2025 में जलवायु आपदाओं ने दुनिया से छीने 120 अरब डॉलर
By निशांत | Updated: December 29, 2025 07:08 IST2025-12-29T07:08:35+5:302025-12-29T07:08:35+5:30
हमारे लिए यह रिपोर्ट सिर्फ आंकड़ों का दस्तावेज नहीं, बल्कि एक चेतावनी होनी चाहिए. एक ऐसी चेतावनी, जो कहती है कि अगर आज फैसले नहीं बदले गए, तो आने वाले सालों में नुकसान सिर्फ बढ़ेगा.

2025 में जलवायु आपदाओं ने दुनिया से छीने 120 अरब डॉलर
दुनिया के लिए 2025 सिर्फ एक और कैलेंडर का साल नहीं था, बल्कि जलवायु संकट की वह तस्वीर थी जिसे अब नजरअंदाज करना नामुमकिन हो चुका है. क्रिश्चियन एड की नई रिपोर्ट काउंटिंग द कास्ट 2025 बताती है कि बीते साल जलवायु से जुड़ी आपदाओं ने दुनिया को 120 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान पहुंचाया. ये नुकसान सिर्फ पैसों का नहीं है, बल्कि जिंदगियों का, घरों का, और उन सपनों का भी, जो हर आपदा के साथ थोड़ा और बिखर जाते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक 2025 में दुनिया भर में कम से कम दस ऐसी बड़ी जलवायु आपदाएं हुईं, जिनमें से हर एक ने एक अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान किया. कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग अकेले 60 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान कर गई. वहीं दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में आए तूफानों और बाढ़ ने 1700 से ज्यादा लोगों की जान ली और करीब 25 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ.
भारत और उसके पड़ोसी देशों के लिए यह साल खास तौर पर भारी रहा. भारत और पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ ने 1860 से ज्यादा लोगों की जान ली और करीब 5.6 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. रिपोर्ट बताती है कि एशिया दुनिया के उन हिस्सों में शामिल रहा जहां सबसे ज्यादा तबाही दर्ज की गई, जबकि इन देशों का वैश्विक उत्सर्जन में योगदान अपेक्षाकृत कम है.
क्रिश्चियन एड की यह रिपोर्ट साफ कहती है कि ये आपदाएं ‘प्राकृतिक’ नहीं हैं. ये दशकों से जारी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और राजनीतिक टालमटोल का नतीजा हैं. इम्पीरियल कॉलेज लंदन की प्रोफेसर जोआना हेग के शब्दों में, “ये घटनाएं किसी अनहोनी का नतीजा नहीं, बल्कि उस रास्ते का परिणाम हैं जिसे हमने खुद चुना है. जब तक उत्सर्जन घटाने और अनुकूलन पर गंभीरता से काम नहीं होगा, तब तक यह तबाही बढ़ती ही जाएगी.”
रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि आर्थिक नुकसान का बोझ अमीर देशों में ज्यादा दिखाई देता है, क्योंकि वहां बीमा और संपत्ति का दायरा बड़ा है. लेकिन असल पीड़ा गरीब देशों में है, जहां लोग सब कुछ खो देते हैं और फिर भी आंकड़ों में उनकी तकलीफ पूरी तरह दर्ज नहीं हो पाती. नाइजीरिया, कांगो, ईरान और अफ्रीका के कई हिस्सों में आई आपदाएं इसका उदाहरण हैं, जहां हजारों लोग प्रभावित हुए लेकिन दुनिया की नजरें अक्सर वहां तक नहीं पहुंच पाईं.
रिपोर्ट यह भी याद दिलाती है कि 2025 में रिकॉर्डतोड़ गर्मी, जंगलों की आग, सूखा और तूफान दुनिया के हर कोने में महसूस किए गए. स्कॉटलैंड जैसे ठंडे इलाकों में भी जंगल जल उठे, जबकि समुद्रों का तापमान रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया. यह सब इस बात का संकेत है कि जलवायु संकट अब सीमाओं को नहीं मानता.
हमारे लिए यह रिपोर्ट सिर्फ आंकड़ों का दस्तावेज नहीं, बल्कि एक चेतावनी होनी चाहिए. एक ऐसी चेतावनी, जो कहती है कि अगर आज फैसले नहीं बदले गए, तो आने वाले सालों में नुकसान सिर्फ बढ़ेगा. सवाल अब यह नहीं है कि हम कितना खो चुके हैं, बल्कि यह है कि क्या हम आगे होने वाली तबाही को रोकने का साहस दिखा पाएंगे.