भ्रष्टाचार की सड़ांध को समूल मिटाने के उपायों पर विचार हो, विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग

By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 25, 2021 01:22 PM2021-03-25T13:22:15+5:302021-03-25T13:24:49+5:30

महाराष्ट्र में जो तमाशा चल रहा है, वह इसी प्रवृत्ति का परिणाम है. आरोप यह है कि सत्ता में बैठा व्यक्ति पुलिस के एक अधिकारी के माध्यम से उनसे वसूली करता है जो गलत तरीके से कमाई के धंधे में लगे हुए हैं.

corruption maharashtra sachin vaze rojgar considered measures to eradicate rot Viswanath Sachdev's blog  | भ्रष्टाचार की सड़ांध को समूल मिटाने के उपायों पर विचार हो, विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग

महाराष्ट्र का यह कांड बहुत गंभीर है. इसके हर पहलू की जांच होनी चाहिए. (file photo)

Highlightsकमाई हजारों लाखों की नहीं, करोड़ों की होती है, इसलिए वसूली भी करोड़ों में होती है. राजनीति आज इस कदर महंगी हो गई है, चुनावों में जीत के लिए आज जिस तरह करोड़ों-अरबों रुपए खर्च होते दिख रहे हैं.महाराष्ट्र के इस कांड में अपराधी कौन है और कौन नहीं, इसकी पुख्ता जांच होनी चाहिए.

मुंशी प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है, ‘नमक का दरोगा’. वर्षों पहले पढ़ी थी, पर आज भी उसके कुछ अंश ऐसे याद हैं, जैसे कल ही पढ़ी हो.

कहानी की शुरुआत में एक पिता अपने जवान बेटे को नसीहत दे रहे हैं. अपने अनुभव को जीवन भर की कमाई बताते हुए वे रोजगार की तलाश में जाने वाले बेटे से कहते हैं-‘पद और ओहदे की चिंता मत करना. मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है. ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है.’

आज मुझे इस कहानी की शुरुआत हमारे समय के संदर्भ में याद आ रही है. वंशीधर ने भले ही पिता के अनुभव से लाभ न उठाने का निर्णय किया हो, पर आज हर तरफ ऐसे वंशीधर मिल जाएंगे जो अपने अनुभवी पिता की सीख पर ही चलना बेहतर समझते हैं. प्रेमचंद ने अपनी कहानी में पीर की मजार के जिस चढ़ावे पर नजर रखने की बात कही थी वह चढ़ावा आज न जाने किस-किस का जीवन सुधार रहा है.

जीवन सुधारने का यह नुस्खा आज लोगों को आसानी से समझ आने लगा है. मान लिया गया है कि पूर्णमासी के चांद से काम नहीं चलता, दूज का चांद चाहिए जो बढ़ता रहता है. बहते हुए स्रोतों से लाभ उठाने वाले आज अपवाद नहीं, नियम बन गए लगते हैं. जहां जिसको मौका मिलता है, वह लाभ उठाना शुरू कर देता है.

नमक के दरोगा को भले ही इमाम मिल गया हो पर आज ऐसे दरोगाओं की कमी नहीं है जो बहते पानी से प्यास बुझाने के अवसर को अपना अधिकार समझते हैं, इसे आप चाहें तो रिश्वत कह लें या ‘हफ्ता वसूली’ पर यह आज एक ऐसी सच्चाई बन गई है जिसे सब देख सकते हैं, देख रहे हैं, पर मानते यह हैं कि उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा.

आज महाराष्ट्र में जो तमाशा चल रहा है, वह इसी प्रवृत्ति का परिणाम है. आरोप यह है कि सत्ता में बैठा व्यक्ति पुलिस के एक अधिकारी के माध्यम से उनसे वसूली करता है जो गलत तरीके से कमाई के धंधे में लगे हुए हैं और यह कमाई हजारों लाखों की नहीं, करोड़ों की होती है, इसलिए वसूली भी करोड़ों में होती है. यह सही है कि महाराष्ट्र में वसूली का यह आरोप अभी प्रमाणित नहीं हुआ है, यह भी हो सकता है कि इस आरोप के पीछे राजनीतिक उद्देश्य हो, पर यह भी एक खुला रहस्य है कि हमारे समाज में राजनीति और अपराध के रिश्ते कोरी कल्पना नहीं है.

फिर ऐसा भी नहीं है कि इस आशय के आरोप आज ही लग रहे हों, पहले भी सत्ताधारियों पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि वे आपराधिक तत्वों के साथ मिलकर या पुलिस के माध्यम से उगाही का धंधा करते रहे हैं. राजनीति आज इस कदर महंगी हो गई है, चुनावों में जीत के लिए आज जिस तरह करोड़ों-अरबों रुपए खर्च होते दिख रहे हैं, उसे देखते हुए यह आरोप न काल्पनिक लगता है और न ही बेबुनियाद कि ‘चढ़ावे’ पर उन सबकी नजर रहती है जो सत्ता के इस खेल से जुड़े हैं.

महाराष्ट्र के इस कांड में अपराधी कौन है और कौन नहीं, इसकी पुख्ता जांच होनी चाहिए. पहले भी इस तरह के आरोप लगे हैं, जांच भी हुई है, पर नतीजा कुल मिलाकर ढाक के तीन पात वाला ही रहा है. हफ्ता वसूली की चर्चा समाज में आम है. यह पब्लिक है, यह अच्छी तरह जानती है कि वसूली की हिस्सेदारी बहुत ऊपर तक जाती है.

इस आशय की खबरें भी अक्सर मीडिया में दिखाई देती हैं कि थाने की नियुक्ति के लिए या फिर मलाईदार विभागों में जगह पाने के लिए बोलियां लगती हैं. मंत्रिमंडलों में जब विभागों का बंटवारा होता है तो मलाईदार विभागों की चर्चा होना एक आम बात है. इसलिए, आम आदमी को यह सब देख आश्चर्य नहीं हो रहा.  

बहरहाल, महाराष्ट्र का यह कांड बहुत गंभीर है. इसके हर पहलू की जांच होनी चाहिए. हर अपराधी को सजा मिलनी चाहिए. दूसरे, आरोप सिर्फ आज के मंत्रियों या अधिकारियों तक ही सीमित नहीं हैं, बात निकली है तो बहुत दूर तक जानी चाहिए. सरकारी एजेंसियां जांच करें या न करें, जनता को इस बारे में जरूर सोचना चाहिए कि हमारे राजनीतिक नेतृत्व पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप अक्सर समय के साथ भुला क्यों दिए जाते हैं, क्यों अक्सर कोई जांच निर्णायक स्थिति तक नहीं पहुंचती?

सवाल सिर्फ किसी एक पुलिस अधिकारी का नहीं है. किसी एक मंत्नी या किसी एक दल के नेता का भी नहीं. सवाल हमारी पूरी राजनीति में आ रही सड़ांध का है, भ्रष्टाचार को समाज में मिलती स्वीकार्यता का है. सवाल उस पूरी व्यवस्था का है जो बीमार होती जा रही है.

यह कहना तो गलत होगा कि हमारा सारा पुलिस महकमा भ्रष्ट है या फिर हमारे सारे राजनेता बेईमान हैं, पर यह भी गलत नहीं है कि एक कांस्टेबल से लेकर उच्च अधिकारी तक अथवा मामूली कार्यकर्ता से लेकर ऊंचे ओहदे तक पहुंचे राजनेता तक अक्सर सवाल उठते रहे हैं. इन सवालों के जवाब तलाशने जरूरी हैं. मामला सारी व्यवस्था की सफाई का है.

Web Title: corruption maharashtra sachin vaze rojgar considered measures to eradicate rot Viswanath Sachdev's blog 

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे