उन्होने भी पाकिस्तान में सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया। अंत में, यह एक सम्मेलन हुआ ही नहीं।
इन सभी स्थितियों में, भारत ने पिछले पांच वर्षों में सार्क में बहुत अधिक पहल की है। इसका कारण भी स्वाभाविक है। जब 1984 में सार्क संगठन का गठन किया गया था, तब भारत अन्य गरीब देशों को वित्तीय सहायता नहीं दे सका क्योंकि भारत की वित्तीय स्थिति सक्षम नहीं थी। वर्तमान में भारत की वित्तीय स्थिति में सुधार हो रहा है। भारत दूसरे देशों को वित्तीय सहायता दे रहा है। भारत की आर्थिक विकास दर अच्छी है। भारत की पूरी अर्थव्यवस्था 2.5 ट्रिलियन डॉलर की है। इसलिए, भारत में गरीब देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की क्षमता है। पिछले कुछ वर्षों में, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका को बड़े पैमाने पर ऋण निधि प्रदान की जाने लगी है। इस बीच, जब भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, तब चीन ने इन देशों को बहुत अधिक वित्तीय सहायता प्रदान की और उन देशों पर प्रभाव डालने का प्रयास किया। इसके अलावा, चीन ने भारत के पड़ोसी देशों के बीच महत्वपूर्ण बंदरगाहों को विकसित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह एक तरह से भारत को घेरने की कोशिश थी। शुरुआत में, इन गरीब देशों ने चीन से आने वाले निवेश, धन का स्वागत किया। लेकिन अब स्थिति बदल गई है।
कोरोना वायरस का संक्रमण चीन से दुनिया भर में फैल गया है। कोरोना वायरस के संक्रमण ने चीन की अर्थव्यवस्था को मार दिया है। चीन के निर्यात में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। 50 प्रतिशत से अधिक उद्योग वहां बंद है। परिणामस्वरूप, चीन द्वारा विदेशों में शुरू किए गए बड़े उद्योग पर भी प्रश्न खड़े हुए है। इसलिए, चीन के पास दक्षिण एशियाई गरीब देशों की मदद करने की वित्तीय क्षमता नहीं है। इसी कारण का भारत ने फायदा उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि भारत उन गरीब देशों को वित्तीय सहायता देने के लिए तैयार है जो सार्क संगठन के सदस्य हैं। इस तरह हमने चीन को टक्कर देने की कोशिश की है।
हमारी मदद करने का महत्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि जैसा कि यह एकही उपमहाद्वीप का हिस्सा है, भारत की आंतरिक सुरक्षा पड़ोसी देशों की सुरक्षा स्थिति पर निर्भर करती है। इन देशों में सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य या राजनीतिक आपात स्थिति निर्माण होने से, इसके विपरीत परिणाम भारत पर पड़ते हैं। श्रीलंका में गृह युद्ध छिड़ने पर हजारों तमिल शरणार्थी भारत मे आए। भारत में बांग्लादेश से भी बड़ी संख्या में नागरिक आते हैं। नेपाल से भी लोग भारत आते हैं। दूसरी बात, भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक, सामाजिक व्यवस्था सक्षम नहीं है। वे कोरोना संक्रमण जैसी चुनौतियों का सामना नहीं कर सकते। इन गरीब देशों में जनसंख्या भी बहुत बढ़ गई है। ऐसे मामले में, कोरोना संक्रमण की संभावना बहुत अधिक है। अगर ऐसा होता है, तो इसके परिणाम भारत में देखे जा सकते हैं। क्योंकि शरणार्थियों की लंबी लाइन भारत में वापस आएगी। इसलिए भारत के पास पड़ोसी राष्ट्रों की देखभाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसलिए, एक ओर चीन को टक्कर देते हुए, भारत अपनी आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने के लिए इन देशों को मदद कर रहा है।
बेशक, एसा करते वक्त भारत ने दुनिया के सामने एक आदर्श रखा है। सार्क पहला संगठन होगा जिसके माध्यम से सामूहिक प्रयास का विचार आता है। वासत्व मे आसियान, यूरोपीय संघ के माध्यम से कोरोना संकट पर एक सामूहिक प्रयास का विचार भी आगे नहीं आया है । इसके विपरीत, यूरोपीय देशों ने अपनी सीमाओं को अन्य देशों के लिए बंद कर दिया है और पूरी तरह से अलग हो गए हैं। इस पृष्ठभूमि पर, सार्क द्वारा भारत के माध्यम से किए गए प्रयास निश्चित रूप से सार्थक हैं।
दुर्भाग्य से, पाकिस्तान ने इसमें अच्छा नहीं किया है। पाकिस्तानी प्रधान मंत्री इमरान खान ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सार्क प्रमुखों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भाग नहीं लिया। इसके बजाय पाकिस्तान के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस प्रतिनिधि ने यहा भी कश्मीर का मुद्दा उठाया। सामाजिक स्वास्थ्य की चुनौती के बावजूद, पाकिस्तान ने इसके बीच राजनीति लाकर अपनी इज्जत फिर से दिखाई है। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने सार्क प्रमुखों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में चीन की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि चीन ने उदाहरण दिया है कि कोरोना वायरस के प्रसार को कैसे रोका जाए। वास्तविक चीन की तुलना अन्य दक्षिण एशियाई देशों से नहीं की जा सकती। चीन द्वारा कितने भी दावे किए जा रहे हों फिर भी, दूसरी ओर चीन सरकार कोरोना वायरस के संक्रमण के बारे में जानकारी छिपा रही है। चीन में कितने संक्रमण हुए हैं, कितनी मौतें हुई हैं, और क्या उन्हें वास्तव में नियंत्रित किया जा सकता है, इसका सटीक विवरण देने वाली खबरे सामने नहीं आ रही है। इसके विपरीत, चीन ने वाशिंगटन पोस्ट, वॉल स्ट्रीट जर्नल, न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी अमेरिकी पत्रिकाओं के प्रतिनिधियों को निष्कासित कर दिया है। इसलिए पाकिस्तान ने चीन की जो प्रशंसा की है, वह पूरी तरह से गलत है। चीन में आयसेन नाम के एक डॉक्टर के साथ एक साक्षात्कार अभी सामने आया है। तदनुसार, कोरोना प्रसार को रोकने के लिए चीन को एक महीने की देरी हुई है। वह कहते हैं कि अगर उस समय चीन सतर्क रहा होता, तो इसका प्रकोप वैश्विक स्तर पर नहीं फैलता। फिर भी, पाकिस्तान ने केवल भारत को कमजोर करने के लिए चीन की बातों को उठाया। भारत की पहल या दक्षिण एशिया स्तर पर एक सामूहिक मंच बनाकर सार्क संघटन के देशों को एकजुट करने के प्रयासों को हराने का प्रयास पाकिस्तानी अफसरों का था। इससे पहले, भारत ने दक्षिण एशियाई देशों को कनेक्टिविटी से जोड़ने की पहल की थी, इसमे भी पाकिस्तान ने बाधाएं पैदा की। सार्क उपग्रह में पाकिस्तान ने भाग नहीं लिया इसके बावजूद, भारत ने पाकिस्तान की अनदेखी की और सार्क देशों को सहायता प्रदान की।
वास्तव में, भारत में कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है, आंतरिक समस्याएं बहुत अधिक हैं, चुनौतियां भी