इसे परंपरा कहा जाए या संस्कार अथवा शिष्टाचार, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के जन्मदिवस पर शुभकामनाओं की ‘कॉफी टेबल बुक’ ने अनेक चर्चाओं को जन्म दे दिया. बात इतनी बढ़ी कि स्वयं मुख्यमंत्री फड़णवीस को बयान जारी करते हुए शुभेच्छाओं को राजनीतिक रंग न देने का आह्वान करना पड़ा. मगर पचास साल से अधिक का राजनीतिक जीवन जीने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार और पिछले अनेक वर्षों से लगभग हर मंच से आलोचना करने वाले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे लिखित रूप से तारीफ करें तो उसे कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है.
अपने नेता के जन्मदिवस पर पार्टी के नेताओं में हर्ष का होना और सहयोगियों के बीच खुशी का वातावरण होना सामान्य माना जा सकता है. किंतु वैचारिक रूप से आमने-सामने खड़े नेता यदि एक-दूसरे की प्रशंसा केवल ऊपरी ही नहीं, बल्कि स्वयं से जोड़कर करें तो कहीं न कहीं यह मानने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए कि राज्य का वर्तमान नेतृत्व सक्षम हाथों में है.
उससे केवल उनके समर्थकों को ही नहीं, बल्कि आलोचकों को भी बहुत उम्मीद है. वे उनकी कार्यपद्धति के भी कायल हैं. हालांकि यह भाव और भावनाएं व्यक्त करने के लिए उनके पास हमेशा मंच उपलब्ध नहीं है. भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के युवा नेता फड़णवीस के 22 साल की उम्र में नागपुर महानगर पालिका का नगरसेवक और 27 वर्ष की आयु में उसी स्थानीय निकाय का महापौर बनना तकदीर का खेल कहा जा सकता है. उसके पीछे पारिवारिक पृष्ठभूमि को भी देखा जा सकता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) के प्रति अटूट निष्ठा और समर्पण को स्वीकार किया जा सकता है.
किंतु विधान मंडल के दोनों सदनों में विपक्ष का नेता और भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनना किस्मत से जोड़ा नहीं जा सकता है. महाराष्ट्र में संघ मुख्यालय होने के साथ भाजपा के अनेक दिग्गज नेताओं के होने के बावजूद अपनी पहचान को बनाना और बरकरार रखना बिना परिश्रम और परिणाम के संभव नहीं हो सकता है.
वर्ष 1995 के चुनाव में शिवसेना गठबंधन के साथ केवल 65 सीटें जीतने वाली भाजपा को वर्ष 2014 में अकेले 122 सीटों तक पहुंचाना सामान्य नहीं माना जा सकता है. उसके बाद वर्ष 2019 में 105 और वर्ष 2024 में दोबारा 132 सीटों तक जिताना केवल भाग्य के भरोसे नहीं चल सकता है. महाराष्ट्र ने वर्ष 2014 से राजनीति के रुख को बदला.
यह वह समय था, जब भाजपा के अनेक शीर्ष नेताओं की चुनावी मैदान में अनुपस्थिति थी. शिवसेना के समक्ष भी यही संकट था. दोनों ही दलों को नए नेताओं की स्वीकारोक्ति और परिश्रम के भरोसे आगे बढ़ना था. इस कार्य में सर्वाधिक सफलता फड़णवीस ने ही हासिल की. उन्हें चतुर-चालक माना गया. राजनीति का खतरनाक खिलाड़ी माना गया, जिसे दूसरों को तथ्यात्मक रूप से खत्म करना आता है.
उन्होंने महाराष्ट्र में ढाई साल विपक्ष के नेता रहते हुए शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा के मंजे हुए खिलाड़ियों की सरकार को ताश के पत्तों की तरह गिरा दिया. उसकी जड़ें इतनी खोखली कर दीं कि उन्हें दोबारा खड़े होने में काफी संकट का सामना करना पड़ रहा है. राकांपा नेता पवार आम तौर पर अनेक नेताओं की तारीफ करते हैं, लेकिन अक्सर उनके राजनीतिक मायने निकाले जाते हैं.
किंतु इस बार फड़णवीस की प्रशंसा में उन्होंने कई तथ्यों को जोड़ा है. उनकी तुलना अपने शुरुआती राजनीतिक जीवन से की है. वह अपने युवा अवस्था के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल को फड़णवीस के कार्यकाल से जोड़कर देखते रहे हैं. उन्हें केवल युवा अवस्था की ऊर्जा ही नहीं, बल्कि काम करने का ढंग भी पसंद आ रहा है. परिस्थितियों से निपटने में निपुणता दिखाई दे रही है.
उन्हें वर्तमान मुख्यमंत्री में काम करने की जिद और जीवटता नजर आ रही है. पवार का कहना यहां तक था कि क्रियाशील रहने के लिए आमतौर पर शारीरिक स्थिति मध्यम या हल्की होनी चाहिए, लेकिन दोनों के बीच मोटी काया की समानता के बावजूद उनकी कायर्क्षमता पर असर नहीं पड़ा. कुछ यही बात शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने कॉफी टेबल बुक में कही हैं.
उन्होंने फड़णवीस को एक अध्ययनशील और लोकप्रिय राजनेता बताया है, जिन्होंने महाराष्ट्र में अपनी पार्टी को मजबूत करने में सफलता प्राप्त की है, जो कभी कांग्रेस का गढ़ था. उन्होंने कहा कि फड़णवीस के पास राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका निभाने का मौका है. महाराष्ट्र के इतिहास में दूसरे सबसे कम उम्र और तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फड़णवीस ने 44 साल की उम्र में पहली बार बड़ा पद संभाला था, जो राज्य के लिए एक चौंकाने वाली स्थिति थी. उसे स्वीकार करने करीब दस साल का समय लग गया.
आज भी कांग्रेस के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल फड़णवीस को राज्य के इतिहास के सबसे असहाय और लाचार मुख्यमंत्री बताने से चूक नहीं रहे हैं. अनेक घटनाओं के आधार पर उनका कहना है कि हर दिन फड़णवीस के मंत्री किसी न किसी घोटाले में फंसते हैं, लेकिन उनकी किस्मत में बस चुपचाप सब कुछ बर्दाश्त करना ही लिखा है.
स्पष्ट है कि कांग्रेस राजनीति के लिए अभी-भी वर्तमान मुख्यमंत्री को समझने के फेर में है. उसे राजनीति के पैंतरों में राज्य में तैयार हुई एक पौध का अंदाज नहीं लग रहा है. यह वही है, जिसे उसके आलोचक भी अवसर मिलने पर सराहने से चूकते नहीं हैं. मुख्यमंत्री फड़णवीस ने अपनी प्रशंसा केवल जन्मदिन के अवसर पर नहीं सुनी है, बल्कि अपने कर्तव्य के आधार पर पाई है.
गठबंधन की राजनीति का कखग सीखने के समय महापौर रहने वाले विदर्भ के नेता ने तीसरी बार सरकार को गठबंधन के साथ चलाकर दिखा दिया है. यही नहीं, विपरीत विचारधारा वाले नेताओं के साथ मतभेदों को किनारे कर राज्य के लिए नया अध्याय लिख दिया है. अनेक स्तर पर अकल्पनीय कार्यों को अंजाम देने वाले भाजपा के नेता के राष्ट्रीय भविष्य को लेकर सभी उत्सुक हैं,
लेकिन राज्य में किए गए कार्य अपनी अलग पहचान बनाते जा रहे हैं. यही वजह कि राजनीति के हर दौर को देख चुके 84 वर्षीय शरद पवार 55 साल के मुख्यमंत्री की तारीफ के लिए दिल खोल कर लिखते हैं. चिंता बस उन आलोचकों की है, जिन्हें राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के साथ इंसान की परख करना सीखना होगा. जिसे राज्य के अनेक वरिष्ठ नेता सिखा सकते हैं.