Climate change: मौसम में आ रहा परिवर्तन बढ़ा रहा है चिंता?, 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष, जनवरी में गर्म बने रहने की संभावना
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: January 3, 2025 05:36 IST2025-01-03T05:36:07+5:302025-01-03T05:36:07+5:30
Climate change: वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खतरे को कम करने के लिए तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड से कम पर रोकना होगा और इसके लिए 2030 तक बहुत कुछ बदलना होगा.

सांकेतिक फोटो
Climate change: हमारी जलवायु कई तरह से बदल रही है. सबसे स्पष्ट संकेतों में से एक यह है कि दुनिया गर्म हो रही है. मौसम को लेकर नए रिसर्च चिंता बढ़ाने वाले हो सकते हैं. मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि देश के अधिकांश हिस्सों में जनवरी के अपेक्षाकृत गर्म बने रहने की संभावना है. वर्ष 1901 से दर्ज किए जा रहे मौसम के आंकड़ों में भारत में बीता साल यानी 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है. लेकिन मौसम विभाग ने 2025 के मौसम को लेकर जो चौंकाने वाला पूर्वानुमान व्यक्त किया है उसके अनुसार जनवरी से गर्मी का एहसास शुरू हो जाएगा.
जनवरी से मार्च तक अपेक्षाकृत अधिक गर्मी महसूस होगी. आंकड़े बताते हैं कि 2024 के अधिकांश महीने 123 साल में सबसे ज्यादा गर्म रहे. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस समय जलवायु परिवर्तन वैश्विक समाज के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है. इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता बन गई है.
19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फारेनहाइट (अर्थात् लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है. पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों से लगातार बढ़ता ही जा रहा है. पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन आंकड़ों की दृष्टि से भले ही कम लगे, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है.
दरअसल, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया है. सड़कों पर वाहनों की संख्या अधिक हो गई है. जीवनशैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में बड़ा योगदान दिया है. पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी को तेजी से गर्म कर रहा है.
धरती के गर्म होने के लिए इंसानी गतिविधियों के साथ-साथ प्राकृतिक वजहें भी जिम्मेदार हैं. पृथ्वी की सतह के पास वायु का औसत तापमान बढ़ रहा है. इस बदलाव का बड़ा कारण कोयला, गैस और तेल जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलने वाली अतिरिक्त कार्बन डाईऑक्साइड गैस है जो हमारे घरों, व्यवसायों और शहरों को रोशन करते हैं और हमें आवाजाही में मदद करते हैं.
खेती और डेयरी पालन, भूमि के इस्तेमाल में आ रहे बदलाव, निर्माण कार्य, कचरा प्रबंधन और औद्योगिक प्रक्रियाएं मीथेन और अलग-अलग तरह के कृत्रिम रसायनों का उत्सर्जन करती हैं. ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय को गंभीरता से लेकर इसे कम करने के प्रयास युद्धस्तर पर करने होंगे.
अगर पृथ्वी के ‘बुखार’ को बढ़ने से नहीं रोका गया तो हम सबकी जिंदगी पर बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खतरे को कम करने के लिए तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड से कम पर रोकना होगा और इसके लिए 2030 तक बहुत कुछ बदलना होगा.