पीयूष पांडे का ब्लॉगः बचपन की मौज बनाम विकास के टापू

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 6, 2020 10:10 IST2020-06-06T10:10:28+5:302020-06-06T10:10:28+5:30

सोसायटी का अपना पार्क, अपना जिम, अपना स्विमिंग पूल, अपना साइक्लिंग ट्रैक है, अपना मिनी बाजार है, अपना कॉन्फ्रेंस और पार्टी हॉल है, जो फिलहाल बंद हैं.  इस रिहायशी इलाके में जवानी की दहलीज पर खड़े किशोर भी हैं, जो अव्वल तो खुद को सोसायटी का नहीं बल्कि फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम का बाशिंदा मानते हैं.

Coronavirus: society park, gym, swimming pool, cycling track which are currently closed | पीयूष पांडे का ब्लॉगः बचपन की मौज बनाम विकास के टापू

प्रतीकात्मक तस्वीर

पीयूष पांडे 

मेरी सोसायटी की सुरक्षा बहुत पुख्ता रहती है. कोरोना काल में यह सुरक्षा और पुख्ता हो गई. इस कदर सख्त कि ‘तानाजी’ देखने के बाद मुझे कई बार लगता है कि मैं सोसायटी में नहीं शिवाजी के किले में प्रवेश कर रहा हूं. हाल यह है कि कई बार मेरे पेटेंट लाल-पीले डिजाइनर मास्क पहनने के बावजूद मुझे  सुरक्षाकर्मी उसी तरह पहचानने से इंकार कर देते हैं, जिस तरह राजनेता चुनाव जीतने के बाद वोटरों को पहचानने से इंकार कर देता है.  

सोसायटी का अपना पार्क, अपना जिम, अपना स्विमिंग पूल, अपना साइक्लिंग ट्रैक है, अपना मिनी बाजार है, अपना कॉन्फ्रेंस और पार्टी हॉल है, जो फिलहाल बंद हैं.  इस रिहायशी इलाके में जवानी की दहलीज पर खड़े किशोर भी हैं, जो अव्वल तो खुद को सोसायटी का नहीं बल्कि फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम का बाशिंदा मानते हैं. यदाकदा मां-बाप घर से धकेलकर सोसायटी के किसी सार्वजनिक कार्यक्र म में भेज भी दें तो वे वहां उसी तरह खड़े हो जाते हैं, जैसे खेत में बिजूका खड़ा होता है.

मेरी चिंता बच्चों को लेकर है. कुछ दिन पहले मेरी 8 साल की बेटी ने पहली बार सुअर के दर्शन किए तो उसका मुंह उसी तरह खुला का खुला रह गया था, जैसे सरकारी दफ्तर में बिना रिश्वत दिए काम होने पर आम आदमी का खुला रह जाता है. वो हैरान थी कि ये कैसा जीव है, जो कीचड़ में आराम से बैठकर पेट पूजा कर रहा है. बच्ची दिन भर घर से स्कूल तक हाईजीन का पाठ पढ़ती थी, और उसे एक पल को लगा कि हाईजीन की पूरी कल्पना ही फ्रॉड है.

एक हफ्ते पहले ऐसा ही एक वाकया पड़ोसी गुप्ताजी के बेटे के साथ हुआ था, जिसने अपनी नानी के यहां पहली बार लंगूर के दर्शन किए थे. वो बड़े चाव से बता रहा था कि एक लंगूर ने छत पर आए कई बंदरों को ऐसे मार-भगाया जैसे दबंग-2 में सलमान खान ने गुंडों को मार भगाया था. उसने उस कौतूहल का भी वर्णन किया, जब एक संपेरा गले में सांप लटकाए नानी के घर के बाहर आकर बीन बजाने लगा था.

मैं उसकी बात सुनकर उसी तरह हैरान था, जिस तरह जीत का दावा करने वाला नेता जमानत जब्त होने के बाद होता है. मैंने सोचा कि क्या ये बच्चे विकास के टापू में रह रहे हैं? ऐसे टापू, जहां सब कुछ सुव्यविस्थत है. इन बच्चों के लिए नाली में पड़ी गेंद को हाथ से निकालकर दोबारा खेलने की सोच भी पाप है. इनके लिए कंचे का खेल अस्तित्व में ही नहीं है. बाग से बेर तोड़कर खाने को ये संगीन अपराध समझ सकते हैं. इनके लिए नहर में नहाना भी ऐसी उपलब्धि है, जिस घटना से वो भविष्य में अपनी आत्मकथा का आरंभ कर सकते हैं. और अब लग रहा है कि कुछ बदलेगा नहीं क्योंकि कोरोना ने तो ऐसा अविश्वास पैदा कर दिया है, जहां मां-बाप बच्चों को बच्चों के साथ खेलने नहीं दे रहे. तो क्या बच्चों के सारे खेल, सारे मैदान अब मोबाइल में कैद हो जाएंगे?

Web Title: Coronavirus: society park, gym, swimming pool, cycling track which are currently closed

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