कोरोना काल में पास होने वाले छात्रों का न तोड़ें मनोबल, पढ़िए ये विशेष रिपोर्ट

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 11, 2021 03:25 PM2021-08-11T15:25:46+5:302021-08-11T15:26:46+5:30

कोरोना महामारीः उज्ज्वल भविष्य का सपना देख रहे थे लेकिन महामारी का समय जैसे-जैसे बढ़ता चला गया, वे परेशान हो गए, बेहद दुखी हो गए. उनकी परीक्षाओं का समय निकलता जा रहा था.

Corona period Jobs advertisement published Do not break morale students passing  2021 read special report | कोरोना काल में पास होने वाले छात्रों का न तोड़ें मनोबल, पढ़िए ये विशेष रिपोर्ट

देशभर में सरकार को ऑनलाइन परीक्षा के लिए मजबूर किया? नहीं, उन्होंने ऐसा बिल्कुल नहीं किया. (फाइल फोटो)

Highlightsसरकार ने यह फैसला लिया कि परीक्षाएं ऑनलाइन ली जाएं क्योंकि ऑफलाइन परीक्षा महामारी के चलते संभव नहीं थी.यह प्रयोग केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में  किया गया. फिर प्रश्न यह उठता है कि क्या ऑनलाइन परीक्षा के लिए विद्यार्थी जिम्मेदार थे?

इन दिनों कुछ जगहों पर इस विशेष टिप्पणी के साथ नौकरियों के विज्ञापन प्रकाशित हो रहे हैं कि ‘2021 पास्ड आउट कैंडीडेट्स ऑर नाट एलिजिबल’. तो क्या इसका अर्थ यह है कि इन हजारों युवाओं को नौकरी नहीं मिलेगी? क्या उनकी पूरी शिक्षा बेकार हो गई?

क्या यह उनकी गलती है कि वे कोरोना महामारी के दौरान ऑफलाइन परीक्षा में शामिल नहीं हो सके? कोरोना ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है, इससे कुछ भी अछूता नहीं रहा है. जो इस बीमारी से पीड़ित थे या तो उनकी जान चली गई या जीवन की पूरी बचत. इसने छात्रों की शिक्षा को भी नहीं बख्शा.

वे विभिन्न पाठय़क्रमों की पढ़ाई कर रहे थे और एक उज्ज्वल भविष्य का सपना देख रहे थे लेकिन महामारी का समय जैसे-जैसे बढ़ता चला गया, वे परेशान हो गए, बेहद दुखी हो गए. उनकी परीक्षाओं का समय निकलता जा रहा था. ऐसे में सरकार ने यह फैसला लिया कि परीक्षाएं ऑनलाइन ली जाएं क्योंकि ऑफलाइन परीक्षा महामारी के चलते संभव नहीं थी.

यह प्रयोग केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में  किया गया. तो फिर प्रश्न यह उठता है कि क्या ऑनलाइन परीक्षा के लिए विद्यार्थी जिम्मेदार थे? क्या उन्होंने देशभर में सरकार को ऑनलाइन परीक्षा के लिए मजबूर किया? नहीं, उन्होंने ऐसा बिल्कुल नहीं किया. इसके विपरीत, उनमें कई ऑनलाइन परीक्षा में बैठने के लिए अनिच्छुक थे, डरे हुए थे क्योंकि उनके पास पहले का ऐसा कोई अनुभव नहीं था और एंड्रॉयड फोन व कम्प्यूटर जैसे साधनों की भी कमी थी.

लेकिन महामारी के चलते वे मजबूर थे क्योंकि अनेक विद्यार्थियों की शिक्षा पूरी करने का समय पहले ही एक-दो वर्षो तक बढ़ गया था. ऑनलाइन परीक्षा संपन्न होने के बाद जैसे ही परीक्षा परिणाम आए, कोई अपने उज्ज्वल भविष्य की आशा लिए आगे की पढ़ाई की ओर चल पड़ा तो कोई नौकरी की तलाश में विज्ञापन तलाशने लगा. लेकिन यह क्या?

मदुरई तमिलनाडु की एचडीएफसी शाखा से एक विज्ञापन जारी किया गया जिसमें विशेष टिप्पणी के साथ 2021 के पासआउट विद्यार्थियों को नौकरी के लिए अप्लाई करने से मना किया गया. इस विज्ञापन के प्रकाशित होते ही सोशल मीडिया पर हड़कंप मच गया. कुछ लोगों ने इन विद्यार्थियों का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. उन्हें ‘कोरोना ग्रेजुएट’ कहा गया.

‘कोरोना डिग्री’ कहा जाने लगा. यह सब देख-सुनकर ये बेहद दु:खी हो गए. साथ ही उनके अभिभावकों को भी धक्का लगा. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन पर पाबंदी लगाने की गुहार लगाई. जब इस विज्ञापन की आलोचना होने लगी, तब जाकर एचडीएफसी ने उस पर खेद प्रकट किया और माफी भी मांगी. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

इस गलती से जो नुकसान इन विद्यार्थियों का हुआ, उसकी भरपाई नहीं हो सकती क्योंकि आज के सोशल मीडिया के दौर में उसे रोकना असंभव है. हमारे जैसे देश में जहां एक ओर लाखों उच्च शिक्षित युवक नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं और कोई भी काम करने के लिए मजबूर हो रहे हैं, दूसरी ओर कमरतोड़ महंगाई ने जीना दुश्वार कर रखा है.

इस महामारी के दौर में नौकरी देनेवाली संस्थाएं ऐसा भेदभाव कैसे कर सकती हैं? ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं, क्योंकि इन विद्यार्थियों की पूरी शिक्षा ऑनलाइन तो नहीं हुई, उन्होंने केवल एक या दो परीक्षाएं ऑनलाइन दी हैं. जो छात्र पहले चार-पांच सेमिस्टर ऑफलाइन परीक्षा देकर पास हुआ हो, उसकी पूरी डिग्री बोगस कैसे हो गई?

इस प्रकार के विज्ञापन हमारे देश के लिए घातक साबित हो सकते हैं क्योंकि नेशनल क्राइम ब्यूरो (एनसीबी) के अनुसार देश में 14 से 18 की उम्र के युवा सबसे ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं. 2017 से 19 के दरम्यान 24568 युवकों ने आत्महत्याएं की हैं जिनमें 13325 लड़कियां शामिल थीं.

ऐसे में यदि इस प्रकार के विज्ञापन प्रकाशित होते रहे तो क्या हाल होगा, हम सोच भी नहीं सकते. हमारे देश में कोई भी विद्यार्थी केवल नाम के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं करता उसके लिए भारी पैसा और अपने जीवन का कीमती समय नहीं लगाता.

उसका शिक्षा प्राप्त करने का मकसद ही उससे रोजी-रोटी कमाना होता है, इसलिए ऐसे विज्ञापन उसका मनोबल तोड़ सकते हैं. यह बेहद जरूरी है कि सरकारी तंत्र ऐसे विज्ञापनों पर न केवल पाबंदी लगाए बल्कि ऐसा करने वालों को सजा दे ताकि कोई भी हमारे युवाओं की भावनाओं से खेलकर उनके हौसले पस्त करने की कोशिश न कर सके.

Web Title: Corona period Jobs advertisement published Do not break morale students passing  2021 read special report

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे