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उदार लोकतंत्र और आतंकवाद की बदलती प्रकृति

By एनके सिंह | Updated: February 22, 2019 11:30 IST

यह समस्या चीन में नहीं हो सकती, पाकिस्तान में नहीं हो सकती (अगर वहां इच्छाशक्ति हो), यहां तक कि अमेरिका में भी नहीं हो सकती

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यह समस्या चीन में नहीं हो सकती, पाकिस्तान में नहीं हो सकती (अगर वहां इच्छाशक्ति हो), यहां तक कि अमेरिका में भी नहीं हो सकती, लेकिन भारत इसके लिए फिलहाल सबसे जरखेज (उपजाऊ) जमीन हो सकता है. उदार प्रजातंत्न, संविधान में तत्कालीन परिस्थितियों को साधने की मजबूरी में किए गए समझौते, निम्न सामाजिक चेतना, अभेद्य गरीबी, तर्कशक्ति व वैज्ञानिक सोच का आदतन अभाव और धार्मिक व जातिगत आधार पर जबर्दस्त पारस्परिक सामाजिक दुराव.

पुलवामा में फिदायीन हमले का जो स्वरूप उभर कर आया है यानी आरडीएक्स की बड़ी मात्ना के साथ आईईडी (संवर्धन करके बनाया गया विस्फोटक) तैयार कर फिदायीन हमला, इसमें बहुत कुछ पहली बार हुआ है. मसलन फिदायीन भी स्थानीय, हमला भी सॉफ्ट टारगेट यानी भीड़ वाला बाजार या ट्रेन न होकर अर्ध-सैनिक बल के जवानों से भरी बसों का काफिला, अभी तक की जानकारी के अनुसार पूरा ऑपरेशन पाकिस्तान से लेकिन आईईडी का संश्लेषण कश्मीर में और वह भी ‘हैंडलरों’ के उस जत्थे द्वारा जो पाकिस्तान का है, और सबसे खास पाक स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद द्वारा फिदायीन का वीडियो जारी करना. 

पुलवामा हमले के बाद यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान की ‘फौजी’ खुफिया एजेंसी आईएसआई का भारत में उपद्रव का यह पांचवां और शायद सबसे खतरनाक चरण है. पहला चरण 1980 के दशक में ‘पीटीपीएम’  यानी पाक-ट्रेंड-पाक-मिलिटेंट (पाकिस्तान में ही प्रशिक्षित पाकिस्तानी उग्रवादी) का था लेकिन जब भारत में वह हमला करता था और अगर पकड़ा जाता था तो पाकिस्तान की दुनिया में किरकिरी होती थी.

लिहाजा नब्बे के दशक तक आते आते पीटीआईएम यानी पाक-ट्रेंड-इंडियन- मिलिटेंट (भारतीय आतंकवादी जिसकी ट्रेनिंग पाकिस्तान में हुई) का सिलसिला शुरू हुआ. लेकिन इसमें भी पाकिस्तान को तब दिक्कत होती थी जब पकड़े जाने पर वह यह कबूल करता था कि उसकी ट्रेनिंग किसने और पाकिस्तान के किस ट्रेनिंग कैम्प या शहर में दी थी).

तीसरा चरण सन 2000 से ‘स्लीपर सेल्स’ का था जिसमें तीन-से पांच की संख्या में हर स्लीपर सेल का सदस्य होता था जो भारत का ही था और उसे कभी-कभी अचानक किसी एक कार्य के लिए आदेश मिलता था. मसलन केरल के किसी सेल को आदेश होता था कि उत्तर भारत के अमुक शहर में किसी धर्मस्थल के पास रात में कोई कटा जानवर रखने का ताकि सुबह उस धर्मस्थल के अनुयायियों में आक्र ोश पैदा हो. इस सेल का काम बस इतना ही था.

अगले स्लीपर सेल - हजारों किमी दूर - को आदेश होता था इस धार्मिक स्थल के बगल के मोहल्ले या आसपास के शहर में किसी समुदाय -विशेष के संभ्रांत व्यक्ति को गोली मार देना (इसके लिए सभी जानकारी उसे पहले से मुहैया होती थी) या किसी धर्म के खिलाफ आग उगलने वाले मजमून की पर्चियां बांटना.

तीसरे सेल से उसी दिन किसी परंपरागत उपद्रव वाले मोहल्ले में हथियार की सप्लाई करवाना. जब अदालत में केस जाता था तो अलग-अलग शहरों में अलग-अलग जज मामले को देखते थे और अगर केरल का स्लीपर सेल पकड़ा भी गया तो जज को यह समझ में नहीं आता था कि केरल के किसी व्यक्ति ने मेरठ के किसी व्यक्ति को क्यों मारा. लिहाजा आतंक की घटनाओं में सजा की दर काफी गिर जाती थी.

आरोप लगता था कि पुलिस सांप्रदायिक विद्वेष से गलत लोगों को फंसाती है. टाडा कानून खत्म करने के पीछे यही कारण था. चौथा चरण आईएसआई का था ‘होम ग्रोन टेररिज्म’ का यानी भारत में ही आतंकवादियों की पौध तैयार करना उन्हें आर्थिक और हथियार की मदद दे कर. अबकी उनके प्रशिक्षण की जगह भी पाकिस्तान न होकर नेपाल और बांग्लादेश कर दी गई. अगर आतंकी पकड़ा भी गया तो पाकिस्तान किसी आरोप से साफ बच जाता था यह कह कर कि आतंकी भारत का, ट्रेनिंग किसी गैर मुल्क में - लिहाजा भारत झूठे आरोप लगा रहा है. लेकिन पुलवामा में पहली बार एक स्थानीय कश्मीरी फिदायीन ने इसे अंजाम दिया है.

लिहाजा सुरक्षा बलों  के लिए नई मुश्किल है यह पता करना कि प्रारंभिक इनडॉक्ट्रिनेशन (मानसिक रूप से कट्टरवाद के चरम लक्ष्य के लिए तैयार करना) कहां हुआ, कैसे वह पाक में मूल इनडॉक्ट्रिनेशन के लिए पहुंचा और कैसे वापस भारत आया और चूंकि आरडीएक्स केवल सेना इस्तेमाल करती है लिहाजा कैसे पाकिस्तान आर्मी से आरडीएक्स का इतना जखीरा कश्मीर में आया.  

एक उदार लोकतंत्न में मौलिक अधिकारों को सख्ती से बाधित किए बिना इस नई समस्या से जूझना सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों के लिए नई चुनौती होगी. भूलना न होगा कि 9/11 की घटना के बाद अमेरिकी सरकार ने होमलैंड सिक्योरिटी एक्ट बनाया जिसके तहत किसी भी नागरिक की निजता पुलिस चाहे तो भंग कर सकती है, लेकिन किसी एक नागरिक ने भी चूं तक नहीं किया था. क्या भारत में हम ऐसा कर सकते हैं?

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