Congress Working Committee: कार्यसमिति के जरिए कांग्रेस ने बिछाई है चुनावी बिसात!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 26, 2023 10:16 AM2023-08-26T10:16:18+5:302023-08-26T10:18:27+5:30
Congress Working Committee: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से लेकर गांधी-नेहरू परिवार से बाहर के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा गठित नई कार्यसमिति तक, सभी कुछ उन्हीं फैसलों का परिणाम है.
राज कुमार सिंह
Congress Working Committee: चिर-प्रतीक्षित कांग्रेस कार्यसमिति दरअसल चुनावी बिसात भी है. अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही कांग्रेस ने उदयपुर चिंतन शिविर में अपने भविष्य की बाबत कुछ फैसले लिए थे. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से लेकर गांधी-नेहरू परिवार से बाहर के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा गठित नई कार्यसमिति तक, सभी कुछ उन्हीं फैसलों का परिणाम है.
अब कांग्रेस अपनी राजनीतिक दशा और दिशा बदलना चाहती है. देर से ही सही, कांग्रेस को समझ आ गया है कि 1990 के बाद मंडल-कमंडल के बीच बंट गई भारतीय राजनीति में उसे अपनी प्रासंगिकता नए सिरे से बनानी होगी. इस राजनीतिक ध्रुवीकरण में हिंदुत्व भाजपा का मनपसंद हथियार बन गया तो सामाजिक न्याय के नारे के जरिये तीसरी धारा को मिली मजबूती से भी कांग्रेस ही कमजोर हुई.
ऐसे में नया सामाजिक-राजनीतिक समीकरण साधे बिना कांग्रेस की चुनावी राह आसान हो ही नहीं सकती. इसीलिए उदयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस संगठन में 50 प्रतिशत स्थान ओबीसी, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी और महिलाओं को देने की बात कही गई. यह भी तय किया गया कि संगठन में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी 50 वर्ष से कम आयु वालों की होगी.
कांग्रेस के परंपरागत ढांचे में ऐसा हो पाना आसान नहीं था. इसीलिए रायपुर सम्मेलन में पार्टी संविधान में संशोधन करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस कार्यसमिति गठन के लिए अधिकृत किया गया. इसलिए नई कांग्रेस कार्यसमिति के जरिये सामाजिक-राजनीतिक समीकरण साधते हुए चुनावी बिसात भी बिछाई गई है.
यह बिसात बिछाते हुए 50 प्रतिशत पद 50 साल से कम उम्रवालों को देने की कसौटी पर तो कांग्रेस खरा नहीं उतर पाई है. दरअसल सत्ता के मेवे पर मुग्ध राजनेता स्वयं को बुजुर्ग मानने को आसानी से तैयार नहीं होते. फिर भी 84 सदस्यीय भारी–भरकम कार्यसमिति को व्यावहारिकता के नजरिये से देखें तो माना जा सकता है कि अनुभवियों और युवाओं के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई है.
चुनावी राजनीति में सत्ता सर्वोपरि लक्ष्य होती है. इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि इस मुश्किल दौर में भी कांग्रेस चार राज्यों : राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में सत्ता में है. ज्यादा महत्वपूर्ण यह कि इन राज्यों की सत्ता उसने शक्तिशाली भाजपा से छीनी है.
इसके अलावा बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में भी वह क्षेत्रीय दलों की अगुवाईवाली सरकारों में भागीदार है. खासकर कर्नाटक की सत्ता भाजपा से छीनने के बाद न सिर्फ कांग्रेस का खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आया है, बल्कि उसने चुनावी जीत के लिए जरूरी सामाजिक समीकरण का गणित भी समझ और स्वीकार कर लिया लगता है